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पशुओं में पाचन तंत्र के भाग : Pashuon Ke Pachan Ang

पशुओं में पाचन तंत्र के भाग : Pashuon Ke Pachan Ang, पृथ्वी पर पाए जाने वाले समस्त जीवधारियों में भोजन खाने, पचाने तथा उसे बाहर निकालने के लिए खाद्य पदार्थ या भोजन मुंह, ग्रासनली, फैरिंग्स, आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत तथा मलाशय से होकर निकलता है. पशुओं में जहाँ से मल या गोबर को बाहर निकाला जाता है गुदा कहलाता है.

Pashuon Ke Pachan Ang
Pashuon Ke Pachan Ang

गाय के प्रमुख पाचन अंग
1. मुंह – इसे पाचन संसथान का प्रवेश द्वार कहा जाता है जहां पर भोजन को दांतों द्वारा चबाया जाता है। मुंह में जीभ लार ग्रंथियां और तालु आदि अंग सम्मिलित रहते हैं। गाय के ऊपरी जबड़ों में दांत नहीं होती है बल्कि ऊपरी जबड़े में कठोर पेड होता है जिसे डेंटल पेड कहा जाता है।
2. फैरिंक्स – फैरिंग्स मुँह को ग्रासनली से मिलाने वाला छोटा सा भाग है। श्वासनली भी यही से खुलती है, जो की ग्रसनी वायु और भोजन के लिए सामान्य मार्ग है, इसका आकार किपनुमा होता है।
3. ग्रासनली – फैरिंक्स से अमाशय तक जाने वाली यह पतली और लम्बी नली होती है। इसकी औसत लम्बाई ९० सेमी तक होती है।

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4. अमाशय – गाय का अमाशय जुगाली नहीं करने वाले पशुओं से अलग होता है। इसका अमाशय चार भागों में बटा होता है। जिसमें क्रमशः रूमेण, रेटिकुलम, ओमैसम तथा एबोमैसम होता है। गाय का चौथा हिस्सा एबोमैसम ही वास्तव में अमाशय कहलाता है। अमाशय की औसत क्षमता वयस्क जानवर में 100-230 लीटर होता है। जिसमें रूमेण का 80 %, रेटिकुलम का 5 %, ओमैसम का 7 % तथा एबोमैसम का 8 प्रतिशत की हिस्सेदारी होती है।

  • A. रुमेन (Rumen ) – यह पाचन संस्थान का सबसे बड़ा अंग होता है। जो की आगे की ओर ग्रासनली तथा पीछे की ओर रुमीनोरैटिकुलर फोल्ड द्वारा रेटिकुलम से जुड़ा हुआ होता है। इसे प्रथम अमाशय भी कहा जाता है। इसका आकार दीर्घवृत्ताकार होता है जो की जन्म के समय काफी छोटा होता है, परन्तु बाद में बछड़े के उम्र बढ़ने के साथ बढ़ते जाती है। प्रौढ़ पशुओं में इसकी क्षमता 220 लीटर तक होती है। इसमें सूक्ष्म जैविकी किण्वन की प्रक्रिया होती है।
  • B. रेटिकुलम – इसे पशुओं का द्वितीय अमाशय भी कहा जाता है। जो की आगे की ओर रुमेन तथा आगे की ओर ओमैसम से मिला हुआ होता है। पशुओं में यह नाशपत्ती के आकार का होता है। इसकी भीतरी संरचना मधुमक्खी के छत्ते के भांति होती है।
  • C. ओमैसम – इसे तृतीय अमाशय भी कहते हैं। जो आगे की तरफ रेटिकुलम तथा पीछे की ओर एबोमैसम से मिला होता है। यह छोटा गोलाकार आकृति का होता है। इसके भीतरी भाग में पुस्तक के पन्नो के सामान फोल्ड भी होता है, जिसे बुकवर्म भी कहा जाता है।
  • D. एबोमैसम – इसे पशु का चौथा अमाशय भी कहा जाता है। इसकी बनावट बिना जुगाली करने वाले पशुओं के अमाशय से मिलती जुलती है। यह आगे की ओर ओमैसम तथा पीछे की ओर एक संकरे द्वार पाइलोरस द्वारा डियोडीनम से जुड़ा होता है। इसका आकार दीर्घ वृत्तीय होता है। इसमें स्रावित HCL जीवाणुओं को नष्ट किया जाता है तथा पेप्सिनोजन को पेप्सिन में बदला जाता है जो की श्लेष्मा के रूप में रक्षात्मक परत होता है। पेप्सिन, जठर लाइपेज एवं रेनिन इस अमाशय में रासायनिक पाचन करते है।

