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पशुओं में चर्मरोग या खौड़ा रोग का घरेलू उपचार : Home Remedies Skin Disease in Animals

पशुओं में चर्मरोग या खौड़ा रोग का घरेलू उपचार : Home Remedies Skin Disease in Animals, पशुओं में चर्म रोग या डर्मटायटिस रोग त्वचा की उपरी डर्मिस, व एपिडर्मिस की परतों में सुजन का आ जाना चर्म रोग या डर्मटायटिस कहलाता है. यह किसी संक्रमण के कारण हो सकता और उसके बिना भी हो सकता है.

Home Remedies Skin Disease in Animals
Home Remedies Skin Disease in Animals

पशुओं में चर्मरोग या खौड़ा रोग का घरेलू उपचार : Home Remedies Skin Disease in Animals, पशुओं में चर्म रोग या डर्मटायटिस रोग त्वचा की उपरी डर्मिस, व एपिडर्मिस की परतों में सुजन का आ जाना चर्म रोग या डर्मटायटिस कहलाता है. यह किसी संक्रमण के कारण हो सकता और उसके बिना भी हो सकता है. इस रोग को क्षेत्रीय भाषा में लोग खौड़ा रोग भी कहते है. कभी – कभी छोटे पशुओं में संक्रमण की तरह फैलता है और बहुत पशुओं को प्रभावित करता है. इस रोग के निम्नलिखित कारण हो सकते है.

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चर्म रोग या खौड़ा रोग फैलने के कारण

1 . जीवाणु जनित डर्मटायटिस – स्टेटफाइलों कोकस एवं स्ट्रैप्टॉकोक्कस जीवाणु की विभिन्न प्रजातियां है.

2. विषाणु जनित डर्मेटाइटिस – ब्लू टंग, गाय की चेचक, भेड़ की चेचक और अन्य इसके अंतर्गत आते है.

3. फंगस या कवक जनित डर्मेटाइटिस – रिंगवर्म.

4. पैरासिटिक डर्मेटाइटिस – मेंज, क्यूटेनियस फ़ाइलेरियोसिस.

5. भौतिक कारण – धूप द्वारा जलने से, ज्यादा ठंडा और गर्म घाव.

6. रासायनिक कारण – इरिटेंट केमिकलस (उत्तेजक रसायन).

7. एलर्जीक डर्मेटाइटिस – पित्ती उछलना, मुख्यता घोड़ों में.

रोग के लक्षण

चर्म रोग, रोग के कारण के आधार पर अलग-अलग तरह के हो सकते है. कुछ पशुओं में गिला फोड़ा या कुछ में सुखा चकते या धब्बे, चमड़ी पर जगह-जगह लाल चकते खुजली, दर्द व सूजन जगह-जगह छोटे-छोटे फफोले, जिनमें से पानी भी निकलता हुआ दिखाई दे सकता है.

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रोग का निदान या पहचान

1 . पशुओं को दिए जाने वाले आहार के बारे में व वातावरण के आधार पर पहचान किया जा सकता है.
2. त्वचा की स्क्रेपिंग अथवा स्वाब की जांच – परजीवी जीवाणु कवक आदि के लिए.
3. रक्त परीक्षण – डीएलसी, टीएलसी, विषाणु , जीवाणु या कवक जनित संक्रमण.

उपचार

1 . डर्मेटाइटिस का संपूर्ण इलाज करना एक मुश्किल काम होता है इसके लिए सही निदान किया जाना बहुत आवश्यक है. इसके लिए स्किन स्क्रेपिंग, स्वाब, व रक्त की जांच बहुत आवश्यक है.

2. जीवाणु, विषाणु या कवक जनित डर्मेटाइटिस के लक्षण काफी मिलते जुलते होते हैं. इसलिए बिना जांच किए लंबे समय तक भी उपचार करने से विशेष फायदा नहीं होता है.

3. रोग के कारणों को चमड़ी के आस पास से समाप्त करना बहुत आवश्यक है.

