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गिनी फाउल मुर्गी उत्पादन एक लाभकारी व्यवसाय । Guinea Fowl Pintades Production And Business

गिनी फाउल मुर्गी उत्पादन एक लाभकारी व्यवसाय । Guinea Fowl Pintades Production And Business, Guinea Fowl जिसे भारत मे गिनी मुर्गी के नाम से जाना जाता है। ये अपने सामान्य मुर्गी प्रजाति के तरह एक पक्षी होता हैैं जो अफ्रीका से उत्पन्न हुए हैं। अफ्रीका में कई पोल्ट्री किसान Guinea Fowl Production खेती का व्यवसाय सफलतापूर्वक कर रहे हैं।

Guinea Fowl Pintades Production And Business
Guinea Fowl Pintades Production And Business

गिनी को कभी गिनी मुर्गी, पिंटेड या ग्लानी भी कहा जाता है। ये वास्तव में जंगली पक्षी है, लेकिन अब ये घरेलू हो गए है। गिनी मुर्गीे टर्की, पार्टीरिड्स और तीतर पक्षियों से संबंधित हैं। गिनी मुर्गी बहुत साहसी, जोरदार आवाज करने वाले और रोग मुक्त पक्षी हैं। वर्तमान में वे न केवल अफ्रीका में उपलब्ध हैं, बल्कि दुनिया भर में पाए जाते हैं और लोकप्रिय हैं।

Guinea Fowl (गिनी मुर्गी) की खासियत

कई कारणों से लोग गिनी मुर्गी की खेती करना पसंद करते हैं। जब भी खेत में या फार्म में कुछ भी असामान्य होता है तो गिनी मुर्गी जोरदार आवाज निकलती है यानी एक प्रकार का अलार्म बजाती है। गिनी मुर्गी के तेज आवाज में चूहे और अन्य उपद्रवी जीव फार्म या खेत से दूर रहते है।

Guinea Fowl (गिनी मुर्गी) पालन एक लाभदायी व्यवसाय हो सकता है क्यों कि गिनी मुर्गी काफी सख्त जान पक्षी है, गिनी मुर्गी पर बीमारियां काफी कम आती है। साथ ही गिनी मुर्गी खेतों में से किट (कीड़े) को सफाया करने में काफी मदत करते है। गिनी मुर्गियी को मांस और अंडा उत्पादन दोनों के लिए भी पाला जाता है। उनके अंडे चिकन अंडे की तरह ही खाए जा सकते हैं। युवा पक्षियों का मांस काफी स्वादिष्ठ होता है। गिनी मुर्गी के मांस पचने में आसान और आवश्यक अमीनो एसिड में समृद्ध है।

छोटे किसान जिनके पास जमीन कम है, उन किसानों के लिए ये गिनी फाउल बहुत उपयोगी है। इसलिए इसे लो इन्वेस्टमेंट बर्ड भी बोलते हैं, इसके रहने के लिए घर में कोई खर्च नहीं लगता है और न ही इसके दाने और दवाई पर अलग से खर्च करना होता है। इसका जो आवास बनाया जाता है, वो बस इसे रखने के लिए बनाया जाता है। धूप, सर्दी और बारिश का इन पर असर नहीं होता है, अगर इन्हें खुले में भी रखते हैं तो कोई असर नहीं पड़ता है।

दूसरी चीज जो फीड के बारे में, किसी भी मुर्गी पालन की अगर बात करें तो 60 से 70 प्रतिशत खर्च उत्पादन लागत फीड पर ही आती है। लेकिन गिनी फाउल पालन में आपका ये खर्च बच जाता है। क्योंकि ये चुगती है, तो जो छोटे किसान हैं और गाँव में बूढ़े और बच्चे इन्हें चराकर (चु्गाकर) ला सकते हैं। इसलिए वहां पर थोड़ा बहुत दाना देने की जरूरत पड़ती है। इससे आपका आहार का खर्च भी बच जाता है।

इसी तरह मुर्गी पालन में दवाइयों और टीकाकरण में काफी खर्च हो जाता है, लेकिन गिनी फाउल को किसी तरह का कोई भी टीका नहीं लगता है और न ही कोई अलग से दवाई दी जाती है। इस तरह से ये ग्रामीण क्षेत्रों के लिए काफी उपयोगी होता है।

