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रिपीट ब्रीडिंग की समस्या और समाधान : Problems And Solutions of Repeat Breeding

रिपीट ब्रीडिंग की समस्या और समाधान : Problems And Solutions of Repeat Breeding, पशुपालक को उन्नत पशुपालन व्यवसाय के लिये यह आवश्यक होता है कि हमारे दुधारू पशु सही समय में गर्मी में आये और गाभिन हो जाये. परंतु मादा पशु के गर्मी या मद में आने से, बार-बार कृत्रिम गर्भाधान या प्राकृतिक समागम कराने पर भी मादा पशु गाभिन नहीं हो पाता है तो पशुओं में रिपीट ब्रीडिंग की समस्या आती है.

Problems And Solutions of Repeat Breeding
Problems And Solutions of Repeat Breeding

रिपीट ब्रीडिंग की समस्या और समाधान : Problems And Solutions of Repeat Breeding, पशुपालक को उन्नत पशुपालन व्यवसाय के लिये यह आवश्यक होता है कि हमारे दुधारू पशु सही समय में गर्मी में आये और गाभिन हो जाये. परंतु मादा पशु के गर्मी या मद में आने से, बार-बार कृत्रिम गर्भाधान या प्राकृतिक समागम कराने पर भी मादा पशु गाभिन नहीं हो पाता है तो पशुओं में रिपीट ब्रीडिंग की समस्या आती है. ऐसी गाय, भैस या अन्य पशुओं में जननांग सामान्य होते है और मदचक्र या ऋतुकाल चक्र भी सामान्य पाया जाता है. ऐसे पशुओं में गर्भाधान कराने के पश्चात् पशु 18 से 21 दिन में बार-बार गर्मी या मद के लक्षण दिखाए, तो पशुपालक, बड़े-बड़े डेयरी फार्म के मालिकों के लिए चिंता का विषय बन जाता है. पशुओं रिपीट ब्रीडिंग की समस्या न सिर्फ दुग्ध उत्पादन पर प्रभाव डालती है, यह पशुधन के रूप प्राप्त होने वाले बछड़े/बछड़ों संख्या को घटाती है. जिससे अतिरिक्त चारे और पशुआहार से पशुपालक को अतिरिक्त आर्थिक नुकसान होता है.

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पशुओं में रिपीट ब्रीडिंग क्या है – मादा पशुओं में बार-बार कृत्रिम गर्भाधान या प्राकृतिक समागम कराने पर भी मादा पशु के गर्भ का नहीं रुकना और बार-बार गर्मी या मद के लक्षण दिखाना रिपीट ब्रीडिंग कहलाता है.रिपीट ब्रीडिंग की समस्या गायों की अपेक्षा भैसों में अधिक 20% से 25% तक देखि गई है. रिपीट ब्रीडिंग से पशुपालन में पशुपालकों का रूचि कम होना तथा डेयरी व्यसायों में रूचि नहीं दिखाना बहुत बड़ा कारण है. बार- बार गाभिन कराने के बावजूद गाभिन नही होने मुख्यतः दो कारण हो सकते है. 1. गर्भ में नवजात भ्रूण की मृत्यु, 2. वीर्य का समय पर निषेचन नहीं हो पाना. यह समस्या मादा के जननागों की संरचना, जन्मजात विकार, अण्डाणु शुक्राणु तथा भ्रूण में विकार, जननांगों में किसी प्रकार की चोट या रोग, हार्मोन्स का असंतुलन, संक्रामक कारक, पोषक तत्व की कमीं, और प्रबंधन सम्बन्धी कारक रिपीट ब्रीडिंग के जिम्मेदार हो सकते है.

रिपीट ब्रीडिंग के कारण – पशुओं में रिपीट ब्रीडिंग के बहुत से कारण हो सकते है. अतः पशुपालक निम्नलिखित कारणों पर गंभीरता से ध्यान देवें और आर्थिक हानि से बचें.

