कृषि और पशुपालनकृत्रिम गर्भाधानडेयरी फ़ार्मिंगपशु कल्याणपशु चिकित्सा आयुर्वेदपशुओं में टीकाकरणपशुपोषण एवं प्रबंधनभारत खबर

पशुओं में गर्भपात करने वाली ब्रुसेलोसिस रोग : Animal Abortion Disease

पशुधन से जुड़ी ख़बरें –

इन्हें भी पढ़ें :- पशुशाला निर्माण के लिये स्थान का चयन ऐसे करें.

इन्हें भी पढ़ें :- नेपियर घास बाड़ी या बंजर जमीन पर कैसे उगायें?

इन्हें भी पढ़ें :- बरसीम चारे की खेती कैसे करें? बरसीम चारा खिलाकर पशुओं का उत्पादन कैसे बढ़ायें?

इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में क्लोन तकनीक से कैसे बछड़ा पैदा किया जाता है?

इन्हें भी पढ़ें :- वैज्ञानिकों ने साहीवाल गाय दूध पौष्टिक और सर्वोत्तम क्यों कहा?

इन्हें भी देखें :- बधियाकरण क्या है? पशु नस्ल सुधार में बधियाकरण का महत्व.

पशुओं में गर्भपात करने वाली ब्रुसेलोसिस रोग : Animal Abortion Disease, ब्रुसेलोसिस बीमारी गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर कुत्तों और मनुष्यों में फैलने वाली बीमारी है. ये संक्रामक और जीवाणु जनित बीमारी है जो पशुओं से मनुष्यों में और मनुष्यों से पशुओं में फैलती है. प्रायः इस बीमारी से ग्रसित पशु का 7 से 9 महीने में गर्भपात हो जाता है. इस बीमारी की पशुशालाओं में बड़े पैमाने में फैलने की संभावनाएं होती है और पशुओं में गर्भपात हो जाति है. जिससे पशुपालक किसान को बहुत अधिक आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है. यह बीमारी मानव शरीर और स्वास्थ्य के लिये भी बेहद महत्वपूर्ण बीमारी है. विश्व स्तर पर लगभग 5 लाख मनुष्य इस रोग से ग्रसित हो जाते है.

ब्रुसेलोसिस रोग

यह संक्रामक और जीवाणु जनित बीमारी है जो ब्रुसेला एबारटस (Brusella Abortus) नामक जीवाणु से होता है. ब्रुसेलोसिस बीमारी गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर कुत्तों और मनुष्यों में फैलने वाली बीमारी है. यौवनावस्था में आये पशु और गाभिन पशु के गर्भ के अंतिम चरण में गर्भपात हो जाता है.

Animal Abortion Disease
Animal Abortion Disease

ब्रुसेलोसिस रोग के छूत लगने का ढंग

1 . योनी स्त्राव – रोगी पशु में गर्भपात होने के बाद योनी मार्ग से निकलने वाली स्त्रावों, जेर या गर्भ झिल्लियाँ में यह जीवाणु भारी मात्रा में पाये जाते है. जिनका संपर्क चारा खाद्य एवं पानी से आकर स्वस्थ पशुओं में यह बीमारी लग जाती है.

2. पूंछ – स्त्राव से निकले हुए जीवाणु पशु के पूंछ में भारी मात्रा में चिपके या पाये जाते है. जब पशु पूंछ हिलाती है, उस समय यह जीवाणु अन्य पशुओं के शरीर पर लग जाते हैं तथा उस संक्रमित पशु के संपर्क में आये मनुष्य शरीर में जीवाणु आँखों द्वारा प्रवेश कर जाति है.

3. दूध – ब्रुसेलोसिस के जीवाणु रोग से संक्रमित पशु के दूध में भी निकलते है और इस दूध का सेवन करने वाले बछड़े तथा मनुष्य में भी यह रोग फैलता है.

4. प्राकृतिक समागम – मद या गर्मी में आये मादा पशु में प्राकृतिक समागम के मादा पशु से नर पशु में तथा नर पशु से मादा पशु में यह रोग फैलता है.

