दूध दोहन की वैज्ञानिक विधि और सावधानियाँ : Scientific Method and Precautions of Milking
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दूध दोहन की वैज्ञानिक विधि और सावधानियाँ : Scientific Method and Precautions of Milking, गाय और भैंस हमारे देश के मुख्य डेयरी पशुओं में आते है. किसानों और डेयरी फार्म के मालिकों के लिये अधिक दुग्ध उत्पादन के लिये अच्छी नस्ल का चयन के साथ ही उनका उचित प्रबंधन करना अत्यंत जरुरी होता है. इसके लिये पशुओं में दुग्ध स्त्रावण की प्रक्रिया को समझना आवश्यक है. भारत में डेयरी उद्योग तेजी से बढ़ रहा है. अब इसका विस्तार सीमान्त किसानों के जीविकोपार्जन से आगे निकलकर व्यावसायिक रूप में हो रहा है. वर्तमान समय में भारत को दुग्ध उत्पादन में सर्वश्रेष्ठ देश होने का गौरव प्राप्त है. विश्व के कुल दुग्ध उत्पादन में 18% से अधिक हिस्सा हमारा देश उत्पादित कर रहा है.

दुधारू पशुओं में दुग्ध स्त्रावण
गाय एवं भैसों का अयन (udder) चार अलग-अलग भागों में विभाजित होता है एवं चारों भाग एक दुसरे से बिलकुल अलग होते हैं. अयन में दुग्ध उत्पादन कि इकाई इसमें पाई जाने वाली असंख्य कुपिकाएँ (एल्विओलस) होती है. जिनके अंदर दुग्ध स्त्रवण करने वाली कोशिकाएं पाई जाती हैं. इन कोशिकाओं के चारों ओर सूक्ष्म रक्त वाहिकाएं एवं मांसपेशियां होती हैं. इन कोशिकाओं में प्रति 1 लीटर दूध बनाने के लिए लगभग 400 लीटर रक्त इन कोशिकाओं में प्रवाहित होता है. ये कोशिकाएं रक्त से आवश्यक तत्वों को लेकर दूध का निर्माण करती हैं. इनमें दूध स्त्रावित होने के बाद छोटी छोटी नलिकाओं से होता हुआ बड़ी नलिकाओं में चला जाता है और अंत में दूध ग्रंथि में एकत्रित हो जाता है.
जब बछड़ा थन को चूसता है तब थन में उपस्थित तंत्रिकाओं द्वारा सन्देश मस्तिस्क में जाकर उसे सक्रीय कर देता है. जिसके प्रभाव में ऑक्सीटोसिन नामक होर्मोन रक्त में निकलता है. इसके कारण कुपिकाओं के आसपास पायी जाने वाली मांसपेशियों में संकुचन होने लगता है और दूध थनों से बाहर निकलने लगता है. इस पूरी प्रक्रिया को दूध उतरना (लेट डाउन) कहा जाता है. ऑक्सीटोसिन का असर केवल 5 से 7 मिनट ही रहता है अतः इसी समय के अंदर ही सम्पूर्ण दूध दुह लेना चाहिये अन्यथा दुग्ध उत्पादन में कमी हो जाएगी. दूध दुहने से पूर्व पशु को पसवाना आवश्यक होता है. यह कार्य बछड़े अथवा अन्य संवेदन जैसे थनों को हाथ में लेकर सहलाना, दुहने के पूर्व दाना देना इत्यादि से किया जा सकता है.
दुग्ध दोहन की वैज्ञानिक विधि
गायों एवं भैसों को हमेशा बाँयीं तरफ से दुहा जाता है. दूध कि प्रारंभिक एक दो धार को बाहर फेंक देना चाहिये अथवा उसे स्ट्रिप कप में लेकर थनैला रोग का परिक्षण करना चाहिये. ऐसा करने से प्रारंभिक दूध में मौजूद जीवाणु अलग हो जाते है. दूध को हाँथ या मशीन कि सहायता से दुहा जा सकता है. पशुओं में दूध निकलते समय कई विधियों का प्रयोग किया जाता है, जो कि निम्नलिखित है.
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1 . अंगूठा दबाकर दूध निकलना – इस विधि में अंगूठे को दबाकर और थन को चारो उंगलियाँ तथा मुड़े हुए अंगूठा के बीच दबाकर दूध निकाला जाता है. इस विधि से पशु को अधिक कष्ट होता है तथा कभी-कभी पशु के थनों में गांठ भी बन जाती है. अतः पशुओं में दूध दोहन के लिये इस विधि का इस्तेमाल करना उपयुक्त नहीं होता है.

