पंगास मछली पालन का सही तरीका क्या है । Pangas Fish Farming Se Hoga Lakhon Ki Kamaai
पंगास मछली पालन का सही तरीका क्या है । Pangas Fish Farming Se Hoga Lakhon Ki Kamaai, भारत में मीठे जल में मछलीपालन मुख्य रूप से कार्प मछलियों तथा रोहू, कतला , मृगल के पालन पर भी निर्भर है। आंध्र-प्रदेश,पश्चिम बंगाल, पंजाब तथा हरियाणा में इन मछलियों की व्यवसायिक खेती की जाने लगी है।

इन राज्यों में कार्प मछलियों का उत्पादन उच्चतम स्तर पर पहुँच गया है तथा मछलियों के भोजन एवं मछली पालन में प्रयुक्त होने वाली सामग्रियों की वृद्धि तथा मछलियों के मूल्य में स्थिरता के कारण किसानों के लाभ का अनुपात घट गया है। साथ ही 90 के दशक में झींगा मछलीपालन की असफलता के कारण किसान नये मछली पालन के तरीकों के खोज में थे।
ऐसे में आंध्र-प्रदेश के पूर्वी कृष्णा एवं पश्चिम गोदावरी जिलों के किसानों ने पंगेशियस मछली का व्यवसायिक दृष्टि से एक सफल प्रजाति का मछली पालन प्रारम्भ किया जो धीरे-धीरे पुरे देश में अपनाया जा रहा है। वर्तमान में 40,000 हे० से अधिक जलक्षेत्र में इसकी खेती की जा रही है।
झारखण्ड की जलवायु भी पंगेशियस की खेती के लिए अनुकूल है तथा यहाँ के किसान भी इसे अपना कर अच्छा लाभ कमा सकते हैं। यह मछली शार्क मछली की तरह चमकीला होता है तथा छोटे आकार में इसे एक्वेरियम मछली की तरह भी बेचा जा सकता है।
पंगास मछली की प्रकृति
प्रारंभिक अवस्थाओं में यह अपनी प्रजाति की मछलियों को तथा तालाब के तल में उपलब्ध उत्सर्जित पदार्थ काई तथा घोंघें इत्यादि को खाती है। बड़े होने पर यह सर्वभक्षी हो जाती है तथा तालाब में पूरक आहार को बहुत ही चाव से खाती है। यह मछली तीन वर्षों में प्रजनन के लिए परिपक्व हो जाती है तथा इसका अधिकतम वजन 46 किग्रा पाया गया है। मादा मछलियाँ नर मछलियों से बड़ी होती है। गर्मी की मौसम में इनका प्रजनन होता है तथा हैचरी में हार्मोन की सूई देकर इसका प्रेरित प्रजनन किया जाता है।
मादा मछलियों से अंडे को निकालकर इसमें नर से प्राप्त शुक्राणुओं को मिलाकर अण्डों का निषेचन किया जाता है। 22 से 24 घंटे में 28 डिग्री तापक्रम पर अंडे फूटने लगते हैं। अण्डों की गुणवत्ता तथा निषेचन दर के आधार पर 80 प्रतिशत तक स्पान प्राप्त हो सकता है।
इसके बच्चे पानी में आसानी से तैरते हैं तथा हैचिंग के 24 घंटे बाद आर्टमिया प्लवक आदि का भोजन करते हैं। यदि पर्याप्त भोजन नहीं मिले तो ये अपने ही प्रजाति के दुसरे मछली को खा जाती है। 10 दिनों तक शिशु मछलियों को महीन पीसे हुए भोजन दिया जाता है। 40 से 50 दिनों तक ये 4 से 6 से.मी. तक के आकार के हो जाते हैं।
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वृद्धि दर – पंगास मछली भारत में मात्र 8 से 10 महीनों में 1 से 1.5 किग्रा का वजन पाप्त कर लेता है।
