पशुओं को बासी भोजन खिलाने के नुकसान : Disadvantages of Feeding Stale Food to Animals
पशुओं को बासी भोजन खिलाने के नुकसान : Disadvantages of Feeding Stale Food to Animals, पशुओं के स्वास्थ्य को सुचारू रूप से चलाने के लिये और दूध उत्पादन के लिये हरा चारा तथा पशु आहार एक आदर्श भोजन है. परंतु अक्सर ऐसा देखा गया है कि पशुपालक अपने पालतू पशु गाय, भैंस, बैल आदि को रात का बचा हुआ बासी भोजन या ख़राब भोजन जैसे – छोले, पनीर, बासी चावल, दाल, दही, बड़ा इत्यादि को खिला देते है. पशुपालक के लिये बासी भोजन की मात्रा और गुणवत्ता का कोई महत्व नहीं होता है. क्योंकि यह घर, शादी, पार्टी, बर्थडे और अन्य किसी कार्यक्रम का बचा हुआ भोजन पशुपालक लिये अतिरिक्त और ब्यर्थ होता है.

पशुपालक बचे हुए बासी भोजन को ब्यर्थ और भोजन के नुकसान से बचने के लिये कहीं भी फेंक देते हैं अथवा पशुओं को खिला देते है. चूँकि यह भोजन ख़राब और गुणवत्ता विहीन हो गया होता है, कुछ भोज्य पदार्थों में फफूंद भी लग गया होता है. ऐसे भोजन को पशु के खा लेने से शरीर में अत्यधिक मात्रा में क्षार का उत्पादन हो जाता है और पशु क्षारीयता के लपेट में आ जाते हैं. कभी-कभी पशु के शरीर में क्षार का उत्पादन इतना अधिक मात्रा में हो जाता है की उपचार के अभाव में प्रभावित पशु की मृत्यु भी हो जाती है.
बासी भोजन की उपलब्धता
इस बासी भोजन की उपलब्धता पशुओं को किसी समारोह, शादी-विवाह, बर्थडे पार्टी और अन्य बड़े-बड़े कार्यक्रमों का बचा हुआ, गुणवत्ताहीन तथा ब्यर्थ भोजन होता है. जिसे या पशुपालक खिला देते है अथवा फेंके हुए बासी भोजन को स्वयं पशु खा लेते है. इस प्रकार के बासी भोजन को पशु खाकर पचा नहीं पाते और पशु कुछ ही क्षणों में बीमार हो जाते है. जुगाली करने वाले पशु इस तरह के भोजन जिसमे अधिक प्रोटीन होता है खाने की आदी या आदत नहीं होने के कारण, पशु शीघ्र ही रोग से प्रभावित हो जाता है. जब पशु के शरीर में यह तीव्र रूप ले लेता है तो पशु को बचा पाना संभव नहीं होता है.
बीमारी के कारण
इस प्रकार के भोजन से पशुओं में उदर या पेट का रोग बढ़ जाता है. क्योकि अधिक प्रोटीन वाला भोजन अमोनिया गैस के उत्पादन को बढ़ा देता है, जिससे पशु में पेट का फूलना, रुमेन का ठसाठस होना तथा आफरा जैसे बीमारी हो जाती है. यह अमोनिया गैस पानी में घुलकर लिकर अमोनिया का निर्माण करती है. पशुओं में क्षारीय पदार्थों का रुमेन (जुगाली करने वाला पेट) में जब उपापचय होता है तो निम्नाकित परिणाम प्राप्त होते है….
1 . बासी और गुणवत्ताहीन भोजन के खा लेने से पशुओं में पेट में सोडियम बाईकार्बोनेट बनता है और कार्बनडाईऑक्साइड का उत्पादन अधिक होने लगता है.
2. पशु के मूत्र का पीएच (pH) मान बढ़कर अम्लीय से क्षारीय में परिवर्तित हो जाता है.
3. पशु के शरीर की रक्त प्लाज्मा में बाईकार्बोनेट की मात्रा अधिक हो जाता है और क्लोराइड की मात्रा कम हो जाता है. इस प्रकार का जठर रस हाईड्रोक्लोरिक अम्ल के बनने से होता है. हाइड्रोजन और क्लोराइड आयन में क्लोराइड आयन कम हो जाता है और पीएच (pH) मान बढ़ जाता है. जठर रस से स्त्रावित हाईड्रोक्लोरिक अम्ल को उदासीन करने से यह स्थिति नहीं रहती क्योकि तब सोडियम क्लोराइड बन जाता है और रक्त द्वारा अवशोषित होकर स्थिति पूर्ववत हो जाती है.
