पशु प्रजनन की प्रमुख विधियाँ : Major Method of Animal Breeding
पशु प्रजनन की प्रमुख विधियाँ : Major Method of Animal Breeding, पशु प्रजनन पशुपालन का एक महत्वपूर्ण पहलु है. जिसका मुख्य उद्देश्य पशुओं के उत्पादन में वृद्धि करना तथा उत्पादों की वांछित गुणवत्ता में सुधार करना है. पशु प्रजनन नर और मादा पशु के संतान उत्पत्ति हेतु पारस्परिक समागम या सहवास को पशु प्रजनन कहते है. पशु प्रजनन का मुख्य उद्देश्य पशु नस्ल सुधार करना है जिससे अच्छे पशु की उत्पत्ति हो और पशुपालक को अधिक आर्थिक लाभ मिल सके.

पशुओं के उत्पादकता बढ़ाने में पशु के नस्ल का बहुत बड़ा योगदान होता है. क्योंकि साधारण या देशी नस्ल के पशु को खिलाने वाले आहार के बराबर खर्च या व्यय पर ही अच्छे नस्ल के पशु के पोषण और प्रबंधन पर ध्यान दिया जा सकता है. एक अच्छे नस्ल का पशु से अच्छे बछड़े पैदा करके, अधिक दूध उत्पादन करके पशुपालक अपनी आमदनी में बढ़ोतरी कर सकते है. नस्ल पशुओं का वह समूह है जो वंश तथा सामान्य लक्षणों के समान होता है. सामान्यतः एक नस्ल वाली पशु आकार, आकृति तथा बाहरी दिखावट में समानता पायी जाती है.
पशु प्रजनन का उद्देश्य
1 . पशु दूध, खेती, मांस, बोझा ढोने आदि के लिये पाले जाते हैं. अतः in कार्यों की पूर्ति को सुविकसित करने के लिये पशुओं का प्रजनन कराया जाना आवश्यक होता है.
2. संतति की वृद्धि दर अच्छी करने के लिये प्रजनन आवश्यक है.
3. बछिया का जल्दी से गर्भित होकर, संतान पैदा करके दूध उत्पादन आदि के लिये.
4. संतति में रोग प्रतिकार शक्ति या क्षमता अधिक होता है.
5. पशु का सही समय में प्रजनन करने के लिये आवश्यक होता है.
6. पशुओं से अधिक से अधिक उत्पादन लेने के लिये.
7. पशुओं की उत्पादकता की आयु अधिक करने के लिये.
8. पशु प्रजनन से मजबूत और चुस्त बैल प्राप्त करने के लिये.
पशु प्रजनक के गुण
1 . एक अच्छे पशुपालक या प्रजनक को पशुपालन से संबंधित ज्ञान और रूचि का होना आवश्यक है.
2. पशु प्रजनक की दृष्टिकोण व्यवसायिक होना चाहिए.
3. पशु प्रजनक को कार्यकुशल, धैर्यवान और दूरदर्शिता से परिपूर्ण होना चाहिए.
4. वैज्ञानिक तकनीकी को शीघ्र लागु करने की क्षमता तथा इच्छा शक्ति होनी चाहिए.
5. कुशल प्रबंधक और समस्याओं का निराकरण करने की क्षमता होनी चाहिए.
पशु प्रजनन की विधियां
सामान्यतः पशुओं में प्रजनन दो प्रकार के होते है —

प्राकृतिक प्रजनन (Artificial Breeding) – इस विधि के द्वारा मादा पशु के ऋतुकाल चक्र में आने पर, मादा पशु के गर्भाशय ग्रीवा या गर्भाशय मुख से एक विशेष प्रकार का हार्मोन्स के स्त्राव होने लगता है. जिसके सुगंध से नर पशु मादा पशु की ओर आकर्षित होता है तथा मादा पशु भी नर पशु से प्रजनन की इच्छा जाहिर करती है. फलस्वरूप नर पशु उत्तेजित होकर मादा पशु के योनी या जनन अंग में अपना वीर्य का सिंचन करता है जिसे प्राकृतिक प्रजनन कहते है. इस प्रजनन में प्रयुक्त नर या मादा की विशेषता या गुणवत्ता का होना आवश्यक नहीं होता है.
कृत्रिम प्रजनन (Artificial Breeding) – पशु प्रजनन की इस विधि में एक श्रेष्ठ, उत्तम नस्ल के नर जनक का चयन किया जाता है. उस नर वीर्य निकाला जाता है तथा नर से प्राप्त वीर्य को मादा के जनन अंग में कृत्रिम विधि द्वारा स्थापित किया जाता है. जिससे मादा पशु गर्भधारण कर लेती है जिसे कृत्रिम प्रजनन कहा जाता है. इस विधि में नर से प्राप्त वीर्य का उपयोग निकालने के तुरंत बाद किया जाता है या वीर्य को हिमीकृत करके बाद में आवश्यकता अनुसार इसका उपयोग किया जाता है. वीर्य को हिमीकृत करने के लिये तरल नाइट्रोजन (LN2) का उपयोग किया जाता है. इस तरल नाइट्रोजन (LN2) या द्रव नाइट्रोजन का तापमान -196 डिग्री सेल्सियस होता है. इस हिमीकृत वीर्य को तरल नाइट्रोजन (LN2) पात्र की सहायता से एक स्थान से दुसरे स्थान तक ले जाया जा सकता है.
