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खुरपका मुंहपका रोग नियंत्रण के उपाय : Khurha Rog Se Pashuon Ka Upchar

खुरपका मुंहपका रोग नियंत्रण के उपाय : Khurha Rog Se Pashuon Ka Upchar, मुंहपका-खुरपका रोग (Foot-and-mouth disease, FMD या hoof-and-mouth disease) विभक्त-खुर वाले पशुओं का अत्यन्त संक्रामक एवं घातक विषाणुजन्य रोग है। यह गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर आदि पालतू पशुओं एवं हिरन आदि जंगली पशुओं को होता है।

Khurha Rog Se Pashuon Ka Upchar
Khurha Rog Se Pashuon Ka Upchar

खुरहा रोग के लक्षण

  • इस रोग के आने पर पशु को तेज बुखार हो जाता है।
  • बीमार पशु के मुंह, मसूड़े, जीभ के ऊपर नीचे ओंठ के अन्दर का भाग खुरों के बीच की जगह पर छोटे-छोटे दाने से उभर आते हैं,
  • फिर धीरे-धीरे ये दाने आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते हैं।
  • समय पाकर यह छाले फल जाते हैं और उनमें जख्म हो जाता है।
  • ऐसी स्थिति में पशु जुगाली करना बंद कर देता है।
  • मुंह से तमाम लार गिरती है। पशु सुस्त पड़ जाते है। कुछ भी नहीं खाता-पीता है।
  • खुर में जख्म होने की वजह से पशु लंगड़ाकर चलता है।
  • पैरों के जख्मों में जब कीचड़ मिट्टी आदि लगती है तो उनमें कीड़े पड़ जाते हैं और उनमें बहुत दर्द होता है। पशु लंगड़ाने लगता है।
  • दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन एकदम गिर जाता है।
  • वे कमजोर होने लगते हैं। समय पाकर व इलाज होने पर यह छाले व जख्म भर जाते हैं परन्तु संकर पशुओं में यह रोग कभी-कभी मौत का कारण भी बन सकता है।
  • यह एक विषाणु जनित बीमारी है जो फटे खुर (Cloven Footed) वाले पशुओं को ग्रसित करती है। इसकी चपेट में सामान्यतः गौवंश, भैसवंश, भेड़, बकरी, सुकर आदि जाति के पशु आते हैं। यह छूत की बीमारी है।
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रोग के मुख्य लक्षण

  • पशु प्रभावित होने वाले पैर को झाड़ना (पटकना)
  • पैरो में सूजन (खुर के आस-पास)
  • लंगड़ाना
  • अल्प अवधि (एक से दो दिन) का बुखार
  • खुर में घाव होना एवं घावों में कीड़ा (Maggots) हो जाना
  • कभी-कभी खुर का पैर से अलग हो जाना
  • मुँह से लार गिरना
  • जीभ, मसूड़े, ओष्ट आदि पर छाले पड़ जाते हैं, जो बाद में फूटकर मिल जाते है
  • उत्पादन क्षमता में अत्यधिक ह्रास
  • बैलों की कार्य क्षमता में कमी
  • प्रभावित पशु स्वस्थ्य होने के उपरान्त भी महीनों हांफते रहता है
  • बीमारी से ठीक होने के बाद भी पशुओं की प्रजनन क्षमता वर्षों तक प्रभावित रहती है।
  • शरीर के रोयें तथा खुर बहुत बढ़ जाते हैं
  • गर्भवती पशुओं में गर्भपात की संभावना बनी रहती है।

खुरहा रोग का संक्रमण

पशुओं में खुरहा रोग का संक्रमण सामान्यतः ठंड और गर्मी के दिनों में क्रमशः नवम्बर-दिसंबर तथा मार्च अप्रैल में अधिक दिखाई देता है, क्योंकि उस समय खरीफ़ फसल की कटाई तथा रबी फसल की कटाई के बाद जानवरों को चराने के लिए चरवाहों द्वारा दूर-दूर तक या अन्य जगहों पर ले जाया जाता है या जानवरों को खुला छोड़ दिया जाता है। जिससे की स्वस्थ जानवर अन्य खुरपका-मुंहपका रोग संक्रमण वाले क्षेत्र या पशु के संपर्क आने से स्वस्थ पशु भी रोग से ग्रस्त होकर रोग को दुसरे पशुओं में फैलाता है। अतः समस्त पशुपालक बंधुओं से मेरा निवेदन है कि पशुचिकित्सा विभाग द्वारा समय-समय पर लगाए जाने वाले खुरपका-मुंहपका (FMD), गलघोटू, एकटंगिया (HS+BQ), लम्पी स्किन डिसीस (LSD) आदि टीका को अवश्य लगवायें और अपने पशुओं को रोगमुक्त रखने में अपना योगदान देवें।