इसकी एक और खासियत होती है, इसके अंडे के छिलके दूसरे अंडों के मुकाबले दो से ढाई गुना ज्यादा मोटा होता है, इसलिए ये आसानी से नहीं टूटता है और जहां पर लाइट वगैरह नहीं होती है वहां पर भी मुर्गी के अंडों की तुलना में देर से खराब होते हैं। जैसे कि गर्मियों के दिनों में मुर्गी का अंडा खुले में बिना फ्रिज के सात दिन में सड़ेगा, वहीं इसका अंडा 15 से 20 दिनों तक सुरक्षित रहता है।

ये मूल रूप से अफ्रीका गिनिया द्वीप की रहने वाली है, उसी के नाम पर इसका नाम गिनी फाउल रखा गया है। वैसे इसका पूरा नाम हेल्मेटेड गिनी फाउल होता है, इसकी कलगी को हेल्मेट बोलते हैं, जोकि हड्डी का होता है। इसलिए इसका हेल्मेटेड गिनी फाउल नाम मिला है। इसकी कलगी से मादा और नर की पहचान की जाती है, 13 से 14 हफ्तों में मादा की कलगी नर के आपेक्षा में छोटा होता है।

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Guinea Fowl (गिनी मुर्गी) का व्यवसाय

कोई किसान व्यवसायिक तरीके से गिनी फाउल पालन शुरू करना चाहता है तो 50 से 10 बर्ड्स से शुरूआत कर सकता है। इसके चूजे की कीमत 17-18 रुपए तक होती है। अगर इसे अंदर रख कर पालना चाहते हैं तो फीड का खर्च बढ़ जाता है, अगर इसे बार चराने ले जाते हैं तो फीड का खर्च कम हो जाएगा।

गिनी फाउल पालन अंडे और मांस दोनों के लिए किया जाता है, 12 हफ्तों में इसका वजन 10 से 12 सौ ग्राम तक हो जाता है। अप्रैल से अक्टूबर तक इनका प्रोडक्शन होता है, इस दौरान ये 90 से 100 अंडे तक देती हैं, पूरी दुनियां में जहां पर दिन लंबे होते हैं और रात में तापमान अधिक होता है। उसी समय ये अंडे देती हैं। लेकिन पिछले चार-पांच साल में केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान ने कई नए शोध किए हैं, जिससे ये सर्दियों में भी अंडे देती हैं।

गिनी मुर्गे को ‘टिटारी’ और ‘चित्रा’ के रूप में भी जाना जाता है। अंडे और मांस के लिए कम लागत वाली वैकल्पिक मुर्गे की प्रजातियाँ विभिन्न भारतीय कृषि जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हैं और आँगन के पिछवाड़े मुर्गे उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त है। विटामिन से भरपूर और कोलेस्ट्रॉल में कम होने के कारण गिनी मुर्गे का मांस उपभोक्ताओं के स्वाद और पोषण मूल्य के लिए महत्त्वपूर्ण है।

ये पक्षियाँ पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। ये कीट नियंत्रण में सहायक होने के साथ-साथ खेत के लिए खाद भी प्रदान करते हैं तथा मार्च से सितंबर तक औसतन 90 से 110 अंडे देती हैं। मौसमी तौर पर प्रजनन/अंडा उत्पादन एक बड़ी समस्या है जो अंडे के उत्पादन को सीमित करती है तथा गिनी मुर्गी के बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक उत्पादन में बाधक का कार्य करती है।

भाकृअनुप-केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली, उत्तर प्रदेश ने सर्दियों के महीनों (नवंबर से फरवरी) के दौरान 2016 से 2021 तक गिनी मुर्गे के पर्ल किस्म में मौसमी प्रजनन से निपटने के लिए 4 प्रयोगात्मक परीक्षण किए। इसका उद्देश्य पहले अंडे में आयु को कम करना था, ताकि अंडा उत्पादन में सुधार हो सके।

संस्थान ने मौसमी समस्याओं से निपटने के लिए इष्टतम आहार निर्माण और फोटोपीरियोड का पता लगाने हेतु आहार (प्रोटीन, विटामिन-ई और सेलेनियम के विभिन्न स्तरों) और प्रकाश प्रबंधन (फोटोपीरियोड परिवर्तन) हस्तक्षेपों की योजना बनाई।

गिनी कुक्कुट/गिनी मुर्गा

  • गिनी मुर्गा एक काफी स्वतंत्र घूमने वाला पक्षी है।
  • यह सीमांत और छोटे किसानों के लिए काफी उपयुक्त है।
  • उपलब्ध तीन किस्में हैं- कादम्बरी, चितम्बरी तथा श्वेताम्बरी।

