कंधा पकने पर पशुओं का देशी ईलाज : Indigenous Treatment of Animals on Shoulder Ripening
कंधा पकने पर पशुओं का देशी ईलाज : Indigenous Treatment of Animals on Shoulder Ripening, पशुपालकों को मवेशियों और अन्य पशुधन के बीमार या अस्वस्थ हो जाने पर उनका शीघ्र उपचार कराकर उन्हें तंदुरस्त बनाये रखना बहुत ही आवश्यक होता है. पशुओं में संक्रामक रोगों के अलावा भी बहुत सारे रोग ऐसे हैं जो पशुओं के उत्पादन क्षमता और कार्य क्षमता को प्रभावित करते है. हालाकि ये रोग उतना भयानक नहीं होते परंतु समय पर इसका उपचार नहीं किया जाये तो ये भयानक ख़तरनाक सिद्ध हो सकते है. पशु का उचित देखभाल और उपचार करके पशु के ख़तरनाक से ख़तरनाक बीमारी को ठीक किया जा सकता है. निचे कुछ साधारण बिमारियों और उनकी प्राथमिक चिकित्सा के बारे में जानकारी दी गई है.

1 . कंधा पकना
पशुपालक जानते हैं की अपने पशुओं जैसे – बैल, भैंसा और अन्य मवेशियों में कंधे के पकने या सुजन की शिकायत होती है. जिसे समय रहते ध्यान नहीं देने अथवा उपचार नहीं करने पर ये धीरे-धीरे पककर घाव भी बन जाता है. यह पशुओं में कंधे की सुजन या घाव पशुओं को कार्य में लेते समय कंधे में चोट लगने के कारण होता है. इसलिए इसका शीघ्र ही उपचार कराना आवश्यक होता है, ताकि यह भयंकर बीमारी का रूप न लेवें.
लक्षण – 1. प्रारंभ में पशु के कंधे पर हल्का-हल्का सुजन होती है जो की आकार में छोटी दिखाई देती है.
2. प्रारंभ में यह सुजन सक्त होती है और उसे छूने पर पशु को दर्द महसूस होता है.
3. धीरे-धीरे सुजन बढ़ती जाती है और कंधा लाल दिखाई देता है.
4. पशु के कंधे में सुजन की प्रारंभिक लक्षण दिखाई देते ही पशु की प्राथमिक उपचार करना अति आवश्यक होता है. पशु में उपचार के अभाव होने पर यह सुजन नर्म हो जाती है और इसके अन्दर मवाद भरा होता है.
5. पशु के कंधे का सुजन नर्म होने पर कंधा पककर हल्का-हल्का पीला दिखाई देता है, इस अवस्था में कंधे में मवाद को बाहर निकलना अति आवश्यक होता है.
प्राथमिक उपचार
1 . प्रारंभिक अवस्था में अगर पशु के कंधे की ऊपर की सुजन आकार में छोटी है तो उसके ऊपर स्वेनिल क्रीम, खान्द मलहम आदि को लगाने से सुजन धीरे-धीरे घटने लगती है, और 3-4 दिनों में सुजन ठीक हो जाती है.
2. यदि पशु के कंधे की सुजन बड़ी है तो उसे नर्म बनाने के लिये उसके ऊपर Iodax (आयोडैक्स) मरहम 7-8 दिन तक लगाना चाहिए. इस दौरान बैल या भैसा से कार्य लेना बंद कर देना चाहिए, जब तक की पशु स्वयं को स्वस्थ महसूस नहीं कर लेता.
3. प्राथमिक उपचार के अभाव में यदि पशु का कंधा पक गया हो तो पशुचिकित्सक की सलाह अनुसार या पशुचिकित्सक द्वारा कंधे के निचले भाग में चीरा लगाकर मवाद को निकाल देना चाहिए तथा अन्दर के भाग को एंटिसेप्टिक पोटैशियम परमैगनेट (KMnO4) के घोल से अच्छी तरह से धो लेना चाहिए.
4. इसके बाद टिंचर आयोडीन में डूबाई हुई बत्ती या पट्टी को अन्दर बने घाव में चिमटे की सहायता से सरकाते है. अन्दर की पूरी खाली जगह को पट्टी या बत्ती डालकर भर देना चाहिए.