पूरक आहार – पंगेशियस मछली मुख्यत: पूरक आहार पर निर्भर रहती है जिससे पालन में बहुत आसानी होती है। पूरक आहार के रूप में बाजार में उपलब्ध विभिन्न कंपनियों के फ्लोटिंग फीड का प्रयोग किया जाता है।
भोजन अवस्था – पंगेशियस एक सर्वभक्षी मछली है। अत: ये सभी प्रकार का भोजन ग्रहण कर सकती है। तालाब में उपलब्ध प्राकृतिक आहार के साथ-साथ पूरक आहार के रूप में कृत्रिम भोजन तेजी से वृद्धि के लिए उपयोग किया जाता है। अगर तालाब में प्राकृतिक भोजन की उपलब्धता अच्छी हो तो पूरक आहार में खर्च काफी कम हो जाता है। पूरक आहार के रूप में बाजार में उपलब्ध विभिन्न कम्पनियों का जैसे ABIS, CP,KARGIL के भोजन उपलब्ध है।
साधारणत: झारखण्ड एवं आस-पास के राज्यों में ज्यादातर किसान पूरक आहार के रूप में “AIBS FEED” कम्पनियों का भोजन उपयोग करते हैं जिसका भोजन देने का तरीका निम्न आहार तालिका में दिया गया है –
मछली का शारीरिक भार | फ्लोटिंग फीड के दानों का आकार | प्रतिशत भोजन (शारीरिक भार का ) | प्रोटीन की मात्रा (भोजन में ) |
5-10 ग्राम | 1.5 मि.मी. | 7% | 32% |
10-20 ग्राम | 2 मि.मी. | 6% | 32% |
20-30 ग्राम | 2 मि.मी. | 5% | 32% |
30-40 ग्राम | 3 मि.मी. | 4% | 28% |
50-100 ग्राम | 3 मि.मी. | 3.5% | 28% |
100-200 ग्राम | 4 मि.मी. | 2.5% | 28% |
200-300 ग्राम | 4 मि.मी. | 2% | 28% |
300-400 ग्राम | 4 मि.मी. | 1.5% | 28% |
600-700 ग्राम | 4 मि.मी. | 1.5% | 28% |
800-900 ग्राम | 4 मि.मी. | 1% | 28% |
900-1000 ग्राम | 4 मि.मी. | 1% | 28% |
विशिष्टता – यह अन्य कार्प मछलियों के साथ भी पाली जा सकती है। जिन क्षेत्रों में कम लवणीय पानी उपलब्ध है वहां भी इनकी खेती की जा सकती है। चूँकि यह अन्य मछलियों के साथ भोजन में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं करती है, अत: इन्हें दुसरे मछलियों के साथ भी पालन किया जा सकता है।
बीमारी – पंगेशियस अन्य मछलियों की तुलना में काफी कठोर होता है। अत: अच्छे जल गुणवत्ता के प्रबंध से इसमें बिमारियों का खतरा काफी कम होता है। साधारणत: भारत एवं पड़ोसी देशों में पंगेशियस की खेती में निम्नलिखित बीमारियों को देखा गया है –
क्र.सं. | बीमारी का नाम | पहचान | बीमारी का कारण | रोगाणु | उपचार |
1. | बैसीलरी नेकोसिस (फिंगरलिंग में ज्यादा देखा गया है ) | धीरे-धीरे तैरना, शरीर पीला होना | एडवरसिलाएक्टालूरी | बैक्टीरिया | फ्लोरफेवीकोल एंटीबायोटिक |
2. | परजीवी इन्फेक्शन (फिंगरलिंग में ज्यादा देखा गया है ) | शारीर पर सफेद सफेद दाग | प्रोटोजोवा परजीवी | परजीवी | फारमलीन / चूना का छिड़काव |
