कुत्ते काटने पर पशुओं में लक्षण और उपचार : Kutte Ke Katne Par Pashuon Me Prathmik Upchar
कुत्ते काटने पर पशुओं में लक्षण और उपचार : Kutte Ke Katne Par Pashuon Me Prathmik Upchar, पशुओं में रेबीज रोग सामन्यतः कुत्तो, नेवले, बिल्लियों और लोमड़ियों में होता है. लेकिन कभी-कभी रेबीज रोग दुधारू पशु जैसे गाय, भैंस, बकरी में कुत्ते, बिल्ली, नेवले और लोमड़ियों के काटने या उनके अन्य रोग वाहक पदार्थ के संपर्क में आ जाने से हो जाता है.

दुधारू पशु जैसे गाय, भैंस, भेड़, बकरी इत्यादि पशुओं में रेबीज रोग हो जाने पर इसके विषाणु दूध में आ सकते है. इसलिए इस रोग से प्रभावित पशुओं के दूध का सेवन कतिपय न करें. इस रोग के लक्षण और बचाव की सही जानकारी पशुपालक को नही होने के कारण, उपचार के अभाव में कई बार पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है. आज आपको इस पोस्ट के मध्य से आपके पशु या अन्य पशुओं में रेबीज रोग हो जाने के लक्षण, पहचान और प्राथमिक उपचार की जानकारी दी जाएगी.
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रेबीज के कारक
रेबीज वायरस रेबडो वायरस, जीनस लिस्सा वायरस से संबंधित है. इसका आकार पिस्तौल की गोली की तरह होता है. इसकी लम्बाई लगभग 180 नैनो मीटर ओर व्यास 75 नैनो मीटर होता है. यह विषाणु स्नायुतंत्र की कोशिकाओं में अपनी वृद्धि करते हैं.
गर्म खून वाले पशु इस विषाणु के लिए ग्रहणक्षम है. ग्रहणक्षमता सभी जातियों में अलग है. पशु जैसे कुत्ता, लोमड़ी, भेड़िया, सियार, नेवला इस रोग के अत्याधिक ग्रहणक्षम है व विषाणु के वाहक है. घरेलु पशु जैसे गाय, भैंस, भेड़-बकरी, सुअर आदि भी रोग से ग्रसित होते हैं. यह विषाणु नर्वस टिश्यु, सेलिवरी ग्लेंड से लाइवा में पाए जाते हैं. बहुत कम बार यह लिम्फ, दूध व मूत्र में पाया जाता है.
पशुओं में रेबीज रोग के कारण
यह एक विषाणुजनित रोग है, जो कि कुत्ते, बिल्ली, बंदर, गीदड़, लोमड़ी या नेवले के काटने से स्वस्थ पशु के शरीर में प्रवेश करता है. यह रोग नाड़ियों के द्वारा मस्तिष्क में पहुंचता है और उसमें बीमारी के लक्षण पैदा करता है. बता दें कि रोग ग्रस्त पशु की लार में विषाणु ज्यादा पाया जाता है. अगर रोगी पशु दूसरे पशु को काट ले या शरीर में पहले से मौजूद किसी घाव के ऊपर रोगी की लार लग जाए, तो यह रोग फैल जाता है.
- गाय, भैंस, भेड़, बकरी या अन्य पशुओं में रेबीज रोग, इसके वाहक जानवर जैसे कुत्ता, बिल्ली, लोमड़ी आदि रेबीज रोग से ग्रस्त जानवरों के काटने से स्वस्थ पशु में फ़ैल जाता है.
- रेबीज रोग से ग्रस्त पशु के जूठन, लार, मल-मूत्र, शव आदि के संपर्क में आने वाले स्वस्थ पशुओं में भी रेबीज रोग होने की सम्भावना होती है.
- संक्रमित पशुओं के काटने पर रेबीज के विषाणु स्वस्थ पशुओं के शरीर में प्रवेश करता है, जिससे स्वस्थ पशु भी रेबीज रोग से प्रभावित हो जाता है.
पशुओं में रेबीज रोग के लक्षण
रेबीज एक वायरल रोग है जो स्तनधारियों को प्रभावित करता है. अक्सर यह जंगली जानवरों को प्रभावित करता है परन्तु मनुष्य व घरेलु पशु (पशुधन) भी जोखिम पर हैं. यह एक जूनोटिक रोग है जो पशु से मनुष्य व मनुष्य से पशुओं में फैलता है. इसमें रोगी के व्यवहार में बदलाव अधिक उत्तेजना, पागलपन, पक्षघात व मौत हो जाती है.
यह विषाणु मनुष्यों और पशुओं के मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी सहित केन्द्रीय तंत्र को प्रभावित करता है. ऊष्मायन अवधि के दौरान, विषाणु नसों से मस्तिष्क तक पहुँचता है. इस प्रक्रिया में औसतन एक से तीन माह लगते हैं परन्तु कभी-कभी कुछ दिन व कुछ साल भी लग जाते हैं. रेबीज विषाणु दो रूप में प्रभावित करता है, उग्र व लकवा ग्रस्त (गूंगा) रूप है.