A. अन्तः प्रजनन (In Breeding) विधि – प्रजनन की इस विधि में जब एक ही नस्ल के पशुओं के बीच प्रजनन होता है. इस प्रजनन में 4-6 पीढ़ी तक बिल्कुल निकट के सम्बन्धी वाले नर-मादा में पारस्परिक सहवास या सम्बन्ध कराया जाता है.
1 . सम प्रजनन/निकट प्रजनन (Close Breeding) – इस प्रजनन में पशुओं को बिल्कुल ही निकट के सम्बन्धी नर-मादा पशुओं में पारस्परिक सहवास कराया जाता है. जैसे – सगे भाई-बहन, माँ-बेटा, पिता-पुत्री आदि.
2. अन्तः वंश प्रजनन (Line Breeding) – सम प्रजनन के अतिरिक्त जो भी वंश प्रजनन 4-5 पीढ़ी तक संबंधित नर मादाओं में होता है, उसे अन्तः वंश प्रजनन कहते है. जैसे – चचेरे भाई-बहन, बाबा-पोती, पिता-दादी आदि.
अन्तः वंश प्रजनन के लाभ
1. | संतानों में समानता बढ़ती है. |
2. | पशुओं के चयन में सहायता मिलती है. |
3. | अप्रभावी लक्षण प्रकट करने की सर्वश्रेष्ठ विधि है. |
4. | अच्छे तथा शुद्ध पशु प्राप्त होते हैं. |
अन्तः वंश प्रजनन के हानि
1. | उत्पादन क्षमता एवं प्रजनन क्षमता में कमी होती है. |
2. | मृत्यु दर बढ़ती है. |
3. | उत्तेजना कम होती है. |
B. बहि: प्रजनन (Out Breeding) – इस प्रजनन विधि के द्वारा ऐसे पशुओं का समागम (Mating) कराया जाता है जिनका सम्बन्ध 6 पीढ़ी के ऊपर तथा अन्य असंबंधित अधिक दूर के पशु होते है. इन नर-मादा पशुओं का पारस्परिक सहवास को ही बहि:र्प्रजनन कहते हैं. हमारे देश की पशु प्रजनन विधि में, इस विधि का खास महत्व है.
1 . भिन्न संकरण (Out Crossing) – इस विधि के अंतर्गत एक ही शुद्ध नस्ल के , 6 पीढ़ी से दूर के नर-मादा पशु में प्रजनन या सहवास कराया जाता है. इसमें अच्छे और उत्तम गुणों वाले सांड का चयन करके प्रजनन कराया जाता है. यह विधि निम्न या गिरी हुई नस्ल को सुधारने की उत्तम विधि है.
2. संकरण (Cross Breeding) – दो विभिन्न नस्लों के नर-मादा के सहवास या समागम को संकरण या संकरण प्रजनन कहते है. इस विधि से उत्पन्न संतान अधिक चुस्त, मजबूत और तंदुरुस्त होते हैं. इस विधि से नई नस्लों के पशुओं का विकास किया जा सकता है. अगली पीढ़ी की अनुवांशिक क्षमता में वृद्धि करने हेतु यह अति शीघ्र परिणाम देने वाली विधि है.
उदाहरण – सुरती + मुर्राह = महेशाणा |
3. क्रमोन्नति (Grading Up) – प्रजनन की इस विधि में एक शुद्ध नस्ल के सांड से, अशुद्ध या देशी नस्ल की मादा से सहवास कराया जाता है. प्रजनन की इस विधि से 6-7 पीढ़ियों में अशुद्ध नस्ल के पशु शुद्ध नस्ल में बदल जाता है. यह विधि केवल उन्हीं नस्लों के पशुओं में लागु करना उपयुक्त है जो स्थानीय वातावरण में रहना पसंद करते है या जो वातावरण में घुल मिल गए होते हैं.
क्रमोन्नति के लाभ
1. पशुओं में धीरे-धीरे अनुवांशिक गुणों का सुधार संभव है. |
2. संतान में समानता डालकर उत्पादन शक्ति में वृद्धि होती है. |
3. पशु नस्ल सुधार कार्यक्रम के लिये उपयुक्त विधि है. |
4. प्रसंकरण (Hybridisation) – इस विधि के अंतर्गत विभिन्न जाति अथवा प्रजाति के नर मादाओं में पारस्परिक सहवास होने से संतानोत्पत्ति होती है.
उदहारण – घोड़ी और गधे के सम्भोग से होकर खच्चर पैदा होता है. जो कि अपने माता पिता से बिल्कुल ही भिन्न होकर नया जीव या प्रजाति का होता है. इस तरह से संतान उत्पन्न करने की विधि को प्रसंकरण कहते हैं.
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