मुर्गीपालन व्यवसाय और लाभ : Poultry Farming Business and Benefits
मुर्गीपालन व्यवसाय और लाभ : Poultry Farming Business and Benefits, मुर्गीपालन (Poultry Farming) एक ऐसा व्यवसाय है, जिसको कम पूंजी में, कम समय में, कम मेहनत और कम जगह में इस व्यवसाय से अधिक मुनाफा या आमदनी प्राप्त कर सकते है.
मुर्गीपालन व्यवसाय और लाभ : Poultry Farming Business and Benefits, मुर्गीपालन (Poultry Farming) एक ऐसा व्यवसाय है, जिसको कम पूंजी में, कम समय में, कम मेहनत और कम जगह में इस व्यवसाय से अधिक मुनाफा या आमदनी प्राप्त कर सकते है. आज सम्पूर्ण भारत में एक अनुमानित आकड़ों के अनुसार 50 हजार लोग मुर्गीपालन व्यवसाय से जुड़े है. पोल्ट्री फार्म या मुर्गीपालन व्यवसाय से जुड़ने के लिये व्यक्ति में किसी विशेष स्किल का होना जरुरी नहीं है. बल्कि इस व्यवसाय को एक साधारण व्यक्ति भी थोड़े लगन और कड़ी मेहनत से अच्छा खासा आमदनी कर सकता है. एक रिसर्च के मुताबिक मुर्गीपालन व्यवसाय में लगभग 14% वृद्धि दर के साथ लोगों की रूचि बढ़ रही है. अतः मुर्गीपालन या पोल्ट्री फार्म व्यवसाय में अधिक आमदनी करने की असीम सम्भावनाये है.
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पोल्ट्री या मुर्गीपालन ही क्यों – मुर्गी पालन के व्यवसाय में काफी अच्छा मुनाफा देखा जाता है क्यूंकि आजकल अंडे की जरुरत हर किसी को होती है. अंडे में प्रोटीन काफी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है और डॉक्टर भी इसे खाने की सलाह देते है. अगर किसी को अच्छी बॉडी बनानी हो तो उनके लिए अंडा काफी बेहतर आप्शन है इसके अलावा अंडे का इस्तेमाल घरेलू नुस्खों में भी किया जाता है. कुल मिलाकर देखा जाये तो अंडे की जरुरत हम सभी को होती है. इसके अलावा बहुत से लोग चिकन खाना भी पसंद करते है और यह भी सेहत के लिए काफी लाभकारी माना जाता है. दुनियाभर की बात करे तो इंडिया तीसरे नंबर पर Egg Production और पांचवां नंबर पर Chicken Production के लिए जाना जाता है. अगर आप खुद पोल्ट्री फार्म का व्यवसाय करते हो तो देश में अंडे और चिकन की जरुरत भी पूरी होती है और यह आपकी कमाई का अच्छा जरिया भी बन जाता है.
पोल्ट्री फार्म या मुर्गीपालन पालन हेतु जगह – मुर्गीपालन व्यवसाय शुरू करने से पहले यह आवश्यक है की आपको कितना जगह की जरुरत पड़ती है. मुर्गीपालन पालन के लिए सही जगह का चुनाव करने पर, पोषण और प्रबंधन पर खर्च कम होता है. जिससे आर्थिक नुकसान का सामना नहीं करना पड़ता है और आमदनी अधिक होती है. मुर्गीपालन हेतु जगह का चुनाव निम्नलिखित तरीके से करें.
1 . एक अनुमान के मुताबिक एक मुर्गी के लिए 1 से 1.5 वर्ग फीट जगह पर्याप्त है. उसी तरह आपको 100 से 150 मुर्गीपालन पालन के लिये 100 से 150 वर्ग फीट जगह की जरुरत पड़ेगी.
2. जगह हवादार, साफ सुथरी और सुरक्षित होनी चाहिए.
3. जगह का चुनाव करते समय ध्यान देवें की जगह रोड तथा शहर से लगा होना चाहिए. अन्यथा मॉल की ट्रांसपोर्टिंग में अधिक व्यय होनी की सम्भावना होती है.
4. मुर्गियों के लिये पिने की पानी के लिये उचित ब्यवस्था रखें, हो सके तो बोरवेल या कुएं होने चाहिए ताकि पानी का हमेशा प्रबंध बना रहे.