4. जीवाणु जनित डर्मेटाइटिस – इसमें त्वचा पर प्रतिजैविक घोल या प्रतिजैविक मलहम लगाएं. पोवीडीन घोल भी उपयोग कर सकते हैं. इसके साथ ही नस में या मांस में आईवी या आई एम विधि से प्रतिजैविक औषधि लगाएं.
5. कवक जनित डर्मेटाइटिस – इसमें कवक/ दाद रोधी मल्हम त्वचा पर लगाएं. कवक जनित संक्रमण के उपचार के लिए कम से कम एक माह तक नियमित उपचार करें अन्यथा लक्षण थोड़े दिनों के पश्चात फिर से प्रकट हो सकते हैं.

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पशुओं में चर्म रोग का लक्षण
पशुओं में चर्म रोग का लक्षण

अकोता/अपरस रोग

पशु के शरीर के अंदर तथा बाहर वातावरण में ऐसे कई पदार्थ होते हैं जिसके संपर्क में आने से त्वचा में रिएक्शन होते हैं जिसे एक्जिमा/एलर्जी कहते हैं. एलर्जी के कारण सूजन होती है, इसके अलावा त्वचा में पाए जाने वाले कई प्रकार के, बाहरी परजीविओं के कारण भी एक्जिमा होता है.

लक्षण

जिस तरह एक्जिमा मनुष्य में पाया जाता है वैसा वास्तविक एक्जिमा पशुओं में नहीं मिलता है. पशुओं में हल्के लक्षण प्रकट होते हैं. जैसे – खुजली, बाल झड़ना, त्वचा की ऊपरी परत का उतरना, सूजन के कारण त्वचा का मोटा हो जाना, लक्षण त्वचा पर या कुछ जगह या फिर सभी जगह पर पाए जा सकते हैं. अधिक समय हो जाने पर त्वचा सूज कर मोटी एवं सख्त हो जाती है.

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उपचार

1 . एलर्जी के कारणों को दूर करें.

2. पशुओं को जहां बांधा जाता है वहां की मिट्टी व बिछावन को बदल दें.

3. पशु के पेट के अंदर व बाहरी परजीवीयों को समाप्त करने के लिए उपयुक्त औषधि का प्रयोग करें.

4. एस्ट्रिजेंट मल्हम, जब त्वचा सूखी हुई सी हो तो यह मल्हम अधिक लाभकारी होते हैं.

5. सैलिसिलिक एसिड एवं टैनिक एसिड को बराबर मात्रा में 600 मिलीलीटर अल्कोहल में मिलाएं तथा यह लोशन त्वचा पर लगाएं.

6. आईवरमेकटिन 100 से 150 मिलीग्राम की टेबलेट खिलाएं अथवा आईवरमेकटिन इंजेक्शन 1 मिलीलीटर प्रति 50 किलोग्राम शरीर भार के अनुसार खाल के नीचे लगाएं एवं 10 दिनों के अंतराल पर कम से कम 2 बार पुनः लगाएं, इससे आशातीत लाभ प्राप्त होगा.

7. द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने के लिए यदि आवश्यक हो तो प्रतिजैविक औषधि का इंजेक्शन भी लगाएं.

8. कार्टीकोस्टरोइड प्रारंभ में जितनी मात्र में दें धीरे धीरे उसमें कमी करते जाएँ.

9. सहायक उपचार के तौर पर लीवर एक्सट्रेक्ट विटामिन बी काम्प्लेक्स और विटामिन ए देना चाहिए.

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बचाव

1 . पशुओं के आवास गृह को साफ सुथरा रखें एवं साथ ही साथ पशुओं को भी स्वच्छ रखें.

2. रोग से प्रभावित पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखें ताकि अन्य स्वस्थ पशुओं में होने वाले संक्रमण को रोका जा सके.

4. बड़े पशुओ को जिस स्थान पर बाँधा जाता है उस स्थान की मिट्टी बदल दें, क्योंकि चर्म रोग पैदा करने वाले कवक, जीवाणु लम्बे समय तक मिट्टी में पड़े रहते है तथा पशु के प्रतिदिन मिटटी में बैठने से पशु वापस रोग के चपेट में आ जाता है.

3. पशुओं के आवास गृह पर समय – समय में एंटिसेप्टिक या जीवाणु नाशक औषधि का छिडकाव करते रहें.

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प्रिय किसान भाइयों पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप मेरे वेबसाइट pashudhankhabar.com पर हमेशा विजिट करते रहें.

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