3. | रेड स्पाट (सभी अवस्थाओं में देखा गया है ) | मुहं तथा पंख के क्षेत्र में रक्त स्त्राव | एरोमोनास हाईड्रोफिला | बैक्टीरिया | नमक का छिड़काव/ फ़रमलीन / पानी का बदलाव के बाद एंटीबायोटिक का प्रयोग |
विज्ञान में एक कहावत है कि “उपचार से अच्छा बीमारी की रोकथाम है”। अत: हमें बीमारियों से बचने के लिए अपने तालाबों का बेहतर प्रबंधन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। जल की गुणवत्ता जो मछली के लिए उत्तम है, उसे बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए ताकि मछलियों को तनाव मुक्त रखा जा सके।
विपणन – चूँकि इस मछली में मांस में काँटा नहीं होता है इसलिए आसानी से इसका पीस बनाया जाता है। बाजार में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। अधिक उत्पादन होने पर यह मछली विदेशों में भी भेजी जा सकती है।
सावधानियां – चूँकि यह सर्वभक्षी मछली है अत: इन्हें नदियों में जाने से रोका जाना चाहिए। एकल खेती में 15-20 ग्राम की अंगुलिकाओं को 20 हजार/ हे. के दर से संचयन करने से 20-25 टन प्रति फसल उत्पादन किया जा सकता है।
पालन का स्थान – पेंगसियस मछली को सदाबाहर तालाबों, मौसमी तालाबों, झींगा के तालाबों. पिंजड़ों तथा अन्य जलक्षेत्रों में पाला जा सकता है। 5 हे. से बड़े जलक्षेत्र में इसका पालन नहीं करना चाहिए।
पंगेशियस मछली का भोजन – भींगा हुआ भोजन इस खेती में उपयुक्त नहीं है इसकी वृद्धि के लिए सर्वोतम भोजन सतह में तैरने वाली खाद्य पदार्थ मानी जाती है। फ्लोटिंग फीड इस मछली के लिए ज्यादा उपयुक्त है। भोजन में अधिक प्रोटीनयुक्त पदार्थ का उपयोग किया जाता है। यदि पालन किसी और मछली की प्रजाति के साथ हो रहा हो तो हम बैग के द्वारा भी भोजन दे सकते हैं।
तालाब की उर्वरक्ता – वैसे एकल खेती में तालाब में खाद डालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है लेकिन फिर भी अच्छी खेती के लिए 100 किग्रा/हे. के हिसाब से चूना का छिड़काव करना चाहिए।
मछली स्वास्थ्य प्रबंधन – प्रतिरक्षक जैविकों का उपयोग नहीं करना चाहिए। इसके अलावे अनावश्यक पदार्थों का उपयोग से बचना चाहिए। आवश्यकतानुसार आयोडीन एवं चूना का ही उपयोग करना चाहिए।
मछलियों की निकासी – मछलियों की निकासी करने के 1-2 दिन पूर्व मछलियों का भोजन बंद कर देना चाहिए। मछलियों की निकासी प्राय: 6-8 महीने या 10-12 महीने में किया जाता है। निकासी के लिए केवल टाना जाल को अच्छा माना जाता है। मछलियों का निकासी के तुरंत बाद बर्फ में पैकिंग किया जाना चाहिए।
जल की गुणवत्ता का प्रबंधन – पंगेसियस की अच्छी उत्तरजीविता एवं वृद्धि के लिए जल की गुणवत्ता का प्रबंधन बहुत महत्त्व रखता है। पंगेशियस पालन में तालाब की पानी में निम्न गुण होने चाहिए –
पारामीटर रेंज
पी.एच. 6.5 – 7.5
घुलित आक्सीजन > 4 पी.पी.एम
तापमान 25-30 डिग्री. सें.