5. उपर्युक्त प्रक्रिया को लगातार 7-8 दिन तक करने से जख्म या घाव ठीक हो जाता है.
6. उपर्युक्त प्रक्रिया के साथ घाव को जल्दी से ठीक करने के लिए दर्द, सुजन और घाव को सुखाने वाली गोली और इंजेक्शन का भी प्रयोग कर सकते है.
2. सामान्य घाव
अक्सर देखा गया है कि पशु किसी धारदार हथियार, लड़ने-झगड़ने, दुर्घटना, कांटा तार और अन्य कारणों के वजह से पशु की त्वचा एवं मांसपेशियां कट जाती है तथा खून बहने लगता है. इसका पशुपालक द्वारा समय पर उपचार नहीं कराने से ज्यादा खून बह जाता है. घाव पर मक्खियों के बैठने, पक्षियों के चोच मार देने से धीरे-धीरे घाव बड़ा बन जाता है और उसमें जीवाणु, विषाणु का संक्रमण हो जाता है और घाव पर कीड़ा पड़ जाता है. अतः इसका समय पर उचित उपचार करना अत्यंत आवश्यक होता है.
प्राथमिक उपचार
1 . सर्वप्रथम जख्म या घाव का पता चलते ही प्रभावित अंग में पट्टी बांधकर खून को बंद करना चाहिए.
2. खून को बंद करने के लिये रुई को टिन्चर बेन्जोइन में डुबाकर घाव के ऊपर पोहा को रखकर पट्टी बांध देना चाहिए.
3. इससे खून बंद हो जाने पर घाव को टिन्चर आयोडीन लगाकर उसके बाजू में हिमैक्स क्रीम (Himax Cream) लगाना चाहिए.
4. पट्टी के खुल जाने पर दुबारा पट्टी करनी चाहिए अन्यथा पशु द्वारा खुजलाने मने घाव बड़ा होकर जीवाणु, विषाणु का संक्रमण हो जाता है.
5. घाव के पुराना हो जाने पर उसमें मवाद भार जाता है. पशु के ऐसे जख्म को पोटेशियम परमैगनेट के घोल से अथवा हाइड्रोजनपराऑक्साइड (H2O2) से पहले साफ़ करना चाहिए. जख्म से पूरा मवाद निकालकर उसमें टिन्चर आयोडीन लगाना चाहिए और जख्म के किनारे हिमैक्स क्रीम लगाना चाहिए.
6. अगर घाव में कीड़े हो गए हों तो उसमें तारपीन तेल का पोहा बनाकर 24 घंटे के लिये घाव पर रख देना चाहिए. जिससे तारपीन तेल कीड़े के ऊपर पड़ने से कीड़े बाहर आ जाते है और कुछ मर भी जाते है. मरे हुए कीड़े की चिमटी की सहायता से बाहर निकाल लेते हैं.
7. कीड़े को बाहर निकलने के बाद जख्म को KMnO4 के घोल से अथवा H2O2 से साफ़ करके उसमें टिंचर आयोडीन लगा देना चाहिए तथा जख्म के किनारे हिमैक्स क्रीम लगाना चाहिए.
3. सींग का टूटना
पशुओं के आपस में लड़ने-झगड़ने या किसी अन्य मजबूत वस्तुओं में टकरा जाने की वजह से, कहीं झाड़ी या तार में सींग के फंस जाने से अथवा कहीं जोरों से टक्कर लग जाने की वजह से पशु के सींग टूट जाते हैं. सींग की टूट जाने की वजह से लगातार खून बहने लगता है. इस स्थिति में सींग के बहने वाली खून को बंद करना अत्यंत आवश्यक होता है अन्यथा ज्यादा खून के बाहर निकल जाने से पशु के लिये खतरा बन सकता है.
प्राथमिक उपचार
1 . सींग के टूट जाने से खून अनवरत बहने पर पशु के सींग के जड़ को कसकर सुतली बाँध देनी चाहिए.
