नेपियर घास बाड़ी में कैसे उगायें : How to Grow Napier Grass in Garden
पशुधन से जुड़ी ख़बरें –
इन्हें भी पढ़ें :- बरसीम चारे की खेती कैसे करें? बरसीम चारा खिलाकर पशुओं का उत्पादन कैसे बढ़ायें?
इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में क्लोन तकनीक से कैसे बछड़ा पैदा किया जाता है?
इन्हें भी पढ़ें :- बटेर पालन बिजनेस कैसे शुरू करें? जापानी बटेर पालन से कैसे लाखों कमायें?
इन्हें भी पढ़ें :- कड़कनाथ मुर्गीपालन करके लाखों कैसे कमायें?
इन्हें भी पढ़ें :- मछलीपालन व्यवसाय की सम्पूर्ण जानकारी.
इन्हें भी पढ़ें :- वैज्ञानिकों ने साहीवाल गाय दूध पौष्टिक और सर्वोत्तम क्यों कहा?
नेपियर घास बाड़ी में कैसे उगायें : How to Grow Napier Grass in Garden, नेपियर घास या हाथी घास की खेती पशुओं के चारे की लिये की जाती है. यह घास पशुओं के लिये बहुवर्षीय चारा होती है अर्थात इसे अपने बाड़ी या खेतों में एक बार उगाने के बाद पशुओं को सालभर खिलाया जा सकता है. यह चारा पौष्टिकता से भरपूर रहता है. इसमें औसतन प्रोटीन की मात्रा 7 से 12 प्रतिशत तक रहती है. नेपियर घास की प्रारंभिक अवस्था में 12 से 14 प्रतिशत तक शुद्ध पदार्थ की मात्रा होती है. इनकी पत्तियों में 9.30 प्रतिशत तथा तने में 4.40 प्रतिशत तक प्रोटीन होती है. किसान भाई एक बार नेपियर अपनी खेतों या बाड़ी में उगाकर पशुओं के लिये सालभर एक अच्छा चारा उपलब्ध करा सकते है.

देश में दिनों दिन बढ़ती गर्मी के साथ साथ पशु चारे की समस्या बढ़ती जा रही है. नेपियर घास को कुछ क्षेत्रों में हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है. देश के कई राज्यों में पशुपालक के सामने पशु चारे की उपलब्धता कम होने से पशुपालकों का पशुपालन के प्रति रूचि घटती जा रही है. पशु चारे की कमी के कारण दूध का उत्पादन भी कम होने लगा है. हरे चारे की समस्या से पशुओं के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर होता जा रहा है. पशुपालक किसान पशुओं की हरे चारे की समस्या से निपटने के लिये अपने बाड़ी या खेतों में नेपियर घास या हाथी घास को उगाकर इसे 1 वर्ष से 5 वर्ष तक अपने पशुओं के लिये हरा चारा उपलब्ध करा सकते है.
नेपियर घास की उत्पत्ति
नेपियर घास का वनस्पतिक नाम पेनीसेटम परफ्युरियम (Pennisetum purpureum) है. इसकी उत्पत्ति का मूल स्थान दक्षिण अमेरिका को माना जाता है. नेपियर घास का नाम कर्नल नेपियर के नाम पर रखा गया है. जिन्होंने सन 1901 में रोडेशिया सरकार का ध्यान इसके चारे के महत्त्व की ओर खीचा था. यह घास सन 1913 में संयुक्त राज्य अमेरिका में लाई गयी. भारत में इसकी खेती सन 1912 में आरम्भ की गई. भारत में यह इस घास को उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों के सिंचित स्थानों में की जाती है. आज लगभग पुरे भारत में जागरूक पशुपालक और डेयरी फार्मों में इसकी खेती की जाती है.
नेपियर या हाथी घास के फायदे
पशुपालक को ज्ञात हो की बाजरा की हाइब्रिड किस्मों में नेपियर घास भी सामिल है. नेपियर घास में दूध उत्पादन को बढ़ाने और पशुओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिये कई पोषक तत्व मौजूद होते हैं. शुरुआती अवस्था में नेपियर घास में 12-14% शुष्क पदार्थ पाये जाते हैं. इसके सेवन से पशुओं से दूध उत्पादन में 20% तक की बढोत्तरी होती है. इसके अलावा, प्रोटीन,रेशा, कैल्शियम व फास्फोरस की राख जैसे पोषक तत्वों की खान होती है नेपियर घास. इसलिये पशुपालक या किसान भाई आने वाले बरसात के मौसम में इसकी जड़ों की बुवाई का काम कर लें. इससे समय रहते पशुओं को हरा चारा मिल सकेगा.