5. मुर्गी एवं चूजे रखने वाले स्थान को हमेशा सुखा होना चाहिए.
6. कम जगह में ज्यादा मुर्गी न रखें, क्योकि कम जगह में ज्यादा मुर्गी रखने से चोट लगने की आशंका होती है.
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चूजे या मुर्गी का उचित देखभाल कैसे करें – मुर्गीपालन करते समय चूजे या मुर्गी की देखभाल की विशेष आवश्यकता होती है. क्योकि सही देखभाल आपको अधिक आमदनी दे सकता है. चूजों की देखभाल में लापरवाही बरतने से आपको आर्थिक नुकसान हो सकता है.
1 . चूजे या मुर्गी नस्ल का चुनाव – चूजे या मुर्गी की खरीददारी या चुनाव करते समय ध्यान रखें की चूजे किसी अनुभवी कुक्कुट पालन केंद्र से खरीदें अन्यथा चूजो या मुर्गी के चिकित्सा और पोषणाहार पर अत्यधिक खर्च हो सकता है. मुर्गी पालन के लिए आपको उच्च गुणवत्ता के मुर्गी नस्ल की भी जरुरत पड़ेगी. मुर्गी नस्ल काफी प्रकार के होते है और इनका चयन प्रोडक्शन के साथ इस बात पर भी निर्भर करता है की आप किस काम के लिए मुर्गी पालन कर रहे हो. इसलिए अपने जरुरत के हिसाब से मुर्गी नस्ल का चुनाव करे. अगर कोई अंडे के लिए मुर्गी पालन करना चाहता है तो उनके लिए लेयर नस्ल बेहतर होगा. अगर कोई मांस के लिए मुर्गी पालन करना चाहता है ब्रायलर नस्ल का चुनाव करे. इंडिया में 2 तरह के मुर्गी के नस्ल सबसे अधिक पसंद किये जाते है चलिए इनके बारे में जानते है.
- लेयर नस्ल (Layer Breed) : अगर कोई अंडे के व्यवसाय के लिए मुर्गी पालन करना चाहता है तो लेयर नस्ल के तरफ जा सकते है. यह मुर्गी 5-6 महीने पुरे होने के बाद अंडे देना शुरू कर देती है और एक साल में 300 अंडे तक दे सकती है. इस मुर्गी को मांस के लिए भी उपयोग में लाया जा सकता है.
- ब्रायलर नस्ल (Broiler Breed) : अगर आप मांस के लिए मुर्गी पालन करना चाहते है तो ब्रायलर मुर्गी काफी अच्छा विचार होगा. इस मुर्गी का मांस काफी स्वादिष्ट और मुलायम होता है जिस वजह से इसे काफी पसंद किया जाता है. यह 1.5 से 2 महीने में ही 2 से 2.5 किलो वजन के हो जाते है यह भी एक कारण है इसे मांस के लिए अधिक पसंद किया जाता है.
वास्तव में पारम्परिक कुक्कुट पालन की भारत में अधिक प्रासंगिकता है. इस पद्धति से मुर्गी पालन के लिए उपलब्ध 11 प्रजातियों में वनराजा, ग्रामप्रिया, कृष्णा जे, नन्दनम-ग्रामलक्ष्मी प्रमुख हैं. देशी प्रजाति के पक्षियों की वृद्धि दर व उत्पादन कम होने की वजह से इनकी लोकप्रियता घट गई. केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान इज्जतनगर, बरेली में देशी और उन्नत नस्ल की विदेशी प्रजाति की मुर्गियों को मिलाकर कुछ संकर प्रजातियाँ विकसित की गई है. इनमें कैरी श्यामा, कैरी निर्भीक, हितकारी एवं उपकारी प्रमुख हैं ये प्रजातियाँ भारत के वातावरण एवं परिस्थितियों में अच्छा उत्पादन देने में सक्षम साबित हुई हैं और इनकी वार्षिक उत्पादन क्षमता लगभग 180-200 अंडे की है.