संचयन घनत्व – पंगेशियस पालन में 3-15 अंगुलिकाओं प्रति वर्ग मी. के क्षेत्र के हिसाब से तालाब में संचयन किया जा सकता है जो पालन की विधि एवं प्रबन्धन पर निर्भर करता है। साधारणत: प्रति हेक्टेयर तालाब में 30 हजार से 40 हजार अंगुलिकाओं का संचयन किया जा सकता है जिसमें 70-80 उत्तरजीवी प्राप्त की जा सकती है। शुरुआत में नये मत्स्य किसान को संचयन थोडा कम यानी 20 हजार से 25 हजार प्रति हेक्टेयर के दर से करना चाहिए ताकि प्रबंधन करना आसान होगा। एक हेक्टेयर के तालाब में 6-8 महीने के पालन से 20-25 टन का उत्पादन लिया जा सकता है।
पंगेशियस पालन के लिए ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बातें
- अंगुलिकाओं के संचयन के पूर्व तालाब की तैयारी जैसे चूना, खाद इत्यादि का प्रयोग कर लेना चाहिए।
- पूरक आहार दिन-भर का राशन एक ही बार न देकर उसे चार बार बाँट कर देना ज्यादा अच्छा माना जाता है।
- अगर संभव हो तो महीने में एक बार तालाब का दस प्रतिशत पुराना जल को निकाल कर नया जल भरना चाहिए इससे मछलियों द्वारा उत्सर्जित हानिकारक पदार्थों की मात्रा जल में कम हो जाती है।
- फ्राई को खरीद कर अंगुलिकाओं का संवर्धन स्वयं करना चाहिए क्योंकि अंगुलिकाओं को ज्यादा दूरी से परिवहन कर तालाब में संचयन के लिए लाने में काफी कतिनाई होती है एवं इससे मृत्यु दर ज्यादा देखा गया है।
- मछलियों की वृद्धि की जाँच के लिए फेंका जाल का इस्तेमाल करना चाहिए । टाना जाल में मछलियों के कांटे फंसने से उनकी मृत्यु जल्दी होती है।
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तालाब की भौतिक स्थिति
- गहराई : 1.5 -2.5 मीटर
- मिटटी : अम्लीय/ क्षारीय/ रेतीली
- पानी का रंग : हरा-भूरा
- तापमान : 220 -320 सेन्टीग्रेड
मछली उत्पादन की आर्थिकी (प्रति एकड़)
- मत्स्य बीज/ अंगुलिकाओं का मूल्य (@3 रु प्रति बीज) ———————-36,000 रु
- पूरक मत्स्य आहार 4725 किलो (फ्लोटिंग फीड @ 23 रु प्रति किग्रा) — 1,08,675 रु
- प्रबंधन एवं परिवहन व्यय ————————————————– 8000 रु
- चूना/गोबर / मेडीसिन ————————————————————— 10,000 रु
- तालाब का किराया ——————————————————————- 5,000 रु
- मजदूरी (छ: माह) ——————————————————————- 25,000 रु
- जाल का खर्च ———————————————————————— 15,000 रु
- अन्य आकस्मिक खर्च ————————————————————– 5000 रु
- कुल अनुमानित लागत ————————————————————- 2,12,675 रु
- अनुमानित उत्पादन 6-7 टन (बिक्रय दर @ 55रु प्रति किग्रा ) ———— 3.5 से 3.85 लाख
- शुद्ध लाभ ( छ: माह में ) ——————————————————- 1.52 से 1.72 लाख
नोट – संचयन मत्स्य बीज संचयन एवं गहन पालन करने पर पंगेशियस मछली के उत्पादन एवं आय में अभिवृद्धि की जा सकती है।
वैज्ञानिक पद्धति से पंगेशियस मछली का उत्पादन
क्षेत्रफल | 4000 वर्ग मी. (1 एकड़) |
गहराई | 1.5 मी./5-7 फीट |
पालन के दिनों की संख्या | 180 दिन / 6 माह |
छोड़ने जाने वाली मछलियों का वजन ग्राम/ पीस | 10 |
मछलियों की संख्या | 12000 पीस / एकड़ |
घनत्व | 3 पीस / वर्ग मी. |
लक्ष्य/ मछली (ग्राम) | 800-1000 ग्राम |
उत्तरजीवी दर (%) | 60-75 % |
औसत वृद्धि दर/ मछली/ दिन | 5.5 ग्राम |
मत्स्य आहार (मछलियों के भार का) | 3.5 % |
आहार/ दिन किग्रा | 26 किग्रा |
कुल मत्स्य आहार 180 दिनों में | 7000 किग्रा |
अनुमानित उत्पादन (किग्रा में ) | 4725 किग्रा |
एफ.सी.आर. | 1.5 |
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