नेपियर घास किस मिट्टी पर उगायें
इस घास को कई प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है. इसके लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि अच्छी मानी जाती है. जलभराव वाली जगह में इसकी खेती नही की जा सकती है. अच्छी उपज के लिए इसे दोमट मिट्टी, जिसमें जल निकास का अच्छा प्रबंध हो, इसके लिए सबसे उपयुक्त होती है. नेपियर घास की खेती बंजर जमीन पर भी की जा सकती है. यदि घास को उगाने के लिये जमीन की कमी होती है तो इसे अपने बाड़ी या खेतों की मेढ़ पर भी उगाया जा सकता है.
नेपियर घास के लिये जलवायु
इसकी खेती गर्म जलवायु के अतरिक्त ठन्डे स्थानों पर भी उगाई जा सकती है. पाले वाले स्थानों पर इसे नही उगाना चाहिए, क्योकि पाले से इसकी फसल को भारी नुकसान होता है. बारिश के मौसम में नेपियर घास उगाने से सिंचाई की अलग से जरूरत नहीं होती बल्कि ये चारा फसल 20-25 दिनों में ही पककर तैयार हो जाती है. इतना ही नहीं, सिर्फ 1 बार इसकी खेती करने से 3-5 साल तक का काम चल जाता है. इस घास की पहली कटाई 45 दिनों में और फिर बाद में हर 25 दिन में इसकी कटाई करते रहें.
नेपियर घास के लिए खेत की तैयारी कैसे करें?
नेपियर घास की बुवाई के लिए खेत को अच्छी प्रकार तैयार कर लेना चाहिए. खेत की तैयारी पिछली फसल पर निर्भर करती है. किसी भी दशा में गहरी जुताई और हैरो द्वारा मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए. इस घास को लगाने से पहले खेत को समतल करना जरुरी है. खेत में खरपतवार विल्कुल नही होना चाहिए.
पशुधन के रोग –
इन्हें भी पढ़ें :- बकरीपालन और बकरियों में होने वाले मुख्य रोग.
इन्हें भी पढ़ें :- नवजात बछड़ों कोलायबैसीलोसिस रोग क्या है?
इन्हें भी पढ़ें :- मुर्गियों को रोंगों से कैसे करें बचाव?
इन्हें भी पढ़ें :- गाय, भैंस के जेर या आंवर फंसने पर कैसे करें उपचार?
इन्हें भी पढ़ें :- गाय और भैंसों में रिपीट ब्रीडिंग का उपचार.

नेपियर घास के ऊन्नत किस्में
नेपियर घास – नेपियर, यूगांडा हैयरलेस
संकर नेपियर (नेपियर X बंजारा संकर) – एन० बी०-21, सी० ओ०-4, पूसा जायंट, आई० जी० एफ० आर० आई०-10 इसमें प्रोटीन की मात्रा 8 से 10 प्रतिशत तथा शुष्क पदार्थ पाचन शीलता 58 से 65 प्रतिशत पायी जाती है. इसकी उपज लगभग 1600 कुंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा प्राप्त होता है. संकर नेपियर में खाद और पानी की आवश्यकता नेपियर से अधिक होती है. नेपियर के साथ बाजरे का संकरण कर नेपियर X बाजरा निकला गया है. यह संकर प्रत्येक नेपियर घास वाले भाग में उगाई जाती है.
नेपियर घास की बुवाई कैसे करें?
नेपियर घास की बुवाई तने के टुकडे या जड़दार तने के भाग से करते है क्योकि नेपियर घास में बीज बनना थोडा कठिन है. तथा बीज का जमाव भी बहुत कम होता है. यह टुकडे तने के निचले भागों से चुने जाते है. इसकों दो या तीन गांठ वाले छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेना चाहिए. सर्दियों में कटाने के पश्चात इन टुकड़ों को 15 से 20 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है.
1 . 40000 तने के टुकडे – 50 सेमी० ग 50 सेमी० दूरी पर बुवाई करनी चाहिए. (शुध्द फसल प्राप्त करने के लिए)
2. 20000 तने के टुकडे – 100 सेमी० X 50 सेमी० दूरी पर बुवाई करनी चाहिए. (अन्तः फसली पध्दति (Inter Cropping) करने के लिए)
इन टुकड़ों को गाड़ते समय इस बात का ध्यान रखे कि इसकी एक गाँठ जमीन के अन्दर और दूसरी गाँठ जमीन की सतह पर हो. इसके अतरिक्त इन टुकड़ों को 45 डिग्री के कोण पर गाड़ना चाहिए. नेपियर घास की बुवाई का सबसे अच्छा समय जून-जुलाई महिना होता है.
