गाय भैंस की प्रमुख नस्लें : Major Breed of Cow and Buffalo
गाय भैंस की प्रमुख नस्लें : Major Breed of Cow and Buffalo, हम सभी जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है. कृषि के साथ-साथ किसानों का पशुपालन भी एक प्रमुख व्यवसाय है. पशुपालन से किसानों को घर उपयोगी उत्पाद जैसे – दूध, दही, घी, मक्खन और अन्य बहुमूल्य उत्पाद मिलते है. साथ ही खेती के लिये भी प्रमुख गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट खाद और अन्य उत्पाद प्राप्त होता है.

गाय भैंस की प्रमुख नस्लें : Major Breed of Cow and Buffalo, हम सभी जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है. कृषि के साथ-साथ किसानों का पशुपालन भी एक प्रमुख व्यवसाय है. पशुपालन से किसानों को घर उपयोगी उत्पाद जैसे – दूध, दही, घी, मक्खन और अन्य बहुमूल्य उत्पाद मिलते है. साथ ही खेती के लिये भी प्रमुख गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट खाद और अन्य उत्पाद प्राप्त होता है. भारत में दुनिया की 2.4% जमीन और 16% जनसंख्या भारत में निवास करती है. भारत के कुल जनसंख्या के 70% प्रतिशत लोग कृषि या खेती के कार्य में संलग्न है. भारत में कृषि के कार्य के साथ – साथ किसान का पशुपालन में भी बहुत बड़ा योगदान है. आज हम बात करेंगे गाय और भैंस के उन नस्लों के बारे में जिससे किसानों को कृषि के साथ-साथ, दूध, दही, घी, मक्खन और अन्य बहुमूल्य उत्पाद मिलते है.
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भारत में दूध उत्पादन – भारत विश्व में दूध के उत्पादन में प्रथम स्थान रखता है. भारत में दूध का उत्पादन सर्वाधिक होने के बावजूद भारत में उत्पादित दूध का विदेशों में कोई विशेष महत्व नही होता है. इसका कारण भारत में निम्न स्तर के देशी या अवर्णित गौवंश या भैंस वंश है. क्योकि भारत में गाय, भैसों के दूध गुणवत्ता युक्त नहीं होती है. यहाँ के पशुओं में कई प्रकार संक्रामक बीमारियाँ जैसे – ब्रुसोलेसीस, ट्रायकोमोनियासिस, विब्रियोसिस, इन्डोमेट्रायटिस, पायोमेट्रायटिस आदि जैसे संक्रामक रोग पाए जाते है. जिनका पशुओं के साथ – साथ मनुष्यों में भी फैलने की आशंका होती है. अतः भारत में उत्पादित दूध का विदेशों में मांग बहुत कम होता है. इसलिए भारत में दूध का मांग कम होने के कारण पशुपालक या किसान को दूध का वास्तविक मूल्य नहीं मिल पाता है.
गौवंशीय प्रमुख नस्लें – भारत में निम्न स्तर के देशी या अवर्णित गौवंशीय और भैंसवंशीय पशुओं की अधिकता के कारण पशुपालकों की पशुपालन में रूचि कम दिखाई देता है. आज पुरे भारत में ऐसी स्थिति बन गई है कि किसान अपने पशुओं को जंगलों में छोड़ दे रहें है या आवारा छोड़ दे रहे है. जिससे दिनों दिन आवारा पशुओं की संख्या बढ़ती जा रही है. सम्पूर्ण भारत में ऐसी स्थिति बन गई है कि आवारा पशु इधर-उधर सड़कों में घूम रहे हैं और एक्सीडेंट का शिकार हो रहे हैं. आज हम भारत और विदेशों में पाई जाने वाली प्रमुख नस्लों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे, जिनसे घर उपयोगी बहुमूल्य उत्पाद और कृषि का कार्य कर सकते हैं.
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1 . गौवंशीय दुधारू किस्म की देशी नस्लें
इस प्रकार की गौवंशीय नस्लें की गाय का प्रयोग मुख्यतः दूध उत्पादन के लिये किया जाता है. इन नस्लों से प्राप्त बैल का उपयोग खेती-बाड़ी के कामों में बहुत कम उपयोग होता है.
साहीवाल – यह पाकिस्तान के मोंटेगोमरी जिले और भारत के पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में प्रमुखतः पाई जाने वाली नस्ल है. यह दूध उत्पादन के लिये सर्वोत्तम देशी नस्ल की गाय है.
औसतन दूध उत्पादन प्रति ब्यात – 2250 किलोग्राम या 2250 लीटर है.

लालसिंधी (Red Sindhi) – इस नस्ल का मूल स्थान पाकिस्तान का सिंध प्रान्त है. लेकिन यह भारत के उत्तरी राज्यों जैसे -उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान में भी पाया जाता है. लाल सिन्धी नस्ल के पशु माध्यम आकार के चुस्त, ठोस एवं सुन्दर होते है.
औसतन दूध उत्पादन प्रति ब्यात – 2000 किलोग्राम या 2000 लीटर है.

