बेकार आलू से इथेनॉल बनाने की तकनीक विकसित : Bekar Aaloo Se Ethanol Banane Ki Technology Develop
बेकार आलू से इथेनॉल बनाने की तकनीक विकसित : Bekar Aaloo Se Ethanol Banane Ki Technology Develop, इस तकनीक के तहत किसानों की बढ़ेगी कमाई, किसानों को नहीं होगा नुकसान. शिमला स्थित केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (CPRI) ने आलू के बेकार हिस्सों से इथेनॉल बनाने की दिशा में एक अहम् कदम उठाया है.
यह पहल किसानों की आय को बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए भी बेहतर साबित हो सकती है. इस नई तकनीक से न केवल बेकार आलू का उपयोग किया जायेगा, बल्कि बेकार आलू से इथेनॉल बनाने की यह तकनीक किसानों की कमाई भी बढ़ाएगी. आलू की अधिक उत्पादन और सड़ने की समस्या का सामना करने वाला किसानों के लिए एक नई उम्मीद की किरण जगी है.
अक्सर खबरे आती है कि आलू की अधिक फसल या उत्पादन होने पर किसानों को उचित दाम नहीं मिल पाती है जिससे किसान निराश हो जाते हैं. कई बार आलू की फसल सड़ने से भी किसान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है. लेकिन अब इन समस्याओं का समाधान जल्द ही मिल सकता है. आलू का उपयोग इथेनॉल उत्पादन में एक नया आयाम जोड़ सकता है.
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20 अगस्त को राज्यपाल शिवप्रताप शुक्ला ने सीपीआरआई के 76 वें स्थापना दिवस पर कहा कि बदलती जलवायु परिथितियों के मद्देनज़र किसानों के आय की वैकल्पिक श्रोत उपलब्ध कराये जाने चाहिए. उन्होंने आलू आधारित उद्योग स्थापित करने पर भी जोर दिया.
इस पर शिमला स्थित केन्द्रीय आलू अनुसंधान (CPRI) ने जानकारी दी कि आलू से इथेनॉल बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाये गए हैं. अभी तक देशमें इथेनॉल का उत्पादन मुख्यतः गन्ने, मक्का और चावल से किया जा रहा है, लेकिन अब इस दिशा में आलू का भी उपयोग किया जायेगा.
आलू की इन किस्मों से बनेगा इथेनॉल
सीपीआरआई के निदेशक ब्रजेश सिंह ने के नेतृत्व में इस संस्थान के वैज्ञानिकों ने आलू से इथेनॉल बनाने के सफल प्रयोग किये. सीपीआरआई के फसल दैहिकी, जैव रसायन और फसलोत्तर तकनीकी विभाग के प्रमुख डॉ. दिनेश कुमार ने बताया कि आलू की 6 ऐसी किस्में की पहचान की गई है जिनमें अधिक स्टार्च की मात्रा पाई जाती है. इनमें से प्रमुख हैं – कुफरी हिमसोना, कुफरी चिप्सोना-1, कुफरी चिप्सोना-3, कुफरी चिप्सोना-5, कुफरी फ्राइसोना और कुफरी फ्राइयो.
इन किस्मों में इथेनॉल का अधिक उत्पादन किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि इथेनॉल उत्पादन में माइक्रोब्स का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है, जिसे हमारे सहयोगी डॉक्टर धर्मेन्द्र कुमार ने खोजा है. इसके परिणाम स्वरुप, आलू के 80 प्रतिशत तक इथेनॉल उत्पादन संभव है.
ख़राब आलू और छिलके का होगा उपयोग
डॉ. दिनेश कुमार ने बताया कि आलू की चिप्स बनाने वाली कंपनियों से निकलने छिलकों से भी इथेनॉल का उत्पादन किया जा सकता है. इस तकनीक न केवल पर्यावरण प्रदुषण कम होगा, बल्कि विदेशी ईंधन पर निर्भरता भी घटेगी. संस्थान की अगली योजना एक ऐसी नई आलू किस्में विकसित करने की है जो इथेनॉल के उत्पादन में सहायक होगी.
मानव उपभोग की दृष्टि से आलू, गेहूं और चावल के बाद दुनिया की तीसरी सबसे अहम् खाद्य फसल है. आलू उत्पादन के मामले में भाता, चीन के बाद दुनिया का दुसरे सबसे बड़ा उत्पादक देश है. कुल आलू उत्पादन में से 68 फ़ीसदी ताजे रूप में उपयोग किया जाता है, 8.5 फीसदी आलू बीज के रूप में, 7.6 फीसदी प्रसंसकरण के रूप में और लगभग 16 फीसदी आलू बेकार हो जाता है. इन बेकार आलूओं का बायो-इथेनॉल उत्पादन में उपयोग एक प्रभावी समाधान हो सकता है.
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आलू से इथेनॉल बनाने की प्रक्रिया
सीपीआरआई शिमला के अनुसार, iइस शोध का उद्देश्य एंजाइम जैसे अल्फ़ा-एमाइलेज, एमाईलोग्लुकोसिडेज और पुलुलानेज का उपयोग करके लिक्वीफैक्शन द्वारा सैक्रीफिकेशन प्रक्रिया को अनुकूलित करना है. इससे आलू के स्टार्च को ग्लूकोज में बदलने की प्रक्रिया पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, जो आर्थिक दृष्टि से लाभकारी है.
इसके बाद, माइक्रोब्स का उपयोग करके किण्वन के माध्यम से इथेनॉल का उत्पादन किया गया. इस शोध से यह स्पष्ट हुआ कि 30 डिग्री सेल्सियस तापमान 6 pH, और 96 घंटों की इन्क्युबेशन समय के साथ अधिकतम उत्पादन संभव है. सरकार ने साल 2030 तक ईंधन में 30 फीसदी इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य रखा है और 2025 तक 20 फीसदी इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया है.
भारत में आलू की खेती और उत्पादन
आलू की फसल, जो भारत की प्रमुख सब्जी फसल है, कुल सब्जी उत्पादन में लगभग 28 फीसदी का योगदान देती है. भारत में आलू उत्पादन 530 लाख टन होता है और लगभग 23 लाख हेक्टेयर में आलू की खेती की जाती है. भारत में आलू उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार का प्रमुख स्थान है.
उत्तर प्रदेश आलू उत्पादन में भारत का सबसे अग्रणी राज्य है, जहाँ 159 लाख तन आलू का उत्पादन होता है. उत्तर प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल का स्थान आता है, जहाँ 126 लाख टन का प्रभावशाली उत्पादन होता है. बिहार 91 लाख टन आलू उत्पादन के साथ तीसरे स्थान पर है. इस प्रकार, आलू से इथेनॉल बनाने की दिशा में सीपीआरआई का यह कदम किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा और देश की इथेनॉल उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी.
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