मिश्रित खेती/अंतरवर्ती खेती
नेपियर एक बहुवर्षीय घास है जिसे किसी भी खेत में कम से कम 3 से 5 वर्षों तक रखा है. सर्दियों में (नवम्बर से मार्च) का महीना इसकी वृध्दि का महीना होती है. इसलिए दूसरा चारा खासकर फलीदार चारा बरसीम, लोबिया की बुवाई करनी चाहिए. नेपियर की जड़े सड़न क्रिया द्वारा अधिक से अधिक कार्बन युक्त पदार्थ प्रदान करती है. इसलिए इसकों पांच सालों के बाद खेत से निकालकर दूसरी फसल लगानी चाहिए.
नेपियर में खाद या उर्वरक
नेपियर घास की अच्छी उपज के लिए अधिक खाद की आवश्यकता होती है. इसके लिए प्रति हेक्टेयर 125 से 150 कुंटल गोबर की सड़ी हुई खाद और 50 से 60 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम स्फूर तथा 40 किलोग्राम पोटाश की बुवाई के समय डालना चाहिए. इसके बाद प्रति कटान कम से कम 30 किलोग्राम नत्रजन कटाई के तुरंत बाद डालने से उपज में वृध्दि होती है. नत्रजन से दोबारा वृध्दि (Regrowth) अच्छी और तेज गति से होती है. नत्रजन डालने से प्रोटीन तथा शुष्क पदार्थ की मांग बढ़ जाती है.
सिंचाई की व्यवस्था
नेपियर घास के खेत में जल-निकास का समुचित प्रबंध होना आवशयक है. पानी भरे खेतों में पौधे मर जाते है. गर्मी और सर्दियों में फसल को सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है. गर्मियों में मार्च से जून तक फसल की सिंचाई 10 से 12 दिन के अंतर पर करनी चाहिए. सर्दी के मौसम में फसल को 15 से 20 दिनों के अंतर पर पानी देना चाहिए. प्रत्येक कटाई के पश्चात सिंचाई करने से पौधों की पुर्नवृध्दि अच्छी होती है और उपज में वृध्दि होती है.
सामान्य तौर पर बरसात को छोड़कर प्रत्येक 15 दिन के अंतर पर सिंची करनी चाहिए. इसके अलावा प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई करना आवश्यक है. इससे दोबारा वृध्दि ठीक प्रकार से होती है. बरसात में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए.
फसल की सुरक्षा ( Napier Grass Farming )
नेपियर घास में प्रारम्भिक अवस्था में खरपतवार की समस्या पायी जाती है. इस समय फसल की निराई-गुड़ाई करने से यह समस्या हल की जा सकती है. चारे के लिए उगाई गई फसल में प्रायः कीड़े और बीमारियों का विशेष प्रकोप नही होता है. कभी-कभी टिड्ढ़ों का आक्रमण हो सकता है. परन्तु इसके लिए किसी भी प्रकार का रासायनिक उपचार आवश्यक नही है, क्योकि चारे को बार-बार काटकर खिलाना होता है.
नेपियर की कटाई
बुवाई के 75 से 80 दिनों के बाद कटाई करना उपयुक्त हो जाता है. इस समय पौधे की ऊंचाई 1.25 से 1.5 मीटर लगभग होती है. इस अवस्था में पौधे अधिक पौष्टिक तथा पाचनशील होता है तथा अच्छी उपज भी मिलती है. पहली कटाई के बाद अन्य कटाई 40 से 45 दिन के अंदर कटाई कर लेनी चाहिये. 15 से 20 सेमी० ऊपर से पौधों को काटते है ताकि इसमें पुनः वृध्दि आसानी से हो सके. इस प्रकार 8 से 10 कटाई पौधे में ले सकते है.
उत्पादन क्षमता
कटाई संख्या एवं तापमान के अनुसार 1500 से 1800 कुंटल द्वारा हरा चारा प्राप्त कर सकते है. अंतरवर्ती खेती में 1800 से 2800 कुंटल हरा चारा प्राप्त होता है.
इन्हें भी देखें :- खुरहा/खुरपका – मुंहपका रोग का ईलाज और लक्षण
इन्हें भी देखें :- लम्पी स्किन डिजीज बीमारी से पशु का कैसे करें बचाव?
प्रिय किसान भाइयों पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.
जाने :- लम्पी वायरस से ग्रसित पहला पशु छत्तीसगढ़ में कहाँ मिला?
किसी भी प्रकार की त्रुटि होने पर कृपया स्वयं सुधार लेंवें अथवा मुझे निचे दिए गये मेरे फेसबुक, टेलीग्राम अथवा व्हाट्स अप ग्रुप के लिंक के माध्यम से मुझे कमेन्ट सेक्शन मे जाकर कमेन्ट कर सकते है. ऐसे ही पशुधन, कृषि और अन्य खबरों की जानकारी के लिये आप मेरे वेबसाइट pashudhankhabar.com पर विजिट करते रहें. ताकि मै आप सब को पशुधन से जूडी बेहतर जानकारी देता रहूँ.