1 . जननागों में समस्या

  • अंडाशय का छोटा होना तथा जनन ग्रंथियां अनुपस्थित होना.
  • जनननलिका अवरुद्ध होना या योनी के रस्ते में किसी भित्ति झिल्ली का पाया जाना.
  • बच्चेदानी में इंडोमेट्रियल ग्रंथि का न होना.
  • गर्भाशय ग्रीवा का अनुपस्थित होना या गर्भाशय ग्रीवा में दो मुख होना.
  • अंडाशय या अंडवाहिनी में घाव होना.
  • बच्चेदानी का किसी अन्य भाग से जुड़ जाना.
  • बच्चा जनते समय गर्भाशय में चोट पहुचना.
  • गुदा एवं भग के भाग का छिल जाना या चोट पहुचना.
  • ग्रीवा औरत योनी का मोटा होना.
  • मादा जनन अंगों में कैंसर होना.

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2 . हार्मोन्स का असंतुलन – ऋतुचक्र विशेष हार्मोन्स के प्रभाव से संचालित होता है. इन हार्मोन्स का सही समय पर स्त्राव नहीं होने पर ऋतुचक्र में असमानता व जनन में अयोग्यता पाई जाति है. रिपीट ब्रीडर पशु में निषेचन होने के बाद, गर्भ के प्रारंभिक अवस्था में ही प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन्स के कमी के कारण गर्भ मर जाता है.

3. संक्रामक कारक या रोग का संक्रमण – मादा पशुओं में प्रसव के तुरंत बाद या गर्मी में आने पर इस प्रकार का संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है, क्योकि इस समय मादा पशुओं की जनन नलिका खुली होती है. ऐसे स्थिति में डिम्ब वाहिनी नलिका एवं गर्भाशय श्रृंगों के अन्दर यदि कम मात्रा में संक्रमण हुआ है तो ऐसे पशु के जननांगों में प्रतिजैविक औषधियां छोड़ने के बाद अगले मदकाल के समय कृत्रिम गर्भाधान करना चाहिए. ऐसे पशुओं में संक्रमण से ब्रुसोलेसिस, ट्रायकोमोनियासिस, विब्रियोसिस, इन्डोमेट्रायटिस और पायोमेट्रायटिस नामक संक्रामक रोग फैलने की आशंका होती है.

4. पोषक तत्वों की कमी – पशुओं में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन तथा मिनरल्स की कमी से पशु ब्याने के बाद देर से गर्मी में आती है तथा गर्भधारण दर घट जाती है. विटामिन ए की कमी से गर्भपात, कमजोर या मृत बछड़ों का जन्म और गर्भाशय के अन्दर जेर रुकने या फसने जैसी समस्या उत्पन्न होती है. विटामिन ए और सी की कमी से कार्पस ल्युटीयम (CL) का विकास नहीं होता और पेशीय विभाजन (कोशिका विभाजन) नहीं हो पता इसलिए गर्भ की मृत्यु हो जाति है तथा पशु पुनः कुछ दिनों बाद गर्मी या मद में आ जाती है. फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, कापर और आयरन की कमी से मादा पशु में यौवन देर में आती है तथा मरे हुए बछड़े पैदा होती है. आयोडीन की कमी से गर्भपात और मृत बछड़े पैदा होती है. सिलिनियम की कमी से जेर रुकना, बच्चेदानी में शोथ और ओवरी पर गांठ बनने की समस्या हो जाति है.

5. प्रबन्धकीय कारक – पशुपालक मादा पशुओं में हिट या गर्मी का सही समय पर पता नही कर पाना तथा कृत्रिम गर्भाधान का सही समय पर नहीं होना, रिपीट ब्रीडिंग का कारण बन जाता है.

6. मध्य चरण में गर्भाधान नही होना – यदि कृत्रिम गर्भाधान का समय ऋतुकाल के मध्य चरण को छोड़कर किसी और चरण में होता है तो इस स्थिति में सफल गर्भाधान नही हो पाता है. जिससे मादा पशु गर्भ धारण करने में असमर्थ हो जाति है और रिपीट ब्रीडर कहलाती है.

