गलघोटू बीमारी का ईलाज और लक्षण : HS Disease Treatment And Symptoms
गलघोटू बीमारी का ईलाज और लक्षण : HS Disease Treatment And Symptoms, गलघोटू बीमारी गाय एवं भैसों में गोने वाली एक जीवाणु जनित गंभीर बीमारी है. यह पाश्चुरेला माल्टोसीडा नामक जीवाणु द्वारा होने वाला संक्रामक रोग है. यह रोग अधिकतर बरसात के मौसम में गाय व भैंसों में फैलता है.

गलघोटू बीमारी का ईलाज और लक्षण : HS Disease Treatment And Symptoms, गलघोटू बीमारी गाय एवं भैसों में गोने वाली एक जीवाणु जनित गंभीर बीमारी है. यह पाश्चुरेला माल्टोसीडा (Pasteurella Multocida) नामक जीवाणु द्वारा होने वाला संक्रामक रोग है. यह रोग अधिकतर बरसात के मौसम में गाय व भैंसों में फैलता है. यह बीमारी नाम से ही स्पष्ट है – गल + घोंटू = गला को दबाना अर्थात यह गला में होने वाली बीमारी है. गलघोटू ( Haemorrhagic Septicaemia ) यह गौवंसीय और भैंसवंशीय जानवरों में अधिक होता है. इस रोग के मुख्य लक्षण पशु को तेज़ बुखार होना, गले में सूजन, सासं लेना तथा सासं लेते समय तेज़ आवाज़ होना आदि है. पशु के उपचार के लिए एन्टीबायोटिक व एन्टीबैकटीरियल टीके लगाए जाते है अन्यथा पशु की मृत्यु हो जाती है.
पाश्चुरेला माल्टोसीडा जीवाणु का संक्रमण – गलघोटू बीमारी गाय के तुलना में भैसों में अधिक होती है. यह संक्रमित पशु से स्वस्थ पशुओं में दूषित चारा, लार, और श्वास के द्वारा फैलता है. गलघोटू बीमारी के जीवाणु नमी और आर्द्रता वाले परिस्थिति में लम्बे समय तक सक्रिय रहते है. इस बीमारी से प्रभावित पशुओं में मृत्यु दर 80% से अधिक होती है. इसी से गलघोटू बीमारी कितना भयंकर है अंदाजा लगाया जा सकता है.
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प्रभावित पशु – गलाघोंटू ( Hemorrhagic Septicemia ) रोग मुख्य रूप से गाय तथा भैंस को लगता है. प्राय: यह बीमारी छोटे जानवरों जो लगभग 2-3 वर्ष तक पशुओं को ज्यादा प्रभावित करता है. इस रोग को साधारण भाषा में गलघोंटू के अतिरिक्त ‘घूरखा’, ‘घोंटूआ’ आदि नामों से भी जाना जाता है. गलघोटू रोग के जीवाणु जमींन के अन्दर वर्षों तक जिन्दा रहते है. बरसात के दिनों में बारिश होने पर उगने वाले चारा के साथ ये बहार आ जाते है तथा पशु के चारा के साथ मुह के अन्दर प्रवेश कर जाते है.
गलघोटू रोग से पशु अकाल मृत्यु का शिकार हो जाता है. यह मानसून के समय व्यापक रूप से फैलता है. गलाघोंटू बहुत खतरनाक रोग है. लक्षण के साथ ही इलाज न शुरू होने पर एक-दो दिन में पशु मर जाता है. इसमें मौत की दर 80 फीसदी से अधिक है. शुरुआत तेज बुखार (105-107 डिग्री) से होती है. गलघोटू बीमारी गर्भित और अगर्भित किसी भी पशु को हो सकता है. इस बीमारी से संक्रमित पशु का सही समय पर ईलाज/उपचार नही होने पर पशु की 2-3 दिन में मृत्यु हो जाति है. पशु की मृत्यु हो जाने पर पशुपालक को बहुत बड़ा नुकसान होता है. अतः पशु मालिक बीमारी का पता चलते ही शीघ्र अपने नजदीकी पशुचिकित्सालय या पशु चिकित्सक से संपर्क करें.
रोग का छूत लगने का ढंग –
- चारागाह – पशुओं को दूषित चारागाह में चरने, दूषित चारा एवं खाद्य पानी का सेवन करने से गलघोटू के जीवाणु मुंह से अन्दर निगल लिये जाते है. जिससे पशु बीमार हो जाता है.
- श्वासनली – कुछ वैज्ञानिकों का मानना है की इस बीमारी के जीवाणु श्वासनली में सहभोजी बनकर निवास करते है. यदि कोई कारणवश की शक्ति/ताकत कम होने अथवा पशु के कमजोर हो जाने पर ये जीवाणु सक्रिय हो जाते है. फलस्वरूप पशु बीमार हो जाता है. अत: श्वास नाली द्वारा भी इस रोग का संक्रमण होता है.
- कटी त्वचा – कटी हुईत्वचा, छिली हुई त्वचा तथा शरीर पर बने घाव के माध्यम से भी गलघोटू के जीवाणु शरीर के अन्दर प्रवेश कर जाते है.
- तनाव – उपर्युक्त तरीके के अलावा यह बीमारी पशुओं का स्थानांतरण जैसे – जहाज, रेलवे, ट्रक, ट्रैक्टर और अन्य परिवहन के माध्यम से एक स्थान से दुसरे स्थान पर ले जाने से, पशु तनाव ग्रस्त हो जाता है और रोग की चपेट में आ जाता है. इसलिए गलघोटू बीमारी को शिपिंग फीवर (Shipping Fever) भी कहा जाता है.
- अन्य – इन सब के आलावा वातावरण में नमी, पशुओं का जमावड़ा, पशुओं का अनुचित प्रबंधन जैसे – साफ और स्वच्छ हवा न मिलना आदि पूर्व प्रवर्तक कारक रोग को आमंत्रित करते है.

