डेयरी पशुओं में सींग की समस्याएं : Horn Problems in Dairy Cattle
डेयरी पशुओं में सींग की समस्याएं : Horn Problems in Dairy Cattle, पशु हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है. कहते है की जो मनुष्य गौ की सेवा ब्रह्म मुहुर्त में करता है वो आजीवन स्वस्थ रहता है और उसे धन धान्य की प्राप्ति होती है. प्राचीन समय में गौ सम्पदा मनुष्य के समृधी का परिचालक होता था. कई युद्ध सिर्फ गौ के कारण ही लड़ा गया, इसका सर्वोच्य उदहारण कौरवों द्वारा विराट राज्य पर गौ की सम्पदा के हरण के लिए आक्रमण है. जिसका पांडवों ने प्रतिरोध किया और कौरव के सेना को हराया था.

कहते हैं की कामधेनु गे में 33 करोड़ देवी देवताओं का निवास है और इसके दर्शन मात्र से अनेको कस्ट दूर हो जाते हैं. मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो निरंतर प्रगती करता रहता है, और इस निरंतरता में भी जो उसका साथ दे रहा है वो है गौ प्रजाति एवं उसके दिए हुए उपहार. वर्तमान में भी जब हम नींद से जागते हैं तो सबसे पहला आहार जो बच्चों, व्यस्क एवं बुजुर्गो को उपलब्ध होता है वो है अमृत तुल्य दूध एवं चाय. हमारे दोपहर के भोजन में यह दही या छांछ के रूप में ये सम्मलित होता एवं रात बिन दूध के हम सो ही नहीं सकते. इतने खूबियों से भरपूर पदार्थ देने वाली गौ माता के लिए भी हमारा कुछ कर्तव्य है, इन कर्तव्यों का अगर हम अवलोकन करें तो गौ सम्पदा का ऊचिचत देखभाल एवं प्रबंधन इसका मुख्या लक्ष्य है. दुधारू पशुओं के लिए सिंग उनके बचाव का एक सस्त्र एवं पशुओं का श्रृंगार. प्रकृति नें गौ सम्पदा को सिंग अपने बचाव के लिए प्रदान किये हैं. अनेको बार ऐसा देखा गया है की जिस सिंग को प्रकर्ति ने अपने बचाव के लिए दिया है वो ही पशुओं के व्यथा का कारण बन जाता हैं. अगर दुधारू पशुओं का उचित देखभाल किया जाए तो हम उनको बहुत हद तक अनेको समस्यायो से बचा सकते है.
सींग का ऐंठना – सींग का एठना उन पशुओं में विसेसतः पाई जाती है जिनके सिंग घुमावदार होते हैं. सिंग के ऐठने के कारण सिंग सर में धस जाती है और सिंग में घाव हो जाता है. इस घाव को कितने भी उपचार करें वो ठीक नहीं होते. इस घाव से छुटकारा पाने का सिर्फ एक ही उपाय है की सिंग का अगला हिस्सा काट दिया जाए. पशुपालकों को सिंग का अगला हिस्सा समय समय पर काटते रहना चाहिए जिससे की वो सर में चुभे नहीं और घाव की कोई संभावना नहीं रह सके. पशुपालको को ये हमेशा ध्यान रखना चाहिए की सिंग हमेशा एक कुसल एवं प्रशिक्षित पशु शल्य चिकित्सक से कराये.
सिंग को काटने में रखी जाने वाली सावधानी – पशु चिकित्सक को ये ज्ञात होनी चाहिए की सिंग की 2/3 हिस्सा खोखली होती है एवं यह फ्रानटल साइनस में खुलता है, इश कारणवश सिंग का सिर्फ अग्र भाग ही काटा जाता है. अगर गलती से खोखला भाग खुल जाता है तो बिना घबराए चापरे से इसको बंद कर दे और कम से कम चार दिन तक कोई एंटीबायोटिक दे दें जिससे यह छेद खुद ही भर आएगा. सिंग को काटने के लिए गिगली साव वायर या कोई आरी का इस्तेमाल कर सकते हैं.
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सिंग का टूटना – प्रायः ये देखा जाता है की पशु एक दुसरे से लड़ जाते हैं या फिर पशु अपने सिंग को किसी खम्बे में फसा कर तोड़ देते हैं, या किसी वास्तु को सिंग से प्रहार करके खुद को घायल कर देते हैं. ऐसे पशुओं के सिंग में दो सम्भावना रहती है, या तो ये पूरी तरीके से टूट गया है या यह अपूर्ण रूप से टूटा है. अगर अपूर्ण टूटा है तो इसको दुबारा जोड़ा जा सकता है. अगर यह पूरे तरीके से टूट गया है तो जहाँ से ये टूटा है उसके नीचे से आरी के मदद से काट देना चाहिए एवं बीटाडीन की पट्टी से रोजाना ड्रेसिंग करनी चाहिए, जब तक की ये पूरे तरीके से ठीक ना हो जाए. अपूर्ण छतिग्रस्ता सिंग के लिए एक एल्युमीनियम का फट्टी को दोनों सिंग के जैसा मोल्ड करना चाहिए एवं एक ही फट्टी दोनों सिंग पर बाँध देना चाहिए. इस तरह से बाँधने पर अपूर्ण टुटा सिंग जुड़ जाएगा.
