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विलुप्त होते गिद्ध और इंसानी मौतों का कनेक्शन : Connection Between Extinct Vulture and Human Death

विलुप्त होते गिद्ध और इंसानी मौतों का कनेक्शन : Connection Between Extinct Vulture and Human Death, इस धरती से विलुप्त होते गिद्ध और इंसानी मौतों के बीच क्या कनेक्शन है जाने? कैसे इस पक्षी का ना होना बना 5 लाख मौतों की वजह?

Connection Between Extinct Vulture and Human Death
Connection Between Extinct Vulture and Human Death
  • बीते कुछ समय में ख़तम हुई गिद्धों की आबादी,
  • गिद्धों के ख़त्म होने से बढ़े कई तरह के बीमारी,
  • गिद्धों को माना जाता रहा है प्रकृति का सफाईकर्मी,
  • गिद्ध कभी एक बहुत ही आम पक्षी था लेकिन अब दुर्लभ पक्षी बन गया है.

वारविक विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफ़ेसर सुदर्शन का कहना है कि भारत में गिद्धों की संख्या में आई गिरावट के एक विशेष और स्पष्ट उदहारण से साफ है कि एक प्रजाति के नष्ट होने से मनुष्यों को किस तरह की कठिन और अप्रत्याशित मुश्किलों का सामना भी करना पड़ सकता है.

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Connection Between Extinct Vulture and Human Death

भारत में गिद्धों की संख्या बीते कुछ समय में बहुत तेजी से कम होते हुए ये पक्षी तक़रीबन खत्म हो चुके हैं. एक समय ऐसा था भारत में गिद्ध बड़ी संख्या में और सर्वब्यापी पक्षी के तौर पर जाना जाता था. गिद्ध मवेशियों के शव के तलाश में कूड़े के ढेर के पास मंडराते रहते थे.

करीब तीन दशक पहले बीमार गायों के ईलाज के लिए दी जाने वाली दवा डाईक्लोफेनाक की वजह से गिद्ध भारत में मरने लगे. देश में तेजी से गिद्ध की संख्या घटने लगी और 1990 के दशक के मध्य तक 5 करोड़ गिद्धों की आबादी डाईक्लोफेनाक के चलते ख़त्म होने के कगार पर आ गई. इसने इंसानों के नई बीमारी और मौतों को बढ़ा दिया.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, गिद्धों की जानलेवा बनी ये दवा एक सस्ता और हेयर-स्टेरायडल दर्द निवारक है. ये दवा जिन पशुओं को दी गई, उनके शवों को खाने वाले पक्षियों की किडनी फेल हो गई और वे मर गये. डाईक्लोफेनाक के पशुचिकित्सा में उपयोग पर 2006 में प्रतिबंध लगाया गया लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. इस दवा की वजह से कम से कम गिद्धों की तीन प्रजातियों की आबादी का 91-98 फीसदी ख़त्म हो गया था. खास बात ये है कि गिद्धों का ख़त्म होना इंसानों के लिए बड़ी मुश्किल और मौतों की वजह बन रहा है.

गिद्धों के ना होने की वजह से हुई 5 लाख लोगों की मौत

अमेरिकन इकोनॉमिक एसोसिएशन जर्नल में छपी एक रिसर्च में कहा गया है कि गिद्धों क ख़त्म हो जाने से घातक बैक्टीरिया और संक्रमण रोगों को बढ़ा दिया है. ये पांच वर्षों में करीब 5 लाख लोगों की मौत होने की वजह बने हैं. रिसर्च के सहलेखक प्रोफ़ेसर इयाल फ्रैंक का कहना है कि गोद्धों को प्रकृति को स्वच्छ करने वाला पक्षी माना जाता है क्योंकि वे पर्यावरण से बैक्टीरिया और रोगजनक मृत जानवरों को ख़त्म कर देते हैं. ऐसे में गिद्धों के ना होने से ये बैक्टीरिया बीमारी फैला रहे है.

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फ्रैंक ने उन भारतीय जिलों में मानव मृत्यु दर की तुलना की, जो कभी गिद्धों से भरे हुए थे. उन्होंने ये जानने के लिए रिसर्च की है कि गिद्धों की पतन से पहले और बाद में कैसे बैक्टीरिया से होने वाली मौतों का आंकड़ा बदला है. उन्होंने पाया कि सूजनरोधी (एंटी इन्फ्लामेट्री) दवाओं की बिक्री बढ़ने और गिद्धों की आबादी कम होने के बाद उन जिलों में मानव मृत्यु दर में 4 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई, जहाँ कभी ये पक्षी बड़ी संख्या में थे.

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि इसका प्रभाव शहरी क्षेत्रों में सबसे अधिक था, जहाँ पशुधन की बड़ी संख्या थी और पशुओं के शवों को फेकना आम बात थी.

रिसर्च में अनुमान लगाया गया है कि 2000 और 2005 के बीच गिद्धों की कमी के कारण हर साल लगभग एक अतिरिक्त मानव मौतें हुई. ये मौतें बिंरी और बैक्टीरिया के फैलने के कारण हुई, जिन्हें अगर गिद्ध होते तो पर्यावरण से हटा देते. जैसे गिद्धों के बिना आवारा कुत्तों की आबादी बढ़ गई और इससे मनुष्यों में रेबीज फ़ैल गया.

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