गलघोटू रोग के लक्षण –
1. इस रोग में पशु को अचानक तेज बुखार हो जाता है, शुरुआत तेज बुखार (105-107 डिग्री) से होती है एवं पशु कांपने लगता है.
2. रोगी पशु सुस्त हो जाता है तथा खाना-पीना कम कर देता है.
3. पशु की आंखें लाल हो जाती हैं.
4. पशु को शारीरिक पीडा होती है और बेचैन महसूस करता है.
5. गले ,गर्दन और छाती में सुजन हो जाति है और श्वास लेने में कठिनाई होती है.
6. श्वास में अजीब सी घर्रघर्र की आवाज आती है और 12-24 घंटे में मौत हो जाति है.
7. पशु के पेट में दर्द होता है, वह जमीन पर गिर जाता है.
8. रोगी पशु के नाक से स्त्राव और मुंह से लार और झाग भी गिरने लगती है.
9. भैसें गायों के तुलना में अधिक संवेदनशील होने के कारण भैसों में मृत्युदर अधिक होती है.
10. भैसों के अलावा वृद्ध पशुओं में भी काफी मृत्यु दर है.
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गलघोटू रोग के रोकथाम के उपाय –
1. अपने पशुओं को प्रति वर्ष वर्षा ऋतु से पूर्व इस रोग का टीका अवश्य लगवा लेना चाहिए.
2. बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए.
3. जिस स्थान पर पशु मरा हो उसे कीटाणुनाशक दवाइयों, फिनाइल या चूने के घोल से धोना चाहिये.
4. बीमार पशु के खान-पान स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए.
5. बीमार पशु को अन्य पशुओं से अलग बांधना चाहिए.
6. रोगी पशु को खुले में चरने के लिये नहीं छोड़ना चाहिए.
7. पशु को नदी, तालाब में न ही पानी पिलाना चाहिए और न ही धोना चाहिए.
8. पशु आवास को स्वच्छ रखें तथा रोग की संभावना होने पर तुरन्त पशु चिकित्सक से सम्पर्क कर सलाह लेवें.
9. मृत पशु को दफनाते वक्त कम से कम 5-6 फुट के गड्ढे खोदकर दफनाना चाहिए.

रोगी पशु का उपचार –
1 . गलघोटू बीमारी में पशु का उपचार ज्यादा कारगर शाबित नहीं होता है. इस बीमारी में पशु का उपचार कराने पर ही पशुओं को मृत्यु से बचाया जा सकता है.
2 . पशुओं का उपचार के तौर पर कुछ दर्द नाशक गोली, एंटीबायोटिक गोली देकर और गले के सुजन के पास IODEX जैसी औषधि का लेप लगाकर सेंकाई करनी चाहिए. अधिक जानकारी के लिये पशुचिकित्सक से सलाह लेवें.
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टीकाकरण –
गलघोटू बीमारी से बचाव के लिये पशुपालक को प्रति वर्ष बरसात लगने के पहले H.S. नामक टीका अवश्य लगवाना चाहिए. इस रोग का टीका प्रतिवर्ष पशु चिकित्सा विभाग द्वारा बरसात लगने से पहले मई-जून महीने नि:शुल्क लगाया जाता है. पशुओं में टीकाकरण के लिये पशुपालक अपने नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर पशु चिकित्सक से संपर्क कर सकते है.
मृत पशु का निपटान कैसे करें –
- मृत पशु के बिछावन, बचे हुए खाने को जला देवें अथवा जमीं के अन्दर दफना देवे.
- मृत जानवर को खुले मैदान में नही फेंकें.
- पशु की मृत्यु हो जाने पर उसे जमींन में गड्ढे खोदकर दफना देना चाहिए.
- गलघोटू से मृत पशु का पोस्टमार्टम या मोची द्वारा नहीं कटवाना चाहिए.
- पशु को गड्ढे में दफनाते समय ऊपर में चुना/नमक डालना चाहिए.
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