5. छोटी आंत – प्रौढ़ पशुओं में यह लगभग 40 – 45 मीटर लम्बी, टेढ़ी मेढ़ी एवं कुंडलाकार की होती है। यह तीन हिस्सों में बँटी होती है जिन्हे डियोडीनम, जिजुनम तथा इलियम नाम से पुकारा जाता है। छोटी आंत आगे अमाशय तथा पीछे की ओर बड़ी आंत में खुलती है। इसमें डियोडीनम 1 मीटर, जेजुनम 38 मीटर तथा इलियम 1 मीटर लम्बा होता है। इसमें इसके सतही क्षेत्रफल को बढ़ाने हेतु सूक्ष्मांकुर पाए जाते है।

  • A. ड्यूडिनम/ग्रहणी – छोटी आंत के इस भाग में सबसे ज्यादा पाचन होता है। यहां यकृत एवं अमाशय नलिका खुलती है। इस भाग में एंजाइम की क्रिया क्षारीय माध्यम (pH 7 8 ) में संपन्न होता है।
  • B. जेजुनम – इस भाग में सर्वाधिक अवशोषण होता है अवशोषण हेतु रसांकुर तथा सूक्ष्मांकुर पाए जाते है।
  • C. इलियम – इसमें सबसे अधिक लसिका उत्तक होती है।

6. बड़ी आंत – बड़ी आंत छोटी आंत से लम्बाई में छोटी होती है परन्तु चौड़ाई में अधिक होती है। इसे तीन भागों में बांटा जा सकता है – सिकम, कोलन तथा रेक्टम। यहां अपचित पदार्थों से जल का अवशोषण होता है तथा अवशेष पदार्थों को रेक्टम से निष्काषित कर दिया जाता है। बड़ी आंत की शुरुवात सिकम से होती है जो एक अंधनाल होता है। रेक्टम का बहरी भाग जिससे मल या गोबर बहार निकालता है गुदा कहलाता है।

7. यकृत – यह एक पाचक ग्रंथि है जो बायीं ओर स्थित होती है। यह बादामी चॉकलेट रंग की होती है। इसमें कुछ हरे रंग की एक छोटी सी थैली दिखाई देती है जिसे पित्ताशय कहा जाता है। पित्ताशय से पित्त वाहिनी निकलकर डियोडीनम में खुलती है। यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है। यह आंत्रीय रक्त का अधिकतम भाग ग्रहण करता है तथा शरीर में ग्लूकोज की मात्रा नियंत्रित करता है। इसकी प्राथमिक क्रिया उपापचय है , तथा यह शरीर में समस्थापन क्रिया सम्पन्न करता है।

8. अग्नाशय – यह हलके पिले रंग की अनियमित चतुर्भुज आकार की एक पाचक ग्रंथि है , जो अमाशय तथा डियोडीनम के मध्य पाचक स्थान के निकट स्थित रहती है। इससे अग्नाशय वाहिनी निकलकर डियोडीनम में जाकर खुलती है। अग्नाशय से स्त्रावित बाई कार्बोनेट छोटी आंत को क्षारीय माध्यम प्रदान करता है तथा एंजाइम प्रोटीन वसा तथा पॉलीसैकेराइड का पाचन करता है। यह इन्सुलिन हार्मोन्स स्त्रावित करता है जो शरीर में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करता है।

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