गाय भैंस के गर्भाशय में संक्रमण और रोकथाम : Infection and Prevention in the Uterus of Cow Buffalo
गाय भैंस के गर्भाशय में संक्रमण और रोकथाम : Infection and Prevention in the Uterus of Cow Buffalo, पशुओं का देश की अर्थव्यवस्था में एक बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है. पशु किसानों की आय का एक मुख्य श्रोत भी है. लेकिन इसके लिये पशुओं का उत्पादन एवं प्रजनन दोनों का उत्तम होना आवश्यक है.

गाय भैंस के गर्भाशय में संक्रमण और रोकथाम : Infection and Prevention in the Uterus of Cow Buffalo, पशुओं का देश की अर्थव्यवस्था में एक बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है. पशु किसानों की आय का एक मुख्य श्रोत भी है. लेकिन इसके लिये पशुओं का उत्पादन एवं प्रजनन दोनों का उत्तम होना आवश्यक है. दूध उत्पादन भी तभी श्रेष्ठ होगा, जब पशु का प्रजनन चक्र भी सही समय में चलेगा. प्रजनन चक्र सही समय पर चलने के लिये गर्भाशय का स्वस्थ होना जरुरी है. इसके लिये पशुपालक को गर्भाशय में होने वाले संक्रमण के कारण एवं उनके रोकथाम के उपाय पता होना चाहिए.
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बच्चेदानी या गर्भाशय में संक्रमण के कारण
1 . पशु के ब्याने या जनने के बाद गर्भाशय में जेर रुक जाने के कारण या गर्भाशय की अच्छे से सफाई नहीं होने के कारण गर्भाशय में संक्रमण अर्थात प्युरपैरल मेट्रायटिस हो सकती है. यह पशु के ब्याने के बाद गर्भाशय से भूरे रंग के मवाद युक्त बदबूदार स्त्राव बाहर निकलता है. अतः पशु के ब्याने के बाद गर्भाशय में संक्रमण को रोकने के लिये गर्भाशय के अन्दर जेर या आंवर की अच्छे से सफाई करना बहुत ही आवश्यक है. गर्भाशय में संक्रमण से पशुओं की दूध उत्पादन एवं पशु के अगली बार गर्भित होने पर भी सवाल उठता है. कभी – कभी गर्भाशय में संक्रमण का उचित उपचार नहीं होने के कारण पशुओं में गर्भ का नहीं ठहरना, रिपीट ब्रीडिंग आदि जैसी समस्या उत्पन्न होती है.
2. पशुओं के गर्भाशय में संक्रमण का कारण पशुओं का सही प्रबंधन का नही होना भी हो सकता है. पशु को रखने वाले स्थान का गन्दा होना या प्रतिदिन साफ सफाई नहीं होने पर संक्रमण हो सकता है. पशु के बैठने उठने पर ये संक्रमण योनी मार्ग से धीरे धीरे बच्चेदानी या गर्भाशय तक पहुँच जाते है. शुरुवाती अवस्था में संक्रमण बच्छेदानी के निचले/अन्दर वाली परत पर होती है. जिससे बच्चेदानी में सुजन आ जाति है और इसे एंडोमेटराइटिस कहते है. इससे बचने के लिये बच्चेदानी के रास्ते में एंटीबायोटिक या जेली का लेप किया जा सकता है. इसके लिये पशुचिकित्सक का सलाह लेना भुत ही आवश्यक है.
पशुओं में संक्रमण की तीव्रता अग्रलिखित बातों पर भी निर्भर करता है जैसे – पशु के गर्भाशय में स्त्राव की मात्रा की अधिकता, गर्भाशय और पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा जीवाणुओं की पोषण हेतु गर्भाशय के अन्दर बचे जेर या पदार्थ की मात्रा.
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गर्भाशय में संक्रमण के लक्षण
1 . सामान्यतः गर्भाशय में संक्रमण हो जाने पर ब्याने के बाद बदबूदार तरल स्त्राव योनी मार्ग से या बार बार पेशाब करने पर बाहर निकलता है. कभी – कभी गर्भाशय से अत्यधिक मात्रा में तरल पदार्थ बाहर निकालता है.
2. गर्भाशय में संक्रमण से पशु के शरीर में कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते है जैसे – गर्भाशय के आकार का बड़ा हो जाना, शरीर का तापमान का कम या ज्यादा हो जाना, गर्भाशय या योनी मार्ग में दर्द महसूस करना आदि.
3. पशु का चारा कम खाना तथा पानी कम पीना. पशु के खान -पान में अंतर होने पर पशु में दूध उत्पादन का एकाएक गिर जाना.
4. पशु के गुदामार्ग या योनी मार्ग द्वारा परिक्षण करने पर पशु को असहनीय दर्द का होना और बेचैन हो जाना.
5. पशु में लैमीनाइटिस के कारण लंगड़ापन होना अर्थात पशु का लंगड़ाकर चलना.