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2. खाना या पोषण प्रबंधन – मुर्गियों की कभी भी अँधेरे, बंद कमरे या रात में खाना नहीं देना चाहिए. नहीं तो कीड़े लगने का डर रहता है. खाने का तो उचित ध्यान रखे ही और साथ हे साथ अच्छे quality का food जिसमे protein और calcium ज्यादा मात्रा में हो उसे दे. जिस बर्तन में खाना और पानी दे रहे हो उसको हर 2 दिन अंतराल में अच्छे से साफ़ कर दिया करें. मुर्गी ज्यादा से ज्यादा तभी अंडा देगी जब उसे अच्छा आहार मिले. इसी तरह से अगर कोई मांस के लिए मुर्गी पालन कर रहे है तो उन्हें भी मुर्गी के आहार का ध्यान रखना चाहिए तभी मुर्गी का स्वास्थ्य बेहतर होगा और वजन भी बढ़ेगा. एक मुर्गी को बिमारियों से मुक्त रखने के लिए जितना उनके वातावरण का ख्याल रखना पड़ता है उतना ही ख्याल हमें उनके आहार का भी रखना होता है. मुर्गी के लिए मार्किट में प्री स्टार्टर, स्टार्टर और फिनिशर मिलता है जो उनके लिए प्रमुख माना जाता है. इसके अलावा आप उन्हें मक्का, सूरजमुखी, तिल, मूंगफली, जौ और गेूंह आदि भी दे सकते हो.
3. रख रखाव – मुर्गियों को खुले और हवादार जगह में रखने से शुद्ध हवा मिलती है, जिससे फेफड़े की बीमारी नहीं होती है. अच्छे ग्रोथ और प्रोडक्शन के लिए मुर्गियों का ध्यान रखना काफी जरुरी है. पोल्ट्री फार्म में साफ़ हवा का आना जाना होना चाहिए ताकि घुटन की समस्या न हो. इसी तरह से इस बात का भी ध्यान रखे की बारिश का पानी फार्म में जमा न हो. मुर्गियों को साफ़ पानी के साथ पौष्टिक आहार ही दे ताकि उनका विकास में कोई समस्या न हो. बीमारियों से दूर रखने के लिए जरुरी टीकाकरण अवश्य करवाए. अगर किसी मुर्गी में इन्फेक्शन पाया गया हो तो उसे बाकि मुर्गियों से अलग कर देना चाहिए.
4. तापमान – मुर्गी के चूजों को रखने वाली जगह पर प्रथम सप्ताह तक कमरे का तापमान 35 डिग्री सेल्शियस रखें.
5. ग्रोथ – बार बार चूजों को हाथ से न छुए अन्यथा चूजे डर जाते है जिससे उनका ग्रोथ रुक जाता है.
6. देशी मुर्गा – अगर देशी मुर्गा का व्यवसाय करते है तो आपको सिर्फ अधिक आमदनी ही नहीं होती, बल्कि देशी चूजे और मुर्गियों का ख्याल भी कम रखना पड़ता है.
7. व्यवसाय की मार्केटिंग – व्यवसाय को सही ढंग से चलाने के लिए मार्केटिंग की भी जरुरत पड़ती है. अगर आप चाहते है लोगो को पता चले आपका मुर्गी का व्यवसाय है और आप इसकी सुविधा देते हो तभी लोग आपके पास आयेंगे और आपका मुनाफा होगा. इसलिए अपने आस पास के दुकानों में पता करे अंडे व मांस कौन बेचता है उनसे कांटेक्ट करे और उन्हें अपने सर्विस के बारे में बताये. अगर दुकान आपके पोल्ट्री फार्म के आस पास होगी तो आपके लिए आसानी होगी नहीं तो आप परिवहन की मदत से एक जगह से दूसरी जगह अपने प्रोडक्ट को ले जा सकते हो.
प्रजनन की व्यवस्था
प्राय: ऐसा देखा जाता है, कि एक बार मुर्गी खरीदने के बाद एक झुंड में उन्हीं से बार-बार प्रजनन करवाया जाता है, जिससे इन ब्रीडिंग (अंत: प्रजनन) के दुष्प्रभाव सामने आते हैं. इससे अण्डों की संख्या निषेचन एवं प्रस्फुटन में कमी आती है तथा बच्चों की मृत्यु दर बढ़ती है. अत: इन्हें प्रतिवर्ष बदल देना चाहिए. इससे अंडा उत्पादन व प्रजनन क्षमता में वृद्धि के साथ-साथ चूजों की मृत्यु दर में कमी आती है.
