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पशु नस्ल सुधार में बधियाकरण का महत्व : Importance of Castration in Animal Breed Improvement

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पशु नस्ल सुधार में बधियाकरण का महत्व : Importance of Castration in Animal Breed Improvement, पशु नस्ल सुधार कार्यक्रम में देशी, अवर्णित सांडों का बधियाकरण को अहम् महत्व दिया गया है. बधियाकरण में नर पशु की प्रजजन क्रिया को नष्ट करने की क्रिया को बधियाकरण कहते है. नर पशुओं का बधियाकरण 12 माह की उम्र से ही सांड या बछड़े का बधियाकरण किया जा सकता है. गाँव में प्रचलित बधियाकरण के तरीके अमानवीय, क्रूर या निर्दयी होते है. जिससे पशु को बहुत अधिक पीड़ा होती है, क्योंकि इस विधि में के द्वारा सांड के वृषण को पत्थर से कुचलकर, ब्लेड से काटकर या दो डंडों के बीच दबाते है. जिससे पशु को घाव भी हो जाता है और कभी – कभी तो पशु की मृत्यु भी हो जाति है. पशुपालन विभाग के द्वारा देशी, अवर्णित, नाकारा बछड़ों व साण्डों का मशीन से बधियाकरण किया जाता है. पशुपालन विभाग द्वारा बधियाकरण वैज्ञानिक तरीके से बर्डीज्जो कैस्ट्रेटर मशीन द्वारा किया जाता है. इससे सांडों को बधियाकरण करने में आसानी होती है जिससे पशुओं को दर्द भी कम होता है और बधियाकरण से सांड को नुकसान भी नहीं होता है. यदि आपके गाँव या घर में देशी, अवर्णित, नाकारा बछड़ा या सांड है तो ऐसे साण्ड या बछड़े जो दो साल या दो साल से अधिक उम्र का आपके गांव में आवारा घूम रहे हैं तो इसकी सूचना आपके क्षेत्र के पशु-चिकित्सालय में दीजिये व इन्हें तुरन्त मशीन से बधिया करा दीजिये.

Importance of Castration in Animal Breed Improvement

बधियाकरण की आवश्यकता क्यों – वर्तमान में पशुपालन विभाग और भारत सरकार देशी, अवर्णित, नाकारा बछड़ों या सांडों का वैज्ञानिक तरीके से बधियाकरण कराने तथा नस्ल सुधार हेतु देशी नस्ल के गाय, भैंस, बकरियों और अन्य पशुओं पर कृत्रिम गर्भाधान की वैज्ञानिक तरीके को अपनाने पर विशेष जोर दे रही है. देशी, अवर्णित, नाकारा बछड़ों या सांडों का बधियाकरण करके मादा पशुओं में उत्तम नस्ल और उच्च दूध उत्पादन क्षमता वाले सांड के वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान कराएँ अथवा उत्तम नस्ल के स्वस्थ सांड से मादा पशु के गाभिन होने पर, मादा पशु से जनने वाले बछड़े भी उत्तम नस्ल और उच्च दूध उत्पादन क्षमता वाले होते है. जैसे देशी गौवंशीय नस्ल राठी, थारपारकर, कांकरेज, गीर पूरे देश में प्रसिद्ध हैं, क्योंकि ये उच्च कोटि के हमारी दुधारू नस्लें हैं. नर बछड़े या सांड का बधियाकरण करके ”हिमकृत वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान नाकारा या देशी गायों से अच्छी नस्ल की देशी या संकर संतान पैदा किया जा सकता है. कृत्रिम गर्भाधन के लिए बहुत ही उन्नत नस्ल के चयनित सांड जिनकी पूरी वंशावली, उम्र व शुद्ध नस्ल की जानकारी है, का वैज्ञानिक तरीकों से वीर्य लेकर हिमीकृत किया जाता है. आज पूरी दुनियां में नस्ल सुधार के लिए हिमीकृत वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान विधि को अपनाया जा रहा है. हिमकृत वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा एक साल में एक सांड से कम से कम 30000 गाय भैंस को गर्भित की जा सकती है. इसलिए भविष्य में अधिक दूध देने वाली गायें व अच्छे सांड प्राप्त करने के लिए हमें भी कृत्रिम गर्भाधान विधि को ही अपनाना होगा. मादा जानवरों में कृत्रिम गर्भाधान कराकर पशुपालक किसान अपने देशी अवर्णित गाय, भैंस उत्तम नस्ल के बछड़े पैदा किया जा सकता है. इस कृत्रिम गर्भाधान की वैज्ञानिक विधि से पशुओं में दूध उत्पादन में बढ़ोतरी करके पशुपालक अपनी आमदनी में भी इजाफ़ा कर सकते है.