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व्हाईटसाईट टेस्ट या परीक्षण
यह गर्भाशय के संक्रमण की सरल और उपयोगी जाँच विधि का नाम है. इससे गर्भाशय में होने वाले संक्रमण और उसके तीव्रता का पता लगाने का आसान तरीका है. यह फील्ड में जाकर पशु के गर्भाशय की संक्रमण का जाँच करने करने का सबसे उपयुक्त और कारगर तरीका है.
परिक्षण की विधि
1 . जब मादा पशु गर्मी या हिट में आती है तो उसके योनी से निकलने वाले स्त्राव 3 से 5 मिली मात्रा को लेकर सोडियम हाईड्रा आक्साइड के 5% घोल परखनली में मिला लेतें हैं. उसके बाद परखनली को 80 से 100 सेंटीग्रेट गर्म पानी में रख देते है. गर्म होने के पश्चात् टेस्ट ट्यूब में साधारण पानी डालकर ठंडा करना होता है.
2. यदि आप पाते हैं की 30 से 40 मिनट के बाद या इससे भी कम समय में धीरे धीरे घोल का रंग पीले रंग में परिवर्तित हो जाता है तो इसका अर्थ गर्भाशय के अन्दर संक्रमण निश्चित होता है.
3. घोल का रंग यदि अत्यधिक पीला दिखाई दे, तो इसका मतलब संक्रमण की गंभीर आशंका हो सकता है.
4. यदि घोल का रंग पीले रंग में परिवर्तित नहीं होती है तो इसका मतलब गर्भाशय में संक्रमण नहीं है.
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उपचार
यदि किसी भी गाय अथवा भैंस में संक्रमण का पता चलता है तो पशुपालक इसका उपचार नजदीकी पशुचिकित्सक या योग्य पशुचिकित्सक से ही इसका ईलाज कारण उचित है. गर्भाशय में संक्रमण का उपचार कराने से आशय संक्रमण को रोकना तथा गर्भाशय की अंदरूनी परत अर्थात एंडोमेट्रियम को अपने सामान्य अवस्था में वापस लाता है. जिससे सफल गर्भाधान संभव हो पाता है. मवाद की जीवाणु जाँच द्वारा सेंसटीवीटी टेस्ट करा लेना उचित होता है ताकि उपयुक्त प्रतिजैविक औषधि के प्रयोग से संक्रमण को जल्दी समाप्त किया जा सके.
1 . पोवीडीन आयोडीन, 5% घोल को 50ml आसुत जल में मिलाकर गर्भाशय में डालें अथवा पशुचिकित्सक द्वारा बताये गए अन्य उपयुक्त औषधि का प्रयोग कर सकते हैं.
2. अथवा गर्भाशय में ओक्सीटेट्रासाईंक्लीन आई यु, मेट्रोनिडाजोल आई यु, लुगाल्स आयोडीन आदि को डालने पर संक्रमण को समाप्त किया जा सकता है.
3. पशुचिकित्सक के देखभाल में पशु का उपचार कराना उचित और ज्यादा लाभप्रद होगा.
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गर्भाशय का संक्रमण से बचाव
1 . वास्तव में गर्भाशय में संक्रमण पशु घर की साफ़ सफाई में कमी के कारण ही अधिक होता है. ऐसे पशु के ब्याने के समय और बाद में बांधने के स्थान की नियमित सफाई जरुरी होता है.
2. पशुओं के कष्ट प्रसव के दौरान बछड़ा अटक जाने, जेर के फंस जाने पर हाथ से निकालने से गर्भाशय में संक्रमण फैलने का डर रहता है. अतः इस स्थिति में गर्भाशय की सफाई के लिये लगातार कम से कम तीन दिन तक इंट्रायुटेराइन प्रतिजैविक औषधि को गर्भाशय के अन्दर डालना उचित होता है.
3. यदि पशु ब्रुसोलेसिस, कम्पायबैक्टीरियोसिस या ट्रैकोमोनियासिस रोग से पीड़ित है तो उसका उपचार पशुचिकित्सक से कराना उचित होता है.
4. पशुओं के गर्भाशय में डालने वाले घोल पोविडींन, लुगाल्स, पोटेशियम परमैगनेट आदि का उचित तनुकरण करके ही गर्भाशय में डालना चाहिए. कभी-कभी गर्भाशय की संक्रमण को जल्दी ठीक करने के उद्देश्य से कई लोग स्ट्रांग पोविडीन, लुगाल्स या पोटेशियम परमैगनेट आदि का प्रयोग करते है. जो की पशु के गर्भाशय या गर्भधारण के लिये बहुत ही घातक और बुरे नतीजे आने की सम्भावना बनी रहती है. भविष्य में गर्भधारण के समय काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.
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प्रिय किसान भाइयों पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप मेरे वेबसाइट pashudhankhabar.com पर हमेशा विजिट करते रहें.
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