हॉर्न कैंसर – हॉर्न कैंसर प्रायः उन गौवंश में होता है जिसका रंग सफ़ेद होता है, और जिन पशुओं के बड़े-बड़े सिंग होते हैं. हालाँकि ये उन अन्य नस्लों के गौ प्रजाती में भी पायी जाती है. हॉर्न कैंसर का मुख्या कारण सूर्य के किरण एवं चोट लगना है. जिन पशु में ये रोग हो जाता है उनका सिंग धीरे धीरे ढीला हो जाता है और वो गिर जाता है, अतः पशु पालकों को अपने पशु का हमेशा ध्यान रखना चाहिए और अगर हॉर्न कैंसर का कोई भी लक्षण दिखे तो तुरंत पशु शल्य चिकित्सक को बुलाना चाहिए. पशु सल्य चिकित्श्कों को तत्काल पशु के सिंग को काट कर अलग कर देना चाहिए जिससे की हॉर्न कैंसर बढे नहीं. बहुतायत ये देखा गया है की हॉर्न कैंसर के लक्षण जैसे की सिंग का ढीला पड़ जाना, सिंग के आधार से रक्त का रिशाव होना को अनदेखी कर पशुपालक झोला छाप डॉक्टर को बुला लेते हैं, जो की ज्ञान के अभाव में कुछ भी उपचार करते रहते हैं और कुछ दिनों पश्चात संक्रमण सर के अन्दर फ़ैल जाता है और लाइलाज हो जाता है. इस कारण पशुपालकों को प्रथम दृष्टया ही किसी अनुभवी शल्य चिकित्षक को बुलाना चाहिए.
सींग कि समस्या से बचने के उपाय
डिसबडिंग – डिसबडिंग की प्रक्रिया बछड़ों में 3-6 हफ्ते के अन्दर करना चाहिए. डिसबडिंग कभी भी पशु शल्य चिकित्सक से करवाना उचित है, नहीं तो कभी कभी घाव फ्रानटल साइनस के अन्दर पहुँच जाता है और इसका इलाज नामुमकिन हो जाता है. निश्कालिकायण डॉ. तरीके से किया जाता है. पहला तरीका रासायनिक है और दूसरा तरीका गरम रोड या इलेक्ट्रिकल डीबडर है. रासायनिक तरीके में के.ओ.एच, सिल्वर नाइट्रेट या पोटेशियम आयोडाइड का पाउडर या छड़ सींग के कलि पर तब तक घसा जाता है जब तक की वहां से रक्त का स्त्राव नहीं हो जाता है. दुसरे तरीके में गरम लोहे से या इलेक्ट्रिकल डीबडर से सींग के कलि का समूल नस्त कर दिया जाता है. दोनों ही तरीके में घाव होने की संभावना बहुत होती है, अतः कोई भी एंटीसेप्टिक मलहम घाव पर लगाना चाहिए और एक पेन किलर पशु को देनी चाहिए.
पशुपालकों के लिए सन्देश
पशु हमारे जीवन का एक प्रमुख अंग है, जितना ज्यादा हम इनका देखभाल उतना ही ज्यादा हमें फायदा होगा. बहुतेरे ये सुनने को मिलता है की पशुपालन फायदेमंद नहीं है, पर यह एक भ्रान्ति है. पशुपालन को अगर हम एक व्यवसाय के रूप में लें और उसको वैज्ञानिक तरीके का पालन करते हुए निर्वहन करें तो यह एक लाभकारी व्यावसाय होगा. उचित प्रबंधन मतलब हर तरीके से पशु का देखभाल करना, चाहे वो खान पान हो या स्वस्थ,पशुओं के बीच में दूरी होना चाहिए ताकि वे आपस में लड़ाई न करे एवं घाव होने पर निरंतर देखभाल करना चाहिए और गंदगी व मक्खियाँ से बचाना चाहिए. सींग का देखभाल भी स्वच्छता के अंतर्गत आता है. पशु मालिक को हमेशा अपने गायो के सींग पर ध्यान देना चाहिए. कोई भी गंदगी अगर सिंग पर है तो तत्काल उसे साफ़ कर देना चाहिये और घाव के भरने तक या सींग के ऊपर पपड़ी जमने तक प्रतिदिन 3 से 4 बार पशु चिकित्सक के द्वारा बताये गए स्प्रे या मलहम का प्रयोग करें. सींग की हमेशा सफाई और तेल की मालिश होनी चाहिए. सिंग पर कभी भी पेंट का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि पेंट एक रासायन है और यह कार्सिनोजेनिक भी हो सकता है. अंत में पशुपालको से सिर्फ इतना अनुरोध है की सिंग भी पशु का एक अभिन्न अंग है और इसका समुचित देखभाल अति अवश्यक है.
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प्रिय पशुप्रेमी और पशुपालक बंधुओं पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.
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