जुगाली करने वाले पशु का पेट और पाचन क्रिया : Ruminant Stomach and Digestive System
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जुगाली करने वाले पशु का पेट और पाचन क्रिया : Ruminant Stomach and Digestive System, जुगाली करने वाले पशुओं में पेट सबसे बड़ा अंग होता है. यह उदर की गुहा में लगभग 1/3 हिस्से में फैला या स्थित होता है. जुगाली करने वाले पशुओं में पेट को मुख्यतः चार भाग रुमेन, रेटिकुलम, ओमैसम, एबोमैसम में विभाजित किया गया है. इनमे पेट का कुछ भाग दायें बाजू में होता है, तो कुछ भाग बाएं बाजू में फैला हुआ होता है. बड़े जानवरों में पेट की न्यूनतम क्षमता लगभग 100 से 230 लीटर तक की होती है. उसमें लगभग रुमेन की 80%, रेटिकुलम की 5%, ओमैसम की 7% तथा एबोमैसम की 8% क्षमता होती है. नवजात बछड़े में एबोमैसम सबसे बड़ा भाग होता है और विकसित होता है. 1 से 1.5 वर्ष की आयु में पेट के लगभग सभी भागों का पूर्ण विकास हो जाता है.

जुगाली करने वाले सम-ऊँगली खुरदार स्तनधारी पशु होते हैं जो वनस्पति खाकर पहले अपने पेट के प्रथम ख़ाने में उसे नरम करते हैं और फिर जुगाली करके उसे वापस अपने मूंह में लाकर चबाते हैं. पेट के प्रथम कक्ष से मूंह में वापस लाये गए खाने को पागुर (cud) कहा जाता है और यह दोबारा चबाने से और महीन हो जाता है जिससे उससे हज़म करते समय अधिक पौष्टिकता ली जा सकती है. विश्व में रोमंथकों की लगभग 150 जातियाँ ज्ञात हैं जिनमें बहुत से जाने-पहचाने पालतू और जंगली जानवर शामिल हैं जिनमें – गाय, बकरी, भेड़, जिराफ़, भैंस, हिरण, ऊँट, लामा और नीलगाय जैसे अन्य पशु भी शामिल है. जहाँ ग़ैर-रोमंथकों (जैसे कि मानव, भेड़िये, बिल्लियाँ) के पेटों में एक ही कक्ष होता है वहाँ रोमंथकों के पेट में चार ख़ाने होते हैं वे निम्नलिखित प्रकार के है.
पेट के चार भागों में पाचन क्रिया
1 . रुमेन (Rumen)
यह भाग उदर गुहा से श्रोणि गुहा तक फैली होती है. इसका लगभग अधिकांश भाग बाएं बाजू में होता है और कुछ भाग दायें बाजू में स्थित होता है. रुमेन पेट के चारों भागों में सबसे बड़ा भाग होता है. रुमेन के भाग में ही कार्बोहाइड्रेट का किण्वन प्रक्रिया द्वारा पाचन होता है. रुमेन के आन्तरिक भाग की रचना टर्किस टावेल के समान होती है. इन मांसल फोल्डर को पिल्लर्स कहा जाता है.

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2. रेटिकुलम (Reticulam)
जुगाली करने वाले पशुओं में यह पेट का सबसे छोटा हिस्सा होता है. यह भाग डायफ्राम के पीछे तथा रुमेन के नीचे स्थित होती है. रेटिकुलम की आन्तरिक संरचना मधुमक्खी के छत्ते के समान होती है. रेटिकुलम में अन्न को और छोटे स्वरुप में लाया जाता है. अन्न के अन्दर मौजूद भारी पदार्थ या वस्तुएं रेटिकुलम में ही फंसी रहती है. रूमेन से किण्वित खाना रेटिक्यूलम जाता है जहाँ और भी बैक्टीरिया उसे परिवर्तित करते हैं. यहाँ खाना बहुत से द्रव से भी मिश्रित किया जाता है. महीन खाने के कण डूबकर इस ख़ाने के नीचे बैठ जाते हैं जबकि मोटे कण और टुकड़े ऊपर रहते हैं. महीन खाना पाचन के लिए एक पतली नली के ज़रिये सीधा ऐबोमेसम (अंतिम कक्ष) में पहुंचा दिया जाता है. खाने के बड़े टुकड़े जुगाली की क्रिया के द्वारा पागुर नामक गोले के रूप में वापस ऊपर मुंह में पहुंचा दिया जाता है, जहाँ जानवर उसे चबाता है. इस पागुर में बहुत से बैक्टीरिया भी मिश्रित होते हैं.
3. ओमैसम (Omasam)
इसका आकार गोल तथा दबा हुआ होता है. पशुओं में यह हिस्सा लगभग 7 से 11 वी पसलियों के बीच दायें बाजू में और कुछ भाग मध्य में स्थित होती है. ओमैसम के आन्तरिक संरचना में मान्सांकुर के उभार पाये जाते है. मुंह में पागुर को अच्छी तरह चबाने के बाद पशु फिर से उसे निग़ल लेता है और यह ओमेसम (यानि पेट के तीसरे कक्ष) में पहुँचता है. चबाए गए खाने के टुकड़े अब काफ़ी छोटे हो गए होते हैं और उसमें मिश्रित बैक्टीरिया के पास उसे किण्वित करने के लिए और सतही क्षेत्र मिलता है. ओमेसम की दीवारें खाने में मिले हुए पानी को काफ़ी हद तक भी सोख लेती हैं. यहाँ से अब यह किण्वित खाना ऐबोमेसम (चौथे कक्ष) में जाता है.
4. एबोमैसम (Abomasam)
पेट के इस भाग को सच्चा पेट कहा जाता है. क्योंकि इस भाग में सभी प्रकार के पोषक तत्वों का विकारों द्वारा पाचन होता है. यह लम्बा तथा कुछ गोल आकार का होता है. यह उदर गुहा के झिपाईड भाग में स्थित होता है. बहुत से जीव वैज्ञानिक ऐबोमेसम को ही पशु का असली पेट समझते हैं क्योंकि यही एकमात्र कक्ष है जहाँ पाचन के रसायन (जैसे कि हाइड्रोक्लोरिक अम्ल) उसे हज़म करते हैं. अम्ल के कारण खाने में मिश्रित बैक्टीरिया भी मारे जाते हैं (हालांकि रूमेन में लगातार और बैक्टीरिया जन्मते रहते हैं, इसलिए जानवर को इनकी कमी नहीं होती). सरल पदार्थों में परिवर्तित खाना अब आँतों में जाता है जहाँ उसके शक्तिवर्धक और पौष्टिक तत्व सोख लिए जाते हैं.
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