2. चुटकी से दूध निकलना – इस विधि में थन की जड़ को अंगूठे और पास की दो उँगलियों के बीच दबाकर ऊपर से नीचे की ओर खिसकाया जाता है. दूध दुहते समय दोनों हांथों में एक-एक थन लेकर बारी-बारी से धार निकालते हैं. यह विधि छोटे थन वाले पशु में दूध दोहने की उपयुक्त विधि है. इस विधि को स्ट्रिपिंग विधि भी कहते हैं.

3. पूर्ण हस्त विधि – इस विधि में चारो उँगलियों और हथेली के बीच थन को दबाया जाता है. इस विधि को फिस्टिंग विधि भी कहते है. इस विधि से दूध दुहने पर पशु बछड़े को दूध पिलाने के समान अनुभव करता है और इस विधि के द्वारा थन से पूरा दूध निकाला जा सकता है. इस क्रिया को तेजी से दुहराया जाता हैl बड़े थन वाली गाय एवं भैसों को इस विधि से दुहा जाता है. यह विधि पशुओं के लिए अधिक आरामदायक होती है. इस विधि में दोनों हाथों से दूध निकाला जाता है एवं पुरे थन पर बराबर असर पड़ता है. कुछ दूधिये अंगूठे को मोड़कर दूध दुहते हैं परन्तु ऐसा करने से थन को नुक्सान पहुँचता है एवं थनैला रोग होने कि सम्भावना भी बढ़ जाती है.

4. मशीन द्वारा दूध दुहना – इस विधि का उपयोग बड़े-बड़े डेयरी फार्मों में किया जाता है. जहाँ दूध देने वाले पशुओं की संख्या बहुत अधिक होती है. मिल्किंग मशीन द्वारा पशुओं का दूध अधिक तीव्रता से निकाला जा सकता है एवं इससे समय की काफी बचत होती है. हस्त दोहन में दूध कि कुछ मात्रा थनों में रह जाती है जबकि मशीन मिल्किंग में पूर्ण दुग्ध दोहन संभव है. यह विधि पशु के लिए आरामदायक होती है क्योंकि इसमें पशुओं को बछड़े द्वारा चूसने जैसा प्राकृतिक अनुभव होता है एवं थनों को भी कोई नुकसान नहीं पहुँचता है. जिससे दूध कि अधिक उत्पादन होता है एवं गुणवत्ता भी कायम रहती है. जब किसान के पास 20 से अधिक पशु हों तब मिल्किंग मशीन का उपयोग फायदेमंद होता है. मशीन द्वारा मिल्किंग की प्रणाली बहुत सरल होती है एवं इसके द्वारा 1.5 लीटर से 2 लीटर दूध प्रति मिनट दुहा जा सकता है. मिल्किंग मशीन निर्वात (वैक्यूम) के सिद्धांत पर कार्य करती है.

दूध दोहन के समय की सावधानियाँ
1 . पशुओं के स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए और बीमार या अस्वस्थ पशु का दूध नहीं निकालना चाहिए.
2. पशुशाला में मक्खियों की रोकथाम हेतु फिनाइल या जीवाणु नाशक लिक्विड से पशुशाला के फर्श की धुलाई करनी चाहिए.
3. दूध देने वाले पशु को स्वच्छ रखना चाहिए. पशु के थनों को, पूंछ को, पीछे वाले भाग आदि की सफाई अच्छी तरह से नीम पत्ती की पानी अथवा एंटिसेप्टिक घोल जैसे डेटाल, सेवलान या 1% पोटेशियम परमैगनेट आदि से धोना चाहिए. जिससे फर्श में उपस्थित जीवाणु नष्ट हो जाये.
4. दूध के बर्तन, कैन आदि को अच्छी तरह से साफ रखना चाहिए.
5. दूध निकालने वाले व्यक्ति के नाख़ून नियमित रूप से कटा होना चाहिए और उसके हाथ साफ रहने चाहिए.
6. दूध निकलने वाले व्यक्ति की स्वास्थ्य ठीक होनी चाहिए. उसे किसी भी प्रकार की चमड़ी की बीमारी या T.B. जैसे रोग न हों.
7. पशुओं के दूध दोहने का समय निर्धारित होना चाहिए.
8. पूर्ण हाथ विधि से ही दूध निकालने में थन से अधिक दूध निकाला जा सकता है. अतः दूध दोहने के लिये पूर्ण हस्त विधि ही सर्वोत्तम है.
9. दूध निकालते समय शुरू की 3-4 धार बाहर जाने देना चाहिए.
10. दूध देने वाले पशुओं को गंधयुक्त चारा नहीं खिलाना चाहिए.
11. दूध दुहने के समय थनों और हाथ में सरसों तेल या घी का प्रयोग करने से थन मुलायम और दूध दुहने में आसानी होती है.
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