4. श्वसन अर्थात श्वासनली में परेशानी होती है. पोटेशियम की कमी हो जाती है तथा साइट्रिक अम्ल का उत्सर्जन अधिक हो जाता है.
रोग के लक्षण
इस प्रकार के बीमारी से ग्रसित पशु में क्षारीयकरण की स्थिति में निम्न प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं………..
1 . बीमारी से ग्रसित पशु का पेट अचानक फूल जाता है और पेट फूलने का मुख्य कारण पशु के पेट में बुलबुले दार गैस बनने से होता है.
2. अधिकतर पशु के पेट में दर्द के कारण लेट जाते हैं एवं मुंह से झाग निकलने लगता है तथा पशु को श्वास लेने में घबराहट होती है.
3. कभी-कभी पशु के गोबर में बिना पचे हुए दाने निकलते हैं.
4. बेचैनी के कारण रोग से प्रभावित पशु फड़फड़ाता है. यदि इसी हालत में पशु जमींन में पड़ा रहता है और समय पर चिकित्सा उपलब्ध नहीं होने पर पशु की मृत्यु भी हो जाती है.
5. यदि पशुपालक के घर में हुए उत्सवो, कार्यक्रमों में बचे हुए खाने को खाता है तो पशु के ईलाज में परेशानी नहीं होती है. परंतु पशु आवारा किस्म का है, पशु बाहर चरने जाता है और बाहर फेंके गये अपशिष्ट खाद्य पदार्थ को खाता है तो उसका उपचार लक्षणों के आधार पर होता है. यदि पशु के पेट में बने गैस की सुजन होती है तो निडिल से पंचर किये गए गैस के बुलबुले के साथ निकलने वाले पदार्थ की क्षारीयता 9-10 के आसपास हो सकती है.
रोगी पशु का प्राथमिक उपचार
1 . रोग से प्रभावित पशु को 5% ग्लूकोज का बाटल 3 से 4 लीटर अन्तः शिरा सूचि वेध विधि से दिया जाना चाहिए.
2. 50 से 100 ग्राम पाचक पदार्थ के साथ 5-6 नीबू के रस को निचोड़कर, मिलाकर लड्डू बनाकर खिलाने से साइट्रिक अम्ल द्वारा क्षारीयकरण की स्थिति नियंत्रण में लाई जा सकती है.
3. पशु को नीबू के रस के अतिरिक्त 5% शिरका या ग्लेशियल एसिटिक अम्ल का घोल भी पिलाया जा सकता है जिससे क्षारीय pH पर नियंत्रण किया जा सके.
4. रक्त की पीएच क्षारीय होने पर ग्लूकोज स्लाइन में साइट्रिक अम्ल मिलाकर ड्रिप द्वारा दिया जा सकता है. क्योंकि यह क्षारीय अवस्था पुरे शरीर में फ़ैल जाती है, जिससे समुचित उपचार के बाद भी पशु को बचाना मुश्किल हो जाता है.
5. बुलबुलेदार गैस बनने की अवस्था में 1% फार्मलीन का घोल 1 लीटर स्वच्छ पानी में सीधे सीरिंज द्वारा पेट में दाल दिया जाता है. जिससे पशु के पेट में गैस का बनना तुरंत रुक जाता है.
6. रोग से प्रभावित पशु को टॉनिक जैसे रुचामैक्स पाउडर 15-15 ग्राम सुबह शाम दिया जाना चाहिए.
7. पशु के खाए खाना में सड़े हुए पदार्थ के साथ कई प्रकार के पदार्थ शामिल हो सकते हैं. इसलिए पशु को सोडियम थायोसल्फेट की 50-100 ग्राम मुंह द्वारा खिलाया जाये या इसका लगभग 5% का 200 मिलीलिटर घोल अन्तः शिरा सूचि वेध विधि द्वारा दिया जाये. इसके अतिरिक्त एट्रोपिन सल्फेट का 5 से 6 मिलीग्राम का इंजेक्शन देना लाभकारी हो सकता है.
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