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मुर्गियों की सुरक्षा के आवश्यक उपाय
मुर्गियों में बीमारी से बचाव के सम्बन्ध में जानकारी रखना प्रत्येक मुर्गीपालक के लिए आवश्यक हो जाता है.
- मुर्गियों को तेज हवा, आंधी, तूफ़ान से बचाना चाहिए.
- मुर्गियों के आवास का द्वार पूर्व या दक्षिण पूर्व की ओर होना अधिक ठीक रहता है जिससे तेज चलने वाली पिछवा हवा सीधी आवास में न आ सके.
- आवास के सामने छायादार वृक्ष लगवा देने चाहिए ताकि बाहर निकलने पर मुर्गियों को छाया मिल सके.
- मुर्गियों का बचाव हिंसक प्राणी कुत्ते, गीदड़, बिलाव, चील आदि से करना चाहिए.
- आवास का आकार बड़ा होना चाहिए ताकि उसमें पर्याप्त शुद्ध हवा पहुंच सके और सीलन न रहे.
- मुर्गियां समय पर चारा चुग कसे इसलिए बड़े-बड़े टोकरे बनाकर रख लेने चाहिए.
- कुछ व्याधियां मुर्गियों में बड़े वर्ग से फैलकर भंयकर प्रभाव दिखाती है जिसमें वे बहुत बड़ी संख्या में मर जाती है. अत: बीमार मुर्गियों को अलग कर देना चाहिए. उनमें वैक्सीन का टीका लगवा देना चाहिए.
- मुर्गी फ़ार्म की मिट्टी समय-समय पर बदलते रहना चाहिए और जिस स्थान पर रोगी कीटाणुओं की संभावना हो वहां से मुर्गियों को हटा देना चाहिए.
- एक मुर्गी फ़ार्म से दूसरे मुर्गी फ़ार्म में दूरी रहनी चाहिए.
- मुर्गियां खरीदते समय उनका उचित डॉक्टरी परिक्षण करा लेना चाहिए तथा नई मुर्गियों को कुछ दिनों तक अलग रखकर या निश्चय कर लेना चाहिए कि वह किसी रोग से ग्रस्त तो नहीं है. पूर्ण सावधानी बरतने पर भी कुछ रोग हो ही जाए तो रोगानुसार चिकित्सा करें.
रोगों से बचाव एवं रोकथाम
मुर्गियों को विभिन्न प्रकार से संक्रामक रोगों से बचाने के लिए कुक्कुट पालकों को मुर्गियों में टीकाकरण अवश्य करा देना चाहिए. जहां तक संभव हो एक गाँव या क्षेत्र के सभी कुक्कुट पालाकों को एक साथ टीकाकरण करवाने का प्रबंध करना चाहिए, इससे टीकाकरण की लागत में कमी आती है.
बर्ड फ्लू जैसी भयानक बीमारियों से बचने के लिए मुर्गियों को बाहरी पक्षियों/पशुओं के संपर्क से बचाना चाहिए. यदि कोई मुर्गी बीमार होकर मर गई हो तो उसे स्वस्थ पक्षियों से तुरंत अलग कर देना तथा निकटस्थ पशु चिकित्सक से सम्पर्क कर मरी मुर्गी का पोस्टमार्टम करवाकर मृत्यु के सम्भावित कारणों का पता लगाना चाहिए तथा स्वस्थ मुर्गियों को बचाने के लिए उपयुक्त कदम उठाना चाहिए. इस प्रकार आधुनिक तकनीक अपनाकर पारम्परिक ढंग से मुर्गी पालन कर ग्रामीण परिवारों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ अतिरिक्त आय अर्जित की जा सकती है.
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मेरे प्रिय पशुपालक और पशुधन प्रेमियों उपर्युक्त लेख के द्वारा पशुधन से जुड़ी अहम् ख़बरें और महत्वपूर्ण भूमिकाओं दर्शाने की कोशिश किया गया है. इस लेख में पशुधन विकास विभाग और संबंधित पशुधन वेबसाइट पोर्टल के माध्यम से उचित आंकड़ो पर लेख लिखा गया है, परंतु किसी भी प्रकार की त्रुटियाँ होने की सम्भावनायें हो सकती है.
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