- रेबीज रोग से संक्रमित पशु जैसे गाय, भैंस, भेड़, बकरी इत्यादि को पानी से डर लगता है.
- पशु अपना सर पेड़ या दिवार पर मारने लगता है.
- हल्का तापमान, अस्वस्थता, भूख का कम लगना व दूध उत्पादन में कमी.
- पशुओं में उग्रता या पागलपन के लक्षण दिखाई देने लगता है.
- कई बार पशुओं के पिछली टांगे कमजोर हो जाने के कारण लकवा के लक्षण दिखाई देने लगता है.
- पशुओं के मुह से झाग और लार गिरने लगता है.
- रोग ग्रस्त पशु खाना-पीना कम कर देता है.
- मुख की मांसपेशियों के पक्षाघात के कारण पशु मुंह खुला रखता है मानो कोई चीज फंसी हो तथा अधिक लार गिराता व दांत पीसता है.
- पशु को कुछ निगलने व पानी पीने में तकलीफ होती है व बिना आवाज रंभाने की कोशिश करता है. पानी पीने से डरता है.
- पशुओं में यौन इच्छा बढ़ जाती है, बार-बार पेशाब करते हैं, गाय व भैंस गर्मी के लक्षण प्रकट करती है जबकि सांड गाय व भैंस पर चढ़ता है.
- इसके रोगी पशु कमजोर हो जाता, परन्तु उत्तेजित दिखाई देता है.
- रेबीज रोग से ग्रसित पशु कान खड़ी करके चिल्लाने लगती है.
- कई बार पशु को खुला छोड़ देने पर अन्य पशु या आदमियों को मारने या काटने को दौड़ती है.
- रेबीज रोग के तीव्र अवस्था में पशु के मुह से अनवरत लार गिरने लगता है और रोग ग्रस्त पशु चिल्ला-चिल्ला कर मौत को गले लगा लेती है.
पशुओं को रेबीज रोग से बचाव के तरीके
मनुष्य में इसे हाइड्रोफोबिया या जलटांका कहते हैं क्योंकि इस रोग में गले की मांसपेशियों में ऐठन से रोगी पानी नहीं पी पाता है. रेबीज कुछ देशों को छोड़कर दुनिया के सभी भागों में पाया जाता है. सख्त नियमों तथा रोकथाम के प्रभावशाली उपायों के कारण आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, डेनमार्क, ब्रिटेन जैसे देशों में रेबीज का नामों निशान नहीं है. भारत में रेबीज का एक विकराल रूप है.
- पशुओं को कुत्ते या बिल्लियों से दूर रखना चाहिए.
- पशु को कुत्ते, बिल्ली, नेवले, लोमड़ी आदि रोगवाहक जानवरों के काटने पर तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.
- कुत्ते, बिल्ली, नेवले, लोमड़ी आदि रोगवाहक जानवरों के काटने पर पशु को तुरंत एंटीरेबीज का टीका पशुचिकित्सक के परामर्श अनुसार लगवाना चाहिए.
- कुत्ता जिस दिन पशु को काटे, उसी दिन या 3,7,14 या 30 वें दिन पशु का वैक्सीनेशन कराना शुरु कर दें. अगर ऐसा नहीं करते हैं तो पशु मर भी सकता है.
- यदि आपके गाय, भैंस, बकरी, आदि को कुत्ता काट ले तो, काटे हुए जगह को साफ पानी से 15-20 मिनट तक धोना चाहिए.
- काटे हुए जगह को साबुन से अच्छी तरह से साफ़ करके उस पर एंटीसेप्टिक दवायें लगानी चाहिए.
- रोग ग्रस्त पशु के खाने-पिने एवं रखने की अलग से व्यवस्था करनी चाहिए.
रेबीज का उपचार
प्रारंभ में पशु को कुत्ते, बिल्ली, लोमड़ी, गीदड़, नेवला इत्यादि के कट लेने पर पशुचिकित्सक से संपर्क करें तथा पशुचिकित्सक के सलाह अनुसार प्रभावित पशु को एंटीरेबीज का टीका लगवाना ही इसका सबसे बड़ा उपचार है. क्योंकि रेबीज रोग से ग्रस्त पशु का उपचार असंभव है, एक बार यदि रेबीज लक्षण आ जाएँ तो इसका उपचार संभव नहीं है, रोग के लक्षण प्रकट हो जाने पर पशु या मनुष्य की मौत निश्चित है. दवाइयों की सहायता से केवल रोगी पशु में उत्तेजना, दौर तथा कष्ट को कम किया जा सकता है इसलिए इसकी रोकथाम ही एकमात्र उपाय है.
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