7. दोषपूर्ण थाविंग प्रक्रिया – कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता द्वारा गर्भाधान करते समय थाविंग प्रक्रिया में किसी प्रकार की त्रुटि होती है तो शुक्राणु सही तरीके से सुस्त अवस्था से जाग्रत अवस्था में नहीं आ पाते या उनकी मृत्युदर बढ़ जाति है. जिस कारण से गर्भाशय में अण्डाणु और शुक्राणु निषेचित नहीं हो पाती है और पशु 18 से 21 दिन में गर्मी या मद के लक्षण को दोहराते रहती है.

8. वीर्य का दोषपूर्ण रख-रखाव – कृत्रिम गर्भाधान करने वाले व्यक्ति को वीर्य के रख रखाव में विशेष ध्यान देना चाहिए. जैसे LN2 पात्र में निर्धारित तिथि में LN2 बराबर दलते रहना चहिये. सिमेन स्ट्रा को पात्र से निकालते या ट्रांसफर करते समय कैनिस्टर गर्दन तक 10 सेकण्ड से ज्यादा ऊपर नही रखना चाहिए. इस क्रिया में ज्यादा समय लगने से शुक्राणु मर जाते है और मरे हुए सीमेन स्ट्रा का उपयोग कृत्रिम गर्भाधान में करने से अण्डाणु और शुक्राणु निषेचित नहीं हो पाते और पशु में पुनः 18 से 21 दिन में मदचक्र दिखाई देती है और रिपीट ब्रीडर कहलाती है.

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रिपीट ब्रीडिंग से पशुपालक को नुकसान – रिपीट ब्रीडिंग से पशुपालक को पशुओं के पोषण एवं प्रबंधन पर बहुत आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है. इससे होने वाले नुकसान निम्नलिखित है.

1 . पशुओं के पोषण आहार पर अतिरिक्त खर्च से आर्थिक नुकसान.

2. समय पर दूध उत्पादन में कमी से आर्थिक नुकसान.

3. रिपीट ब्रीडिंग से पशु के चिकित्सा पर अतिरिक्त व्यय.

4. पशुधन से प्राप्त होने वाले बछड़े/बछड़ो की संख्या घटने से हानि.

5. मादा पशु के बार बार गर्मी में आने से संक्रामक बीमारियों के संक्रमण से पशुओं में बाँझपन से हानि.

6. पशुपालन पर अतिरिक्त व्यय करने में आर्थिक नुकसान की सम्भावना.

7. अतिरिक्त व्यय से पशुपालकों, डेयरी फार्मों में पशुपालन पर रूचि कम हो जाना तथा डेयरी फार्म को बंद करने की स्थिति पैदा होना.

रिपीट ब्रीडिंग का उपचार ( Repeat Breeding and Treatment ) – बार बार रिपीट होने वाले पशुओं की जननांगों की जाँच तथा स्त्राव की जाँच पशुचिकित्सक से करवाना अत्यंत जरुरी होता है जिससे इसका उचित ईलाज किया जा सके. जननांगों में संक्रमण होने पर स्त्राव का एंटीबायोटिक सुग्राही परिक्षण करवाकर एंटीबायोटिक औषधि गर्भाशय में डालना चाहिए. अच्छी प्रबंध व्यवस्था से जानवरों के रिपीट ब्रीडिंग को कम किया जा सकता है. इसमें पशुओं को संतुलित आहार देना, समय पर कृमिनाशक दवापान कराना, संक्रामक बीमारियों के बचाव के लिये पशुओं को समय-समय पर टीका लगवाना तथा दिन में दो से तीन बार मादा पशुओं में गर्मी या हिट की जाँच करना. उपयुक्त समय पर ऊच्च गुणवत्ता वाले उत्तम नस्ल के वीर्य से गर्भाधान कराके रिपीट ब्रीडिंग की समस्या से छुटकारा मिल सकता है. पशुपालक रिपीट ब्रीडिंग वाले पशु की जाँच और उपचार के लिये अपने नजदीकी पशुचिकित्सालय में जाकर पशुचिकित्सक को इसकी जानकारी देवें अथवा पेशेवर कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता से इसकी जाँच कराएँ.

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