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लम्पी स्किन डिजीज और बचाव के तरीके : Lumpy Skin Disease and Prevention Method

लम्पी स्किन डिजीज और बचाव के तरीके : Lumpy Skin Disease and Prevention Method, देश की एक बड़ी आबादी पशुपालन और पशुपालन से जुड़े व्यवसाय पर निर्भर है. ऐसे में पशुधन पर किसी भी प्रकार का संकट आना या संक्रामक बीमारी के फैलने से पशुपालक को पशुधन के जरिये बहुत ही आर्थिक क्षति होती है. आज छत्तीसगढ़ के कई जिले कवर्धा, बेमेतरा, मुंगेली, आदि जिलों के कुछ गाय, भैंस में लम्पी स्किन डिजीज बीमारी का लक्षण देखा गया है. इससे स्पष्ट हो गया है की लम्पी स्किन डिजीज का संक्रमण इन जिलों में और इन जिलों से लगे अन्य जिलों में फैलने में की आशंका है. अतः बीमारी के संक्रमण को देखते हुए जिला प्रशासन और संबंधित पशुधन विकास विभाग को उपयुक्त कदम उठाना अत्यंत जरुरी है.

Lumpy Skin Disease and Prevention Method
Lumpy Skin Disease and Prevention Method

लम्पी स्किन डिजीज क्या है?

लम्पी स्किन डिजीज गाय-भैंस में होने वाली एक वायरल बीमारी है. लम्पी बीमारी से संक्रमित पशुओं में शरीर पर छोटी-छोटी गांठे, दर्द, बुखार जैसी समस्या दिखाई देती है. धीरे-धीरे ये गांठें बड़ी बन जाती है और गांठें फुटकर घाव बन जाता है. एलएसडी वायरस मक्खियों और खून चूसने वाले मच्छरों आदि के द्वारा फैलता है. साथ ही ये वायरस दूषित पानी, लार और चारे आदि के माध्यम से फैलता है. बीमारी से प्रभावित पशु का दूध उत्पादन क्षमता कम हो जाता है. गाभिन पशुओं में गर्भपात जैसी समस्या हो जाती है तथा पशु का मौत भी हो जाता है.

महत्वपूर्ण लिंक :- लम्पी बीमारी का विस्तारपूर्वक वर्णन.

लम्पी स्किन डिजीज का इतिहास

लम्पी स्किन डिजीज बीमारी सर्वप्रथम 1929 में अफ्रीका में पाई गई थी. पिछले कुछ सालों में यह बीमारी विश्व के कई देशों के पशुओं में फ़ैल गई है. सन 2015 में तुर्की और ग्रीक में तथा 2016 में रूस जैसे देशों में भयंकर तबाही मचाया था. जुलाई 2019 में लम्पी स्किन डिजीज का संक्रमण बांग्लादेश में देखा गया, जहाँ से ये धीरे-धीरे एशियाई देशों में फ़ैल गया . भारत में सबसे पहले लम्पी स्किन डिजीज वायरस का संक्रमण साल 2019 में पश्चिम बंगाल में देखा गया था. जो की 2021 तक भारत के 15 से अधिक राज्यों में फ़ैल गया. सन 2022 में लम्पी स्किन डिजीज गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, हिमांचल प्रदेश और अंडमान निकोबार जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में रिपोर्ट दर्ज की गई.

लम्पी बीमारी से ग्रसित पशु का के दूध का सेवन

1 . अभी तक लम्पी स्किन डिजीज बीमारी का पशु से मनुष्यों में फ़ैलाने की कोई भी मामला सामने नहीं आया है. लेकिन इस संक्रामक बीमारी के प्रभाव को देखते हुए सावधानी बरतना अत्यंत आवश्यक है.

2. विशेषज्ञों के अनुसार बाजार से खरीदने वाले दूध को 100 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर उबालकर ही दूध का प्रयोग करना चाहिए. जिससे घातक बैक्टीरिया और वायरस ख़त्म हो जाये.

3. लम्पी बीमारी से प्रभावित गाय, भैंस के दूध को प्रयोग करने से पहले सावधानी बरतना फायदेमंद होगा.