विशेष लक्षण

  • स्वस्थ पक्षी है।
  • किसी भी तरह के कृषि मौसम स्थिति के लिए अनुकूल होती है।
  • इस मुर्गे में अनेक सामान्य रोगों की प्रतिरोधी क्षमता होती है।
  • इसके लिए विशाल और महंगे घरों की जरुरत नही होती है।
  • उत्कृष्ट चारा अनुकूलता इसकी खासियत है।
  • चिकन आहार में उपयोग न किये जाने वाले समस्त गैर पारंपरिक आहार की खपत।
  • माइकोटोक्सीन तथा एफ्लाटोक्सीन के प्रति अधिक वहनीयता।
  • अंडे का बाहर का छिलका सख्त होने की वजह से कम टूटता है और इसकी बेहतर गुणवत्ता बनी रहने की अवधि में वृद्धि होती है।
  • गिनी मुर्गे का मांस विटामिन से भरपूर होता है तथा इसमें कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम होती है।

उत्पादन लक्षण वर्गन

  • 8 सप्ताह में वजन 500-550 ग्राम तक हो जाती है।
  • 12 सप्ताह में वजन 900-1000 ग्राम हो जाती है।
  • प्रथम अंडे जनन में आयु 230-250 दिन होती है।
  • औसत अंडे का वजन 38-40 ग्राम होता है।
  • अंडा उत्पादन (मार्च से सितम्बर तक एक अंडे जनन चक्र में) 100-120 अंडे देती है।
  • जनन क्षमता 70-75 प्रतिशत है।
  • जनन शक्ति वाले अंडे सैट पर हैचेबिल्टी 70-80 प्रतिशत है।
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14 सप्ताह के पक्षियों को एक कमरे में पिंजरों में रखा गया था और बढ़ी हुई फोटोपीरियोड अनुसूची और आहार व्यवस्था शुरू करने से पहले 3 सप्ताह के लिए अनुकूलित किया गया था। 18 घंटे का फोटोपीरियोड प्राकृतिक और कृत्रिम प्रकाश के माध्यम से दिया गया था (कृत्रिम प्रकाश 5.80 लक्स (प्रकाश की तीव्रता को मापने की इकाई) की औसत प्रकाश तीव्रता के साथ एक दूसरे से तीन फुट की दूरी पर 60 वाट के बल्बों का उपयोग करके प्रदान किया जाता है जिन्हें स्वचालित टाइमर-विनियमित स्विच के माध्यम से नियंत्रित किया गया था)।

मक्का, सोयाबीन, मछली का भोजन, सीप का खोल, चूना पत्थर, डीसीपी, नमक, डीएल-मेथियोनीन, टीएम प्रीमिक्स, विटामिन प्रीमिक्स, बी-कॉम्प्लेक्स, कोलिन क्लोराइड, टॉक्सिन बाइंडर, विटामिन-ई और सेलेनियम (से) इस्तेमाल किए जाने वाले आहार सामग्री में शामिल थे।

परिणामों से संकेत मिलता है कि 20% आहार प्रोटीन, विटामिन-ई (120 मिलीग्राम/किलो आहार) और एसई (0.8 मिलीग्राम/किलोग्राम आहार) के साथ 18 घंटे के फोटोपीरियोड ने प्रजनन हार्मोन को सक्रिय किया और सर्दियों के महीनों में अंडे का उत्पादन हुआ। उत्पादन लगभग 21 सप्ताह की उम्र में शुरू हुआ और पहला अंडा सामान्य, यानी 36 सप्ताह की तुलना में 15 सप्ताह तक कम पाया गया। मुर्गी के अंडे का उत्पादन सर्दियों में 53% से 56% था जबकि वार्षिक अंडा उत्पादन में 180 से 200 अंडे थे। प्रजनन क्षमता (71%) और हैचबिलिटी (76%) भी सर्दियों के महीनों (जनवरी और फरवरी) में चूजों में अच्छी पाई गई।

मौसमी समस्याओं से निपटने और गिनी मुर्गे में उत्पादन एवं प्रजनन में सुधार करने के लिए 20% प्रोटीन के साथ विटामिन ई (120 मिलीग्राम/किलोग्राम आहार) और एसई (0.8 मिलीग्राम/ किलोग्राम आहार) उपयुक्त है।

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