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डेयरी पशुओं में गर्भ परीक्षण की रासायनिक विधि : Chemical Method of Pregnancy Test in Dairy Cattle

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डेयरी पशुओं में गर्भ परीक्षण की रासायनिक विधि : Chemical Method of Pregnancy Test in Dairy Cattle, पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान के पश्चात् गर्भ की शीघ्र परीक्षण या पहचान करना आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. चिकित्सीय अभाव और सही ज्ञान नहीं होने की वजह पशुपालको को अपने पशुओं के पोषण, प्रबंधन और चिकित्सा में व्यर्थ का खर्च करना पड़ता है. पशु में सही समय पर गर्भ परीक्षण करके समय और आर्थिक नुकसान से बचा जा सकता है. पशु के गर्भ की शीघ्र पहचान करना पशुओं की बिक्री एवं बीमा के लिये भी आवश्यक है, क्योकि पशु के गाभिन होने का प्रमाण पत्र बिक्री और बीमा के लिये बहुत ही जरुरी होता है. पशुओं के गर्भ के परीक्षण रासायनिक विधि, शारीरिक बदलाव का अध्ययन करके, मलाशय द्वारा गर्भाशय का परिश्पर्शन करके, चिकित्सीय परीक्षण आदि द्वारा गर्भित और अगर्भित पशुओं का पता लगाया जा सकता है. आज आपको इस सेक्शन में रासायनिक विधि के तहत गाय और भैंसों में मूत्र एवं गर्भाशय ग्रीवा या योनी से निकलने वाली श्लेष्मा को लेकर उनके रासायनिक गुणों पर आधारित गर्भधारण निदान से पशु के 3 से 4 सप्ताह तक की अवधी के गर्भ का परीक्षण किया जा सकता है. परंतु फील्ड में इस विधि का उपयोग अधिकतर नहीं होता है. गर्भ का परीक्षण निम्नलिखित रासायनिक विधि द्वारा किया जा सकता है.

Chemical Method of Pregnancy Test in Dairy Cattle
Chemical Method of Pregnancy Test in Dairy Cattle

1 . बेरियम क्लोराइड परीक्षण (BaCl2)

इस परीक्षण का उपयोग गाय एवं भैंसों में गर्भधारण परिक्षण के लिये किया जाता है. इस परिक्षण से पशुओं में 90% से अधिक विश्वसनीय परिणाम मिलने की सम्भावना होती है. इस परिक्षण सिद्धांत में गाय एवं भैस के मूत्र में प्रोजेस्ट्रान हार्मोन्स की उपस्थिति का पता लगाया जाता है.

गर्भ परीक्षण की विधि – सर्वप्रथम एक परखनली में बेरियम क्लोराइड (BaCl2) के 1% भाग का 5ml मात्रा में 5ml मूत्र लेकर मिलाया जाता है. इन दोनों विलयन को एकत्रित करके 5 से 10 मिनट के लिये छोड़ देते है. यदि परखनली में दही जैसे थक्का जम जाता हैं तो यह क्रिया पशुओं के गाभिन या गर्भित होने के प्रमाण को दर्शता है. और यदि परखनली के विलयन या द्रवण के अन्दर एक भी थक्का नहीं होता है या द्रवण या विलयन स्वच्छ रहता है तो इसका मतलब पशु गाभिन नहीं होती है अथवा अगर्भित होती है.

गर्भ परीक्षण का निष्कर्ष – इस परीक्षण के द्वारा द्रवण या विलयन दही जैसे थक्का जम जाना सिद्ध करता है कि पशु गर्भित या गाभिन है. इस परीक्षण के द्वारा पशुओं में 3 से 4 सप्ताह तक के गाभिन का पता लगाया जा सकता है. यह परीक्षण पशुपालक द्वारा अपने घर पर आसानी से किया जा सकता है. जब पादप स्रोत की एस्ट्रोजन मूत्र में उपस्थित होता है तो यह परीक्षण गलत परिणाम देता है. स्थाई पितकाय और गर्भावस्था की पितकाय का जो ब्याने के कुछ समय तक रहती है, इससे भी गलत परिणाम आ सकता है.