5. गर्भपात का निपटान – पशुओं में गर्भपात किये हुए पशुओं के गर्भ झिल्लियों, गर्भपात बछड़ा को खुले में फेंक देने से कुत्ते इसे नोंच डालते या खा जाते है. जिससे ब्रुसेलोसिस रोग कुत्तों में भारी मात्रा में फैलने की आशंका होती है. कभी-कभी कुत्ते अन्य पशुओ के आहार, चारा, दाना-पानी या पशुओं को काटने में यह रोग अन्य पशुओं को संक्रमित कर सकता है.

पशुओं में गर्भपात के चरण

ब्रुसेलोसिस रोग से प्रभावित पशुओं में निम्नलिखित चरण या महीनों में गर्भपात की संभवना होती है-

क्रमांकचरणमाह
1.प्रथम0 से 3 माह
2.द्वितीय/मध्यचरण4 से 6 माह
3.तृतीय/अंतिमचरण7 से 9 माह

ब्रुसेलोसिस रोग के लक्षण

1 . ब्रुसेलोसिस के जीवाणु गाभिन पशु को संक्रमित करके पशु के गर्भाशय में गर्भ झिल्लियों को क्षति पहुचाते हैं. इस कारण गर्भ में पल रहे बछड़े को मिलने वाले पोषण में कमी होने लगती है. अतः बछड़े को माँ द्वारा होने वाला पोषण भी कम हो जाता है. जिससे धीरे – धीरे बछड़े का माता से संपर्क टूटने लगता है और बच्चा मर जाता है और गर्भ के परिपक्व होने से पहले ही गर्भावस्था के अंतिम चरण में 7 से 9 माह में गर्भपात हो जाता है. इस स्थिति में पशु के गर्भ के जेर का गर्भाशय में ख़राब हो जाने के कारण गर्भाशय का शोथ हो जाता है. धीरे – धीरे गर्भाशय में विष या जहर फैलने लगता है जिससे संक्रमित पशु मृत्यु को गले लगा लेती है.

2. रोग से संक्रमित पशु में गर्भपात के समय गाय जनने या ब्याते समय प्रसूति के सभी लक्षण दिखते हैं. जैसे – योनी से हरे रंग का चिपचिपा स्त्राव निकलता है, योनी में सुजन दिखती है, अयन भी सुजा हुआ और हल्का लाल दिखाई देने लगती है.

3. नर पशुओं में अधिवृषण और वृषण में यह रोग होता है जिसके कारण पशुओं में प्रजनन क्षमता कमहो जाति है. मनुष्य में इस जीवाणु के संक्रमण से अन्डूलंड नामक बीमारी हो जाता है.

पशुधन खबर

इन्हें भी पढ़ें :- दुधारू पशुओं में किटोसिस बीमारी और उसके लक्षण

इन्हें भी पढ़ें :- पशुओं में रासायनिक विधि से गर्भ परीक्षण कैसे करें?

इन्हें भी पढ़ें :- पशुशेड निर्माण करने की वैज्ञानिक विधि

इन्हें भी पढ़ें :- बटेर पालन बिजनेस कैसे शुरू करें? जापानी बटेर पालन से कैसे लाखों कमायें?

इन्हें भी पढ़ें :- कड़कनाथ मुर्गीपालन करके लाखों कैसे कमायें?

इन्हें भी पढ़ें :- मछलीपालन व्यवसाय की सम्पूर्ण जानकारी.

रोग का उपचार

पशुओं में इस रोग का कोई प्रभावी उपचार नहीं होता है. सिर्फ मनुष्यों में इस रोग का उपचार किया जाता है. ब्रुसेलोसिस रोग से प्रभावित पशुओं को अपने स्वस्थ जानवरों के बीच से निकालकर उसका पोषण और प्रबंधन अलग कर देना चाहिए. अन्यथा दुसरे स्वस्थ पशु भी इस रोग के चपेट में आ सकते है.