कृत्रिम गर्भाधान क्या है – हिमीकृत तकनीक से तैयार कर सुरक्षित रखे गये सांड केे वीर्य (बीज) को गर्मी (हीट) में आई हुई गाय या भैंस की बच्चेदानी के मुख के अन्दर एक विशेष उपकरण द्वारा पहुंचाया जाता है जिससे पशु गर्भित हो जाती है. इस हिमकृत वीर्य को गर्मी में आये मादा पशु के गर्भाशय या बच्चेदानी में छोड़ने की प्रक्रिया को कृत्रिम गर्भाधान कहते हैं.

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बधियाकरण से लाभ

1 . नर पशुओं के प्रजनन शक्ति का अन्य उपयोगी कार्य जैसे – कृषि में हल जोतकर, गाड़ी में समान ढोकर और अन्य कार्यों में उपयोग किया जा सकता है.

2. अनुपयोगी नस्लों के युवा सांडों का बधियाकरण करके अवांछनीय प्रजनन को रोका जा सकता है. जिससे पशु नस्ल सुधार कार्यक्रम में वृद्धि होगी.

3. उपद्रवी नर पशु को शांत करने के लिये भी बधियाकरण का सहारा लिया जा सकता है.

4. नर बछड़ा का बधियाकरण करके, इसे बैल के रूप में कृषि कार्य में उपयोग में लाया जा सकता है.

5. बधियाकरण से पशुओं में जननेंद्रिय द्वारा फैलने वाले रोंगों के संक्रमित होने से जानवरों को बचाया जा सकता है.

6. पशुओं के मांस और चर्बी उत्पादन के उद्देश्य से भी नर पशु का बधियाकरण करके मोटा किया जा सकता है.

बधियाकरण की प्रमुख विधियां

1 . चीरा विधि (Open Method) – बधियाकरण की इस विधि में ऑपरेशन द्वारा वीर्य वाहक नलिका को बाँध दिया या काट दिया जाता है. यह विधि सामान्यतः छोटे पशुओं में ज्यादा कारगर शाबित होता है.

2. रक्तविहीन विधि (Closed Method)

A) रबर बैंड विधि – बधियाकरण की इस विधि में सक्त रबर रिंग को स्परमेटिक कार्ट पर लगा देते हैं. जिससे अंडकोषों में रक्त का संचार एवं वीर्य का उत्पादन कम या बंद हो जाता है. इस प्रकार से नर पशु का बधियाकरण करने की प्रक्रिया को रबर बैण्ड विधि कहते हैं.

B) बर्डीज्जो कैसट्रेटर विधि – इस विधि में सांड के पिछले पैरों को सामने वाले दो पैर से बांधते है. इस प्रकार पीछे के भाग में दोनों वृषण खुल जाते है. फिर दोनों वृषण को खीचकर स्परमैटिक कार्ट को पकड़ते हैं. यह स्परमैटिक कार्ट बर्डीज्जो कैसट्रेटर के सहायता से वृषण तीन सेंटीमीटर ऊपर और दो सेंटीमीटर के अन्तराल पर दो-दो बार दबाते हैं. यह प्रक्रिया में दोनों स्परमैटिक कार्ट पर अपनाई जाती है इसके पश्चात् टिंचर आयोडीन लगा दिया जाता है.

बधियाकरण में सावधानियां

1 . बधियाकरण बर्डीज्जो कैसट्रेटर को साफ़ रखना चाहिए और उसपे जंक नहीं लगनी चाहिए.

2. बधियाकरण करते समय अंडकोषों को चोट नहीं लगनी चाहिए.

3. सांड का बधियाकरण करने के बाद अंडकोषों में टिंचर, हल्दी तेल और अन्य उपयुक्त मलहम लगाना चाहिए.

4. बधियाकरण कराने के बाद यदि पशु के वृषण में चोट या घाव की आशंका होने पर पशुचिकित्सक से संपर्क करें.

5. नर सांड का बधियाकरण के पश्चात् सांड को कुछ दिन आराम करने का समय देवें. उसे कुछ दिन आराम के लिये घर पर बांध कर रखने से पशु को जल्दी आराम मिलता है.

6. बधियाकरण के पश्चात् पशु को साफ और स्वच्छ जगह पर बांधें. पशु के वृषण पर कुछ दिन गीली मिट्टी, कीचड़ या पानी नहीं पड़नी चाहिए. कीचड़ या पानी पड़ने पर घाव बनने की सम्भावना होती है. पशु को बधियाकरण के पश्चात् 1 सप्ताह तक नहीं धोवें तो सर्वोत्तम और उचित होता है.

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