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मवेशियों में मुंह से लार टपकने का कारण : Pashuon Ke Jibh Se Laar Girne Ka Karan

मवेशियों में मुंह से लार टपकने का कारण : Pashuon Ke Jibh Se Laar Girne Ka Karan, वर्तमान में गर्मी बहुत तेजी बढ़ रहा है और तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर रहा है. ऐसे में ऊमस भरी गर्मी का मौसम मवेशियों को बीमार कर सकता है. इसलिए पशुपालकों को सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि इस ऊमस भरी मौसम में जुगाली करने वाले पशुओं में मुंहपका और खुरहा रोग फैलने की सम्भावना अधिक बनी रहती है.

Pashuon Ke Jibh Se Laar Girne Ka Karan
Pashuon Ke Jibh Se Laar Girne Ka Karan

मुंहपका-खुरपका रोग (Foot-and-mouth disease, FMD या hoof-and-mouth disease) विभक्त खुर वाले पशुओं का अत्यन्त संक्रामक एवं घातक विषाणुजनित रोग है. यह गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर आदि पालतू पशुओं एवं हिरन आदि जंगली पशुओं को होता है.

उमस भरी गर्मी का यह मौसम मवेशियों को भी बीमार बना सकता है. इस मौसम में जुगाली करने वाले पशुओं में मुंहपका और खुरहा रोग का प्रकोप बढ़ जाता है. ऐसे में अगर पशु के मुंह से धागे की तरह लार बहे तो पशुपालक सतर्क हो जाएं. यह मवेशियों में मुंहपका रोक का लक्षण हो सकता है. रोग का लक्षण नजर आते ही पशुपालक अपने मवेशी को पशुचिकित्सालय या चिकित्सक को जरूर दिखाएं.

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Pashuon Ke Jibh Se Laar Girne Ka Karan

पशुओं को इस रोग से बचाव के लिए पशुपालक विभाग द्वारा टीकाकरण अभियान चलाया जाता है. जिले में इस अभियान में पशुचिकित्सा विभाग के कर्मचारी गांव-गांव जाकर मुंहपका व खुरहा रोग से बचाव के लिए मवेशियों का टीकाकरण करते है. ऐसे में पशुपालकों से अपेक्षा होती है कि टीकाकरण में पशुचिकित्सा विभाग का सहयोग करें.

जिला पशु चिकित्सालय के चिकित्सक बताते हैं कि जुगाली करने वाले मवेशियों में मुंहपका व खुरहा रोग वायरस के कारण होता है. इसके कई प्रकार होते हैं, एक प्रकार के वायरस द्वारा फैलाए गए रोग से स्वस्थ हो जाने पर भी पशु को दूसरे प्रकार के विषाणु दुबारा बीमार बना सकते हैं. यह विषाणु पानी, घास, चारागाह तथा रोगी पशु की देखभाल करने वालों के कपड़े, जूते आदि के सहारे पशु तक पहुंच जाते हैं.

इस बीमारी के वायरस पशु के मुंह, जीभ या शरीर पर लगी चोट या पशु की लार के माध्यम से भी यह रोग पैदा होता है. उन्होंने बताया कि इस रोग से पशुओं को बचाव के लिए पशुपालन विभाग द्वारा टीकाकरण अभियान चलाया जाता है.

मुंहपका व खुरहा रोग के क्या हैं लक्षण

  • इस रोग की चपेट में आने से पशु कांपता है और शुरू में बुखार 107 से 108 डिग्री फारेनहाइट तक हो जाता है.
  • मुंह व सींग छूने पर गर्म लगते हैं.
  • मुंह के अंदर जीभ, मसूढ़ों और कल्लों में फफोले या फोड़े निकल आते हैं.
  • खूर में भी छोटे-छोटे फफोले निकल जाते हैं.
  • ये फफोले भी फूट जाते हैं और पशु लंगड़ाने लगता है.
  • लंगड़ाने वाले पशु का उचित देखभाल नहीं होने पर खुर के बीच घाव बनकर कीड़े भी लग जाते हैं.
  • कभी कभार गाय के थन में भी फफोले निकल जाते हैं.
  • पशु हांफने लगता है.
  • खाने में परेशानी होती है जिससे पशु कमजोर होते जाता है.
  • पशु के मुंह से धागे की तरह लार बहने लगती है.

रोग की संक्रमण विधि

  • यह रोग बीमार पशु के सीधे संपर्क में आने, पानी, घास, दाना, बर्तन, दूध निकालने वाले व्यक्ति के हाथों से हवा से तथा लोगों के आवागमन से फैलता है.
  • रोग के विषाणु बीमार पशुओं की लार, मुंह, खुर थनों में पड़े फफोले में बहुत अधिक संख्या में पाए जाते हैं.
  • यह खुले में घास चारा तथा फर्श पर चार महीनों तक जीवित रह सकते हैं लेकिन गर्मी के मौसम में यह बहुत जल्दी नष्ट हो जाते हैं.
  • विषाणु जीवाणु जीभ, मुंह, आंत, खुरों के बीच की जगह थनों तथा घाव आदी के द्वारा स्वस्थ पशु के रक्त में पहुंचते हैं तथा 5 दिनों के अंदर उसने बीमारी के लक्षण पैदा करते हैं.

रोकथाम के उपाय

  • बीमारी का लक्षण प्रकट होते ही तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.
  • इस रोग से बचाव के लिए पशुओं का टीकाकरण कराना चाहिए.
  • पहला टीकाकरण चार माह की उम्र से शुरू कर देना चाहिए.
  • इसके बाद साल में दो बार छह माह के अंतराल पर टीकाकरण कराना चाहिए.
  • इस संक्रामक रोग की रोकथाम के लिए पशुओं का टीकाकरण की सर्वोत्तम उपाय है. इसलिए पशुपालक पशुओं को दी जाने वाली टीकाकरण को कभी भी नजरअंदाज न करें.
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रोग का निदान

  • पशु में रोग के लक्षण दिखाई देते ही सर्वप्रथम पशुपालक पशुचिकित्सालय या पशुचिकित्सक से संपर्क करें.
  • रोग से प्रभावित पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग स्थान पर बांधें.
  • प्रभावित पशु का खाना-पीना, पैरा-भूसा, गोबर-पेसाब आदि की अलग व्यवस्था करें.
  • पशुशाला में एंटीसेप्टिक दवाई की घोल का छिड़काव करें.
  • स्वस्थ एवं अस्वस्थ सभी पशुओं के पैर में पोटेशियम परमैगनेट अथवा अन्य एंटीसेप्टिक दवाई को कुनकुने पानी में मिलाकर डालें.
  • मुंह के छाले अथवा अनवरत लार टपकने पर पशु के जीभ में मधुरस, घी, ग्लिसरीन, बोरिक एसिड आदि का लेप दिन में कम से कम 2 बार जरुर लगायें.
  • रोगी पशु को खाने में कोमल हरा चारा, टमाटर, हरी पत्तियां इत्यादि खिलाना चाहिए.

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