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गीर नस्ल – इसकी उत्पत्ति का मूल स्थान भारत में गुजरात राज्य का गिर जंगल है. इसे कठियावाडी नस्ल भी कहा जाता है. यह नस्ल आमतौर पर कठियावाड़ के जुनागढ़ जिले में पायी जाति है.
औसतन दूध उत्पादन प्रति ब्यात – 1700 किलोग्राम या 1700 लीटर है.

थारपारकर – इसका मूल स्थान पकिस्तान के सिंध प्रान्त का थारपारकर जिला है. यह नस्ल भारत में राजस्थान के मारवाड़ प्रान्त में पाई जाति है.
औसतन दूध उत्पादन प्रति ब्यात – 2000 किलोग्राम या 2000 लीटर है.

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2. द्विउद्देशीय देशी नस्लें
इस प्रकार की द्विउद्देशीय नस्ल के गौवंश के गायों का उपयोग दूध उत्पादन के लिये किया जाता है, तथा बैलों का उपयोग प्रमुखतः खेती-किसानी के कामों में किया जाता है. इसलिए इस प्रकार की नस्लों को द्विउद्देशीय नस्ल कहा जाता है.
हरियाणा नस्ल – इसका मूल स्थान भारत में रोहतक, हिंसार, दिल्ली एवं करनाल है. यह मूलतः रोहतक की नस्ल है. इनका रंग सफ़ेद या भूरा होता है.
औसतन दूध उत्पादन प्रति ब्यात – 1200 किलोग्राम या 1200 लीटर है.
बैल – इस नस्ल का बैल खेती – किसानी के लिये बहुत प्रसिद्ध है.

ओंगोल नस्ल – इस नस्ल का मूल स्थान आँध्रप्रदेश के गुंटूर और नेल्लोर जिला है. यह नस्ल लम्बा शारीरिक गठन के लिये प्रसिद्ध है. इसका रंग मटमैला सफ़ेद होता है.

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कांकरेज नस्ल – काकरेज नस्ल की उत्पत्ति गुजरात के राधनपुर एवं डीसा नामक स्थान से हुई है. इनकी छाती चौड़ी और सिर पर बड़ा, मोटा और मुड़े हुए सिंग होते है. यह नस्ल सवाई चाल के लिये प्रसिद्ध है.
औसतन दूध उत्पादन प्रति ब्यात – 1800 किलोग्राम या 1800 लीटर है.
बैल – इस नस्ल के बैल खेती के लिये बहुत उपयोगी होते है.

देवनी नस्ल – इसका मूल स्थान महाराष्ट्र का मराठावाडा प्रान्त है. इनके शरीर का रंग सफ़ेद एवं काले रंग के धब्बे होते है.
औसतन दूध उत्पादन प्रति ब्यात – 1500 किलोग्राम या 1500 लीटर है.
बैल – इस नस्ल का बैल खेती के कामों के लिये बहुत उपयोगी होता है.

3. कृषि या खेती कार्य की प्रमुख नस्लें
इस प्रकार की नस्लों का प्रमुख उपयोग खेती के कामों या खेती से जुड़े कार्य में किया जाता है. इन नस्लों की गायों में दूध उत्पादन की क्षमता बहुत कम होती ही इसलिए इनका उपयोग कृषि कार्य में किया जाता है.
मालवी नस्ल – इसकी उत्पत्ति का मूल स्थान मध्यप्रदेश का मालवा इलाका है. इस नस्ल के पशु का रंग मटमैला और शरीर छोटा होता है. गर्दन और शरीर का पिछला भाग काला होता है.

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अमृतमहल नस्ल – इस नस्ल का मूल स्थान कर्नाटक है. इनका रंग सफ़ेद एवं मटमैला होता है. शरीर गठीला तथा त्वचा खिंची हुई होती है. चेहरा संकरा, सिंग पतले लम्बे एवं पीछे की ओर मुड़े हुए होते है. गाय के थन छोटे होते है और यह नस्ल (अमृतमहल) कृषि कार्य के लिये सर्वोत्तम नस्ल माना जाता है.

कंगायम – इस नस्ल की उत्पत्ति तमिलनाडु राज्य के कोयम्बटूर जिले से हुई है. इस नस्ल के पशुओं का शरीर (बैल) भारी होता है एवं माथा चौड़ा होता है. इनका रंग सफ़ेद, काला या लाल होता है. इस नस्ल का बैल भार ढोने में सर्वोत्तम है.

खिल्लारी – इस नस्ल का मूल स्थान महाराष्ट्र के सोलापुर और सतारा जिला है. इनका शरीर गठीला एवं रंग सफ़ेद होता है. सींग लम्बे और पीछे की ओर मुड़े होते है. यह नस्ल बैल दौड़ के लिए प्रसिद्ध है. इसे महाराष्ट्र का सर्वोत्तम नस्ल माना जाता है.

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