दुधारू पशुओं में किटोसिस रोग : Kitosis Disease in Dairy Cattle
इन्हें भी पढ़ें :- पशुशाला निर्माण के लिये स्थान का चयन ऐसे करें.
इन्हें भी पढ़ें :- नेपियर घास बाड़ी या बंजर जमीन पर कैसे उगायें?
इन्हें भी पढ़ें :- बरसीम चारे की खेती कैसे करें? बरसीम चारा खिलाकर पशुओं का उत्पादन कैसे बढ़ायें?
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में क्लोन तकनीक से कैसे बछड़ा पैदा किया जाता है?
इन्हें भी पढ़ें :- वैज्ञानिकों ने साहीवाल गाय दूध पौष्टिक और सर्वोत्तम क्यों कहा?
दुधारू पशुओं में किटोसिस रोग : Kitosis Disease in Dairy Cattle, यह एक उपापचयक रोग है जो प्रायः दुधारू पशुओं के शरीर में कार्बोहाइड्रेट (CHO) की कमी के कारण होता है. किटोसिस को एसीटोनीमियां बीमारी भी कहते हैं. यह रोग प्रायः पशु के ब्याने के एक महीने के बाद पशु में किटोसिस बीमारी के लक्षण दिखाई देता है. किटोसिस बीमारी का ज्यादा प्रकोप पशु में तीसरे ब्यात में देखा गया है. इस बीमारी से पशु के मुंह और मूत्र से मीठी सुगंध आती है. किटोसिस को आसान भाषा में समझने के लिये, जब कोई व्यक्ति कीटो डायट में होता है तो वह अपने शरीर में कार्बोहाइड्रेट (CHO) की मात्रा लेना कम कर देता है. तथा इस डायट में व्यक्ति फैट या वसा की मात्रा ज्यादा लेता है. इस स्थिति में व्यक्ति कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम लेना शरीर में किटोसिस पैदा कर देता है. ठीक उसी प्रकार पशुओं में भी कार्बोहाइड्रेट की कमी से किटोसिस रोग होता है. किटोसिस एक ऐसी प्रक्रिया होती है जब शरीर में उर्जा के लिये पर्याप्त कार्बोहाइड्रेट नहीं होता है. किटोसिस बीमारी से प्रभावित दुधारू पशु का न ही शारीरक वजन और दूध उत्पादन कम हो जाता है, बल्कि पशु का दुबारा प्रजनन में भी काफी दिक्कतें आती है. पशुओं में ऐसी स्थिति शरीर में कार्बोहाइड्रेट व वोलेटाइल फैटी एसिड के मेटाबोलिज्म में गड़बड़ी से उत्पन्न होती है. जिससे वसा और कार्बोहाइड्रेट के वितरण व पाचन में असंतुलन से किटोसिस रोग होता है.

किटोसिस रोग के कारण
1 . पशुओं के द्वारा कार्बोहाइड्रेट (CHO) खाने के बाद रूमेन में किण्वन प्रक्रिया होती है. किण्वन प्रक्रिया के दौरान पहु के रुमेन में एसिटिक एसीड, ब्युटरिक एसीड, प्रोपिओनिक एसिड, बनते है. इसमें एसिटिक एसीड और ब्युटरिक एसीड कीटोजेनिक हैं तथा प्रोपिओनिक एसिया या अम्ल ग्लुकोजेनिक है. ग्लुकोजेनिक और कीटोजेनिक अम्ल का प्रमाण एक स्वस्थ पशु में 4:1 होता है. जब पशु ज्यादा साइलेज खाते हैं तब इसमें संतुलन बिगड़कर कीटोजेनिक पदार्थ ज्यादा बनने से पशु में किटोसिस रोग हो जाता है.
2. दूध देने वाले पशुओं को कार्बोहाइड्रेट (CHO) युक्त चारा, दाना नहीं खिलाने पर कार्बोहाइड्रेट (CHO)की कमी होती है, जिससे किटोसिस रोग होता है.
3. जब रक्त में ग्लूकोज कम पड़ता है तब शरीर में संचित किया हुआ वसा, प्रोटीन और ग्लूकोज का उपयोग ग्लूकोज बनाने के लिये करते हैं, जिससे ज्यादा मात्रा में कीटोन बॉडी तैयार होती है और पशु को किटोसिस होता है.
4. उच्च कोटि के प्रोटीन ज्यादा मात्रा में खिलाने से किटोंन बॉडी ज्यादा बनती है तथा पशु को किटोसिस रोग होता है.
5. यह रोग प्रायः गाय, भैंस और भेड़ में होता है जिनकी उत्पादन क्षमता अधिक होती है. अतः उन्हें ब्याने के बाद आहार भी अधिक मिलता है और पशु को पुरे दिन घर में रखा जाता है जिससे पशु को व्यायाम नहीं मिलता है. जिससे पशु में पाचन सम्बन्धी अन्य विकार उत्पन्न होता है और पशु किटोसिस रोग से प्रभाबित होता है.
6. देशी नस्ल के पशुओं में किटोसिस नहीं के बराबर होता है परन्तु संकर नस्ल के पशुओं में किटोसिस बीमारी ज्यादा प्रभावित होता है.
7. बरसात एवं सर्दी के मौसम में पशु को अधिक मात्रा और अधिक गुणवत्ता युक्त चारा, दाना खाने को मिलता है जिससे पशु में दुग्ध उत्पादन बढ़ने पर पशु तनाव में आ जाता है और किटोसिस हो जाता है. यदि पशु को ब्याने के बाद कम मात्रा और कम गुणवत्ता युक्त चारा, दाना देने से भूख के कारण कार्बोहाइड्रेट व चर्बी या वसा की मेटाबेलिज्म में गड़बड़ी से ब्याने के बाद किटोसिस हो जाता है.