ब्रुसेलोसिस के रोकथाम के उपाय

1 . रोग से ग्रस्त पशु का पशु चिकित्सा विशेषज्ञ से परिक्षण कराना चाहिए और ऐसे पशुओ को निकलना चाहिए.

2. गर्भपात हुए बछड़े को तथा जेर को गहरे गड्ढे में गाढ़ या दबा देना चाहिए अथवा जला देना चाहिए.

3. गाय, भैस का जेर गर्भाशय से निकलते वक्त हाथ में दस्ताने या मोज़े पहनना चाहिए एवं शरीर को पूरा ढँक लेना चाहिए. आँखों के ऊपर चश्मा या गाबल्स चढ़ा लें तो और उचित होता है.

4. रोगी पशु का दूध मनुष्य तथा बछड़े के उपयोग में न लाये. बछड़े को अन्य स्वस्थ जानवर का दूध सेवन करने को देवें.

5. पशु खरीदते समय गाभिन पशु नहीं खरीदना चाहिए. यदि गाभिन पशु खरीद लिया जाता है तो उसे प्रसूति तक अन्य पशुओं से अलग रखना चाहिए.

6. उप्र्रोक्त कारणों पर ध्यान देते हुए पशुओं में प्राकृतिक समागम की अपेक्षा, पशुपालक कृत्रिम गर्भाधान को अपनाने में ब्रुसेलोसिस जैसे भयंकर बीमारी की समस्या से छुटकारा मिल सकता है.

7. इस रोग का मादा बछड़ों में 4 से 8 माह के उम्र में ब्रुसेलोसिस रोग का टीका लगाया जाता है. पशुपालक अपने मादा बछड़े में यह टीका 4 से 8 माह के उम्र अवश्य लगवा लेवें.

इन्हें भी देखें :- खुरहा/खुरपका – मुंहपका रोग का ईलाज और लक्षण

इन्हें भी देखें :- लम्पी स्किन डिजीज बीमारी से पशु का कैसे करें बचाव?

प्रिय किसान भाइयों पशुओं की उपर्युक्त बीमारी, बचाव एवं उपचार प्राथमिक और न्यूनतम है. संक्रामक बिमारियों के उपचार के लिये कृपया पेशेवर चिकित्सक अथवा नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर, पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें. ऐसे ही पशुपालन, पशुपोषण और प्रबन्धन की जानकारी के लिये आप अपने मोबाईल फोन पर गूगल सर्च बॉक्स में जाकर सीधे मेरे वेबसाइट एड्रेस pashudhankhabar.com का नाम टाइप करके पशुधन से जुड़ी जानकारी एकत्र कर सकते है.

जाने :- लम्पी वायरस से ग्रसित पहला पशु छत्तीसगढ़ में कहाँ मिला?

किसी भी प्रकार की त्रुटि होने पर कृपया स्वयं सुधार लेंवें अथवा मुझे निचे दिए गये मेरे फेसबुक, टेलीग्राम अथवा व्हाट्स अप ग्रुप के लिंक के माध्यम से मुझे कमेन्ट सेक्शन मे जाकर कमेन्ट कर सकते है. ऐसे ही पशुधन, कृषि और अन्य खबरों की जानकारी के लिये आप मेरे वेबसाइट pashudhankhabar.com पर विजिट करते रहें. ताकि मै आप सब को पशुधन से जूडी बेहतर जानकारी देता रहूँ.

पशुधन के रोग –

इन्हें भी पढ़ें :- बकरीपालन और बकरियों में होने वाले मुख्य रोग.

इन्हें भी पढ़ें :- नवजात बछड़ों कोलायबैसीलोसिस रोग क्या है?

इन्हें भी पढ़ें :- मुर्गियों को रोंगों से कैसे करें बचाव?

इन्हें भी पढ़ें :- गाय, भैंस के जेर या आंवर फंसने पर कैसे करें उपचार?

इन्हें भी पढ़ें :- गाय और भैंसों में रिपीट ब्रीडिंग का उपचार.