2. सोडियम हाईड्राऑक्साइड (NaOH) परीक्षण

इस परीक्षण का उपयोग गाय एवं भैंसों में गर्भधारण परिक्षण के लिये किया जाता है. इस परिक्षण से पशुओं में 80 से 90% तक परिणाम मिलने की सम्भावना होती है. इस परिक्षण सिद्धांत में गाय एवं भैस के गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मा या योनी की श्लेष्मा का प्रयोग किया जाता है.

गर्भ परीक्षण की विधि – इस परीक्षण विधि में एक परखनली में 10% सोडियम हाईड्राऑक्साइड (NaOH) का 5 ml द्रावण लेकर उसमें थोड़ा सा ( 2 से 3 बूंद) गर्भाशय ग्रीवा का श्लेष्मा या योनी का श्लेष्मा लेकर दोनों का मिश्रण बनाते हैं. अब इस द्रावण को ज्वाला में उबालकर ठंडा करते है. अगर इस द्रावण का रंग नारंगी रंग का हो जाता है तो पशु गर्भित या गाभिन होती है और यदि द्रावण का रंग फीका रहता है तो पशु अगर्भित या गाभिन नहीं होती है.

गर्भ परीक्षण का निष्कर्ष – उपरोक्त मिश्रण का नारंगी रंग का होना सिद्ध करती कई कि पशु गाभिन है और यदि मिश्रण का रंग हल्का पीला दिखाई देने पर पशु गाभिन नहीं होती है.

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3. आपेक्षित घनत्व परीक्षण (CuSO4)

इस परीक्षण का उपयोग गाय एवं भैंसों में गर्भधारण परीक्षण के लिये किया जाता है. इस परीक्षण से पशुओं में 90% से अधिक विश्वसनीय परिणाम मिलने की सम्भावना होती है. इस परीक्षण सिद्धांत में गाय एवं भैस के गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मा या योनी की श्लेष्मा का प्रयोग किया जाता है.

गर्भ परीक्षण की विधि – इस विधि के द्वारा परखनली में 1.008 % आपेक्षित घनत्व वाला कापर सल्फेट (CuSO4) का द्रावण को लेकर उसमें 1/2 ml गर्भाशय ग्रीवा अथवा योनी की श्लेष्मा डाली जाति है. यदि यह श्लेष्मा योनी के तल पर बैठ जाती है तो पशु गाभिन होती है और अगर यह द्रावण के ऊपर तैर रहा होता है तो पशु गाभिन नहीं होती है. गाभिन पशु में श्लेष्मा का घनत्व 1.008 से ज्यादा होने के कारण प्रोजेस्ट्रान की मात्रा की उपस्थिति का पता चलता है.

उपरोक्त दिए गए तीनों परीक्षणों में मूत्र एवं श्लेष्मा के अन्दर प्रोजेस्ट्रान हार्मोन्स की वृद्धि होती है. इस वृद्धि को इन परीक्षणों द्वारा अभ्यास करके, परीक्षण का परिणाम प्राप्त किया जा सकता है. इस प्रकार उपरोक्त वर्णित विभिन्न तरीकों के द्वारा मादा पशुओं में गर्भधारण का पता लगा सकते है. जिससे गर्भित पशु का समय से उत्तम पोषण और प्रबंधन कर सकते हैं. इन परीक्षणों के द्वारा अगर्भित मादा पशु का पता लगाकर समय रहते उसका उपचार कराकर पशु को मद या गर्मी में लाया जा सकता है. पशु का गर्मी या मद में आने के बाद गर्भाधान कराकर जा सकता है और पशु को गर्भित या गाभिन किया जा सकता है.

निष्कर्ष – उपरोक्त विधियों में से किसी एक को अपनाने से कम समय की गर्भावस्था का ज्ञान हो जाता है. अगर्भित पशु का समय रहते प्रबंधन और उपचार किया जा सकता है. इससे 12 महीने में गाय से एक बच्चा या बछड़ा पैदा किया जा सकता है एवं 13 से 14 महीने में भैंस से एक बच्चा प्राप्त करके पशुपालक की दूध उत्पादन क्षमता और पशुधन में वृद्धि करके अधिक आमदनी किया जा सकता है. इस परीक्षण विधि से परीक्षण करने के बाद पशुपालक गर्भित या अगर्भित पशु के संशय या भ्रम में नहीं रहता है.

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