8. यदि पशु ब्याने के बाद मेस्टायटिस, दर्द या अन्य कोई कारण से कम खाना खाता है, भले ही उसे गुणवत्ता युक्त खाना क्यों न दिया जाये परंतु पशु खाना कम खाता है तो उसे किटोसिस होने की सम्भावना बढ़ जाती है. कभी – कभी दुधारू पशुओं में किटोसिस और मिल्क फीवर एक साथ होता है.
पशुओं में किटोसिस के लक्षण
1 . किटोसिस से प्रभावित पशु शारीरिक स्थिति कमजोर हो जाता है और दुग्ध उत्पादन क्षमता कम हो जाती है.
2. पशु के शरीर का तापमान सामान्य से थोड़ा कम हो जाता है.
3. पशु गोल घूमता है और लडखडाकर चलता है.
4. पशु पैरों को क्रास करते समय ( Crises Crossing ) क्रिस क्रासिंग करते हुए चलता है और लगातार खड़े रहता है.
5. पशु के श्वास में, दुग्ध में और मूत्र में मीठी गंध आती है.
6. कभी- कभी पशुओं को दिखाई देना भी बंद हो जाता है, जिससे पशु अंधेपन का शिकार हो जाते हैं और पशु का जुबान बाहर निकल जाता है.
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में रासायनिक विधि से गर्भ परीक्षण कैसे करें?
इन्हें भी पढ़ें :- पशुशेड निर्माण करने की वैज्ञानिक विधि
इन्हें भी पढ़ें :- बटेर पालन बिजनेस कैसे शुरू करें? जापानी बटेर पालन से कैसे लाखों कमायें?
इन्हें भी पढ़ें :- कड़कनाथ मुर्गीपालन करके लाखों कैसे कमायें?
इन्हें भी पढ़ें :- मछलीपालन व्यवसाय की सम्पूर्ण जानकारी.
किटोसिस का रोकथाम
1 . पशु को गर्भावस्था या गाभिन होने के दौरान ज्यादा वसा युक्त पदार्थ न खिलाये.
2. गाभिन गाय को भूखा नहीं रखना चाहिए, उन्हें संतुलित आहार के रूप में कापर (Cu), कोबाल्ट (CO), और फास्फोरस (P) खनिज लवण की पर्याप्त मात्रा खनिज लवण आहार में देनी चाहिए.
3. पिसा हुआ मक्का पर्याप्त मात्रा में देनी चाहिए, क्योंकि ये बहुत जल्दी पचकर शरीर में ग्लूकोज के प्रमाण को बढ़ाता है.
उपचार
1 . किटोसिस बीमारी के उपचार का मुख्य उद्देश्य रक्त में शर्करा के मात्रा को बराबर करना ताकि शर्करा की अत्यधिक मात्रा न हो और कीटोंन बॉडी का का समान्य उपयोग हो सके तथा शर्करा मूत्र व दूध में नहीं निकले.
2. डेक्सट्रोज की 25% इंजेक्शन की 500 ml या 1000 मल दें तथा इसके पश्चात् पशु के शरीर में ग्लूकोज की मात्रा सामान्य बना रहे इसलिए पशु को आहार के साथ गुड खिलाते रहें.
3. इंजेक्शन बेटामेथासोन या डेक्सामेथासोन काफी लाभदायक होते हैं. 80 एमजी इंट्रामस्कुलर या इंट्रावेनस विधि से दें. यदि पशु को एक दिन में आराम नहीं मिलता तो दुसरे दिन भी दे.
4. सोडियम प्रोपियोनेट 100 से 200 ग्राम कम से कम 3 दिन तक खिलाएं.
5. कोएंजाइम ए – सिस्टीयामिन, 750 एमजी इंट्रावेनस कम से कम 3 दिन के अन्तराल में कुल 3 इंजेक्शन लगायें.
6. इंजेक्शन लीवर एक्सट्रैक्ट 10 ml इंट्रामस्क्युलर विधि से एक दिन के अन्तराल में कम से कम तीन दिन तक लगायें.
इन्हें भी देखें :- खुरहा/खुरपका – मुंहपका रोग का ईलाज और लक्षण
इन्हें भी देखें :- लम्पी स्किन डिजीज बीमारी से पशु का कैसे करें बचाव?
प्रिय किसान भाइयों पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.
जाने :- लम्पी वायरस से ग्रसित पहला पशु छत्तीसगढ़ में कहाँ मिला?
किसी भी प्रकार की त्रुटि होने पर कृपया स्वयं सुधार लेंवें अथवा मुझे निचे दिए गये मेरे फेसबुक, टेलीग्राम अथवा व्हाट्स अप ग्रुप के लिंक के माध्यम से मुझे कमेन्ट सेक्शन मे जाकर कमेन्ट कर सकते है. ऐसे ही पशुधन, कृषि और अन्य खबरों की जानकारी के लिये आप मेरे वेबसाइट pashudhankhabar.com पर विजिट करते रहें. ताकि मै आप सब को पशुधन से जूडी बेहतर जानकारी देता रहूँ.
पशुधन के रोग –
इन्हें भी पढ़ें :- बकरीपालन और बकरियों में होने वाले मुख्य रोग.
इन्हें भी पढ़ें :- नवजात बछड़ों कोलायबैसीलोसिस रोग क्या है?
इन्हें भी पढ़ें :- मुर्गियों को रोंगों से कैसे करें बचाव?
इन्हें भी पढ़ें :- गाय, भैंस के जेर या आंवर फंसने पर कैसे करें उपचार?
इन्हें भी पढ़ें :- गाय और भैंसों में रिपीट ब्रीडिंग का उपचार.