टीकाकरण के प्रति भ्रांतियां

पशुओं में टीकाकरण ही रोग को फैलने से रोकने का मुख्य उपाय है. प्रायः जब पशुचिकित्सा विभाग द्वारा टीकाकरण के लिए गावों में जाते है तो कुछ पशुपालक अपने पशुओं में टीकाकरण करने नहीं देते हैं और पशुओं के कमज़ोर हो जाने, पशुओं के बीमार हो जाने, दुधारू पशु के दूध कम हो जाने जैसे अन्य बातों का हवाला देकर टीका नहीं लगवाते हैं। पशुपालक कृपया ध्यान देवे पशुओं में लगने वाले टीका हमारे वैज्ञानिकों कई वर्षों के प्रयोग, शोध, परिक्षण आदि के सफल होने के बाद का परिणाम होता है। इससे पशुओं में टीकाकरण से नुकसान नही होता है। उन पशुपालकों से मेरा निवेदन है कि पशुओं में लगने वाले टीका पशुओं को रोग मुक्त करके उनको सुरक्षा प्रदान करता है ना कि उनको नुकसान पहुचाने का. यदि आपके पशु को टीका नहीं लगता है तो आपका पशु विभिन्न प्रकार के रोगों के प्रति आकर्षित होते जाता है और विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रस्त होकर रोग को स्वस्थ पशुओं में फैलाता है.

उपचार

  • सबसे पहले पशुओं को प्रतिवर्ष खुरपका-मुंहपका (FMD) की टीका लगवा लेने से पशुओं में खुरहा रोग होने की सम्भावना नहीं के बराबर होती है।
  • रोगग्रस्त पशु के पैर को नीम एवं पीपल के छाले का काढ़ा बना कर दिन में दो से तीन बार धोना चाहिए।
  • प्रभावित पैरों को फिनाइल-युक्त पानी से दिन में दो-तीन बार धोकर मक्खी को दूर रखने वाली मलहम का प्रयोग करना चाहिए।
  • मुँह के छाले को 1 प्रतिशत फिटकरी अर्थात 1 ग्राम फिटकरी 100 मिलीलीटर पानी में घोलकर दिन में तीन बार धोना चाहिए। इस दौरान पशुओं को मुलायम एवं सुपाच्य भोजन दिया जाना चाहिए।
  • पशु चिकित्सक के परामर्श पर दवा देनी चाहिए।

सावधानियाँ

  • प्रभावित पशु को साफ एवं हवादार स्थान पर अन्य स्वस्थ्य पशुओं से दूर रखना चाहिए।
  • पशुओं की देखरेख करने वाले व्यक्ति को भी हाथ-पांव अच्छी तरह साफ कर ही दूसरे पशुओं के संपर्क में जाना चाहिए।
  • प्रभावित पशु के मुँह से गिरने वाले लार एवं पैर के घाव के संसर्ग में आने वाले वस्तुओं पुआल, भूसा, घास आदि को जला देना चाहिए या जमीन में गड्ढा खोदकर चूना के साथ गाड़ दिया जाना चाहिएइलाज से बेहतर है बचाव के सिद्धान्त पर छः माह से ऊपर के स्वस्थ पशुओं को खुरहा-मुँहपका रोग के विरूद्ध टीकाकरण करवाना चाहिए।
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टीकाकरण

इलाज से बेहतर है बचाव के सिद्धान्त पर छः माह से ऊपर के स्वस्थ पशुओं को प्रतिवर्ष खुरहा-मुँहपका रोग के विरूद्ध टीकाकरण करवाना चाहिए। क्योंकि जिन्पशुओं में खुरपका-मुंहपका (FMD) रोग का टीकाकरण नहीं होता है, उन पशुओं को रोग का संक्रमण फैलने पर बहुत अधिक रोग संचरण की सम्भावना होती है। अतः समस्त पशुपालक से निवेदन है कि खुरहा रोग फैलने से पहले प्रतिवर्ष नवम्बर-दिसंबर माह में खुरपका-मुंहपका रोग नियंत्रण की टीका (FMD) लगवाने के लिए अपने नजदीकी पशुचिकित्सालय से सम्पर्क कर सकते हैं।

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