लम्पी वायरस से पशुओं में लक्षण

आज हम आपको आपके पशुधन के लिये घातक और जानलेवा बीमारी लम्पी वायरस से प्रभावित पशु में रोग के दिखाई देने वाले लक्षण के बारें जानकारी देंगे ताकि आप अपने पशुओं में लम्पी वायरस के संक्रमण को आसानी से पहचान सकें. ताकि पशु के लक्षण को पहचानन करके जल्द से जल्द अपने पशु का यथा संभव शीघ्र उपचार करायें.

1 . सर्वप्रथम लम्पी स्किन डिजीज बीमारी से प्रभावित पशु को 104, 105, 105.5, डिग्री तेज बुखार होता है, जिससे पशु खाना पीना बंद करके सुस्त खड़ा रहता है.

2. इस बीमारी से प्रभावित पशु के आँखे, नाक में स्त्राव होता है और गाय के मुंह से लार भी टपकने लगती है.

3. दुधारू पशु में दूध उत्पादन क्षमता कम हो जाति है.

4. लम्पी स्किन डिजीज रोग से ग्रसित पशु के शरीर पर जगह-जगह गांठें पड़ने लगती है. गांठें धीरे से छीलकर छालर का रूप ले लेती है. छाले पड़ने से पशु के शरीर में बहुत दर्द होता है.

5. धीरे-धीरे पशु दर्द और बुखार से तड़पकर प्रभावित पशु की मृत्यु भी हो जाति है.

लम्पी वायरस से पशुओं का बचाव कैसे करें?

पशुधन विकास विभाग के पशुचिकित्सकों का कहना है कि इस वायरस के संक्रमण और बचाव के लिये अभी तक कोई भी कारगर एंटीवायरल दवा उपलब्ध नहीं है. इस रोग के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिये तथा इस वायरस से पशुधन की बचाव के लिये पशुओं को सीधे 28-30 दिन के लिये आइसोलेट कर दिया जाये. इस बीमारी से पशुधन की सुरक्षा के लिये Goat-Pox की वैक्सीन लगई जा रही है. जो कि पशुधन को इस वायरस के चपेट में आने से कुछ हद तक रोक सकता है. लम्पी वायरस से बचाव के लिये निम्नलिखित सुझाव को अपना सकते हैं.

1लम्पी वायरस से प्रभावित पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें. ताकि यह वायरस दुसरे पशुओं में न फ़ैल सके.
2पशुओं को मक्खी, मच्छर, जू, किलनी आदि के प्रकोप से बचाकर रखें. क्योकि ये परजीवी भी लम्पी वायरस को फ़ैलाने में अपनी भूमिका अदा करते है.
3लम्पी वायरस से प्रभावित पशु को फिटकरी पानी से नहलाना चाहिए. प्रभावित पशु के खान-पान, गोबर, मूत्र, बिछावन, बर्तन, बचा हुआ खाना आदि की अलग व्यवस्था करना चाहिए.
4रोगी पशु के बचे हुए खाने को अन्य स्वस्थ पशुओं को नहीं देवे अन्यथा स्वस्थ पशु भी वायरस के चपेट में आ सकता है. रात के समय पशुशाला या पशुओं के रखने वाली जगह पर नीम के पत्तों को जलाकर धुँआ करना चाहिए.
5पशुशाला और पशुओं को बांधने वाली जगह के सम्पूर्ण क्षेत्र पर कीटाणु नाशक दवा का छिड़काव करना चाहिए. वायरस के संक्रमण को रोकने के लिये पशुपालक अपने लम्पी वायरस से प्रभावित पशु को खुले में चरने अथवा बरदी में चरने लिये खुला नहीं छोड़ें. अपने रोगी पशु को घर में ही बांधकर रखें.
6लम्पी वायरस के संक्रमित क्षेत्र में पशुओं के आने-जाने पर यथा संभव प्रतिबंध लगाना चाहिए. लम्पी वायरस की वजह से मृत पशु की शव को खुले पर नहीं छोड़ें.
7मृत पशु के शव को गड्ढे खोदकर, चुना, नमक डालकर दफनाना चाहिए.

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प्रिय किसान भाइयों पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.

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