2. जहाँ पर से सींग टुटा है वहाँ पर टिंचर बेन्जोइन लगाकर पट्टी करनी करनी चाहिए.
3. पशु का पूरा सींग टूट जाने पर गर्म लोहे से दागकर खून का बहना रोकें और उस पर कीटाणुनाशक दवा लगाकर पट्टी बांध दें.
4. यदि सींग का बाहरी भाग ही टुटा है और भीतरी भाग नहीं टुटा है तो टिन्चर आयोडीन की पट्टी बांधने से ही खून का निकलना बंद हो जाता है.
5. यदि सींग का बाहरी और भीतरी हिस्सा दोनों टूट जाये तो सींग को काटकर एकसार करके और उस पर टिन्चर बेन्जोइन का पट्टी बांध देना चाहिए.
6. पशुपालक सींग के घाव को जल्दी सुखाने, दर्द के लिये मेलोनेक्स (Melonex), Analgin और एमाक्सासिलीन (Amoxacilline) की गोलियां और इंजेक्शन को पशुचिकित्सक की सलाह अनुसार दे सकते है.
7. पशु के सींग में मक्खी और अन्य जीवाणु, विषाणु के संक्रमण से बचाने के लिये हिमैक्स क्रीम, टोपीक्युर स्प्रे, लाक स्प्रे आदि मखियों को दूर भगाने वाली दवाइयों को दिन में 2-3 बार लगाते रहना चाहिए.
8. सींग में यदि कीड़ा लग जाये तो, कीड़े मारने के लिये तारपीन तेल जैसी दवाइयों को डालने से सींग के कीड़े बाहर निकलने लगते है जिसे चिमटी की सहायता से बाहर निकाल देना चाहिए. कीड़े बाहर निकलने के पश्चात् उस पर टिन्चर आयोडीन डालकर पट्टी बांध देना चाहिए.
सावधानियां
पशुपालक ध्यान दें कि यदि आपके किसी भी पशु का लड़ने झगड़ने, टकराने आदि किसी भी कारण के वजह से सींग टूट जाता है तो उस पशु के उपचार के लिये उपरोक्त दिया गया प्राथमिक उपचार का पालन करें अन्यथा तुरंत पशुचिकित्सक बुलाकर शीघ्र से शीघ्र उपचार करायें. बहुत से पशुपालक सींग के टूटने को गंभीरता से नहीं लेते और मामूली मरहम पट्टी करके पशु को खुला छोड़ देते है. पशु को खुला छोड़ देने से प्रतिदिन उसका साफ़-सफ़ाई, मरहम पट्टी, दवा-दवाई आदि नहीं होने के कारण पशु का घाव और अधिक बढ़ने लगता है. सींग के घाव पर चिड़ियों के चोच मारने, जीवाणु-विषाणु के संक्रमण, घाव पर मक्खीयों के बैठने आदि के कारण घाव अधिक बढ़कर अन्ततः घाव में कीड़े लगने लहते है. जो कि पशु के लिये और ख़तरा बन जाता है.
इस स्थिति में पशु की प्रतिदिन उपचार नहीं होने के कारण पशु का घाव महीने, दो महीने में और अधिक बड़ा हो जाता है. इस स्थिति में यदि पशुपालक उपचार कराये तो, पशुपालक को उपचार में अधिक खर्च लगता है और सींग का घाव जल्दी नहीं भर पता है. कभी-कभी सींग का घाव अधिक बढ़ जाने के कारण, घाव का ठीक हो पाना असंभव हो जाता है और सींग का घाव, सींग के कैंसर (Horn Cancer- हार्न कैंसर) में परिवर्तित हो जाता है. इस स्थिति में हार्न कैंसर हो जाने पर सामान्य पशुपालक के लिये इसका उपचार करा पाना संभव नहीं होता है. अतः पशुपालक पशु के सींग टूटने की प्रारंभिक अवस्था में ही किसी पेशेवर चिकित्सक अथवा पशु चिकित्सक के द्वारा शीघ्र से शीघ्र उपचार कराये, ताकि भविष्य में होने वाली परेशानियों और हानियों से बचा जा सके.
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